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नागपुर : 17 नवंबर को केंद्र का घेराव करेगा संघ का मजदूर संगठन

डिजिटल डेस्क, नागपुर। केंद्र सरकार के विरोध में भारतीय मजदूर संघ जोरदार प्रदर्शन करेगा। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े इस संगठन की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक शुक्रवार को तात्या टोपे नगर स्थित सभागृह में हुई। दो दिवसीय बैठक के पहले दिन ही केंद्र सरकार की नीतियों का जमकर विरोध किया गया। भारतीय मजदूर संघ की ओर से 17 नवंबर को संसद भवन पर मोर्चा ले जाया जाएगा। आवश्यकता पड़ने पर कार्यकर्ता केंद्र और राज्य के मंत्रियों का घेराव करने से भी नहीं चूकेंगे। हालांकि सरकार पर दबाव बनाने के लिए प्रदर्शन की रणनीति बदली जा सकती है। खास बात यह है कि कार्यकारिणी बैठक को लेकर गोपनीयता रखी गई। बैठक में देशभर से 45 प्रतिनिधि शामिल हुए।
कई राज्यों के प्रतिनिधि हुए शामिल
भारतीय मजदूर संघ पहले भी राजग नेतृत्व की सरकार के विरोध में सामने आते रहा है। संघ के संस्थापक अध्यक्ष दत्तोपंत ठेंगड़ी ने अटलबिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली राजग सरकार की आर्थिक नीतियों का विरोध किया था। दिल्ली में मोर्चा निकाल कर तत्कालीन सरकार पर दबाव लाने का प्रयास किया गया था। वैसी ही स्थिति अब भी दिख रही है। भारतीय मजदूर संघ के अध्यक्ष साजी नारायण, महामंत्री बृजेश कुमार उपाध्याय, संगठन मंत्री वी. सुरेंद्रन, सचिव नीता चौबे समेत अन्य पदाधिकारियों की उपस्थिति में विविध राज्यों के प्रतिनिधियों ने कहा है कि केंद्र सरकार की आर्थिक नीतियों के कारण सबसे अधिक किसान और श्रमिक परेशान हैं।
नीतियों का विरोध, नेता या पार्टी का नहीं
संघ के एक पदाधिकारी के अनुसार आर्थिक मामले को लेकर उनका संगठन सरकार की नीतियों का विरोध करेगा। किसी नेता या पार्टी का विरोध नहीं किया जा रहा है। संसद के घेराव की तैयारी करीब 6 माह से की जा रही है। इससे पहले 22 जून को नागपुर में कार्यकर्ताओं ने सरकार के विरोध में नारेबाजी की थी। 18 अगस्त को संविधान चौक पर धरना दिया गया था। मजदूर संघ नीति आयोग के गठन से सहमत नहीं है। जिसमें ऐसे लोगों को जिम्मेदारी दी गई है, जिनका कृषि या श्रम क्षेत्र से कोई संबंध नहीं है। नीति आयोग में श्रम क्षेत्र के जानकर को नियुक्त किया जाना चाहिए।
प्रमुख 12 मांगें
सरकार के सामने 12 मांगें रखी गई हैं। उनमें श्रम कानून सुधार, सभी वर्गों के लिए सामाजिक सुरक्षा, सार्वजनिक क्षेत्र में विनिवेश का मामला शामिल है। सरकारी संस्थाओं का निजीकरण होने लगा है। निजी निवेश 45 प्रतिशत से अधिक हो रहा है। ऐसी स्थिति में सरकारी उपक्रम की कंपनियों पर संकट छाया है।
Created On :   7 Oct 2017 10:01 AM IST