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अष्टमी पर उमड़ा जनसैलाब, लाखों श्रद्धालुओं ने किए मां जगदंबा के दर्शन
डिजिटल डेस्क, नागपुर। उपराजधानी के कोराड़ी स्थित मंदिर में भक्तों का तांता लगा है। अष्टमी के मौके पर जनसैलाब देखा जा रहा है। शक्ति आराधना के महापर्व की शुरुआत प्रतिपदा 29 सितंबर से हुई। सूक्ष्म जगत और स्थूल जगत दोनो में ही ब्रह्मरूपिणी ब्रह्मशक्ति जगत और लोगों के कल्याणार्थ अपने नैमित्तिक रूप में अविर्भूत होती है। वह भगवती ज्ञानी भक्त के लिए ब्रह्मस्वरूपा उपासकों के लिए ईश्वररूपा और निष्काम यज्ञनिष्ठ भक्तों के लिए विराट स्वरूपा हैं। नौ रूपों में भक्तों का कल्याण करने वाली देवी प्राणियों के समस्त रोगों को हरने वाली और रोगों से बचाए रखने के लिए कवच का काम करने वाली श्री महालक्ष्मी जगदंबा माता का कोराडी में मन्नतों का अखंड महादीप जल रहा है।
नागपुर से मंदिर परिसर तक हलवा, चना, साबुदाना खिचड़ी, पंचमेवा, प्रसाद, बूंदी, पोहा, चाय, फल आदि का जगह-जगह नि:शुल्क वितरण किया जा रहा है। जगह-जगह मां के भजन जस की प्रस्तुति की जा रही है। मंदिर में पूजा-अर्चना के लिए वरिष्ठ पुजारी केशवराव फुलझेले, देवीदास फुलझेले, रामदास, अंबादास, मुकेश, अशोक, राजू, दिनेश, प्रमोद आदि पुजारी मां की सेवा में लगे हैं। सोमवार नवमी को सुबह 3.30 बजे मां की श्रृंगार आरती, हवन पूर्णाहुति होगी। दोपहर 12 बजे भोग आरती, कन्या पूजन, कन्या भोजन होगा। रात 8 बजे संध्या आरती होगी। मंगलवार विजयादशमी को सुबह 3.30 बजे श्रृंगार आरती, 12 बजे भोग आरती दोपहर 3 बजे घट विसर्जन, रात 8 बजे संध्या आरती कर नवरात्रोत्सव संपन्न होगा। संस्थान के मार्गदर्शक चंद्रशेखर बावनकुले, अध्यक्ष एड. मुकेश शर्मा, सचिव केशवराव फुलझेले, कोषाध्यक्ष बाबूराव भोयर, विश्वस्त दयाराम तड़स्कर, दत्तू समरितकर, मैनेजर पंकज चौधरी, गणेश राऊत, विक्की ठाकरे समेत सभी विश्वस्त, स्वयंसेवक भक्तों की सेवा में लगे हैं।
गोंडराजा के पश्चात नागपुर प्रदेश भोसले घराने की हुकूमत में चला गया था। गोंडराजा की हुकूमत के पहले से इस मंदिर को देवस्थान का रूप मिला था। इस दौरान मंदिर का निर्माण भोसले ने करवाया था। 1982 में जीर्णाेद्वार समिति का गठन किया गया। 1987 में मंदिर का निर्माणकार्य पूर्ण कर लिया गया था। इसके पश्चात सार्वजनिक ट्रस्ट की स्थापना की गई। आज जिस जगह मां का मंदिर है। वहां पुरातनकाल में सीताफल का जंगल था। घने वृक्षों के बीच यह मंदिर था। कोराडी गांव का एक व्यक्ति इस जंगल में लकड़ी चुनने पहुंचा तो उसे मां की स्वयंभू मूर्ति दिखाई पड़ी। उस समय भक्तों को वहां पहुंचने में डर लगता था। पुजारी भी शाम 6 बजे के पश्चात मंदिर छोड़ कर घर चले जाते थे। विगत कई वर्ष पूर्व नवरात्रि के दौरान शेर भी आया था। जिसे प्रत्यक्षदर्शयों ने देखा व वनविभाग को सूचित किया लेकिन, उसे पकड़ने में वन विभाग असफल रहा। मान्यता है कि, मां के दर्शनार्थ शेर यहां आता था। आज अष्टमी के अवसर पर मां जगदंबा का रात 8 बजे पट बंद कर महापूजा व महाआरती की गई। इसके पश्चात हवन कार्यक्रम हुआ। जिसका हजारों श्रद्धालुओं ने लाभ उठाया।
श्री महालक्ष्मी जगदंबा संस्थान कोराडी में नवरात्रोत्सव बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा है। अष्टमी पूजन पर रविवार अवकाश का दिन होने से माता का आशीर्वाद लेने शनिवार से ही भक्तों का सैलाब उमड़ रहा था। लंबी-लंबी कतारों में भक्तों को दर्शन के लिए घंटों इंतजार करना पड़ रहा था। लाखों भक्तों ने मां के दर्शन किए। वीआईपी तथा वीवीआईपी गेट पर भी भारी भीड़ थी। शनिवार की रात में तो इतनी भीड़ बढ़ी की राष्ट्रीय महामार्ग पर भी वाहन कछुए की तरह नागपुर से कोराडी तक रेंगते हुए चल रहे थे। कई बार जाम की स्थिति बन रही थी। विशाल दायरा, संस्थान का पूर्वनियोजन, व्यापक इंतजाम की वजह से महिला-पुरुष एक साथ कतार में होने के बावजूद बेखौफ बड़े शांति के साथ सुचारु रूप से मां के दर्शन का लाभ ले रहे थे। राष्ट्रीय महामार्ग से मंदिर पहुंचने अनेक रास्तों की व्यवस्था की गई थी। मंदिर के समीप पार्किंग के लिए पर्याप्त भूमि, मंदिर का पूरा परिसर खुला, भव्य प्रसादालय में मानव सेवा समिति प्रतिदिन भक्तों को चना, हलवा, साबुदाना, भगर आदि का नि:शुल्क वितरण कर रही है। यहां एक लाख से अधिक भक्त प्रसाद ग्रहण करने की बात संस्थान के अध्यक्ष एड. मुकेश शर्मा ने कही है।
मंदिर के ईर्द-गिर्द खिलौने, सिंगाड़े, कमल के फूल, पूजा सामग्री, रंगोली आदि की दुकानें सजी हुई थी। नागपुर से मंदिर तक पुख्ता प्रकाश व्यवस्था की गई है। आकर्षक रोशनाई से मंदिर जगमगा रहा है। ‘जय माता दी’ की जयघोष से पूरा परिसर गूंज रहा है। माता का यह मंदिर 15वीं सदी का है। उस समय इस मंदिर को जाखापुर की महालक्ष्मी जगदंबा का मूल नाम जाखूबाई था। इसलिए जाखापुर नाम पड़ा। हालांकि भक्तों के लिए यह नाम अपरिचित है। सरकारी रिकार्ड के अनुसार जाखापुर रिढी नामक गांव के मंदिर में मां की स्वयंभू मूर्ति है। फुलझेले परिवार की आठवीं पीढ़ी देवी की सेवा में कार्यरत है। राजा भोसले ने पुजारियों के जीवनयापन के लिए यह भूमि मुफ्त में दी थी।
Created On :   6 Oct 2019 5:48 PM IST