कहीं देर न हो जाए, हर साल कैंसर के 2300 मरीज पहुंचते हैं मेडिकल

Lest it be late, every year 2300 cancer patients reach medical
कहीं देर न हो जाए, हर साल कैंसर के 2300 मरीज पहुंचते हैं मेडिकल
सावधान कहीं देर न हो जाए, हर साल कैंसर के 2300 मरीज पहुंचते हैं मेडिकल

डिजिटल डेस्क, नागपुर, चंद्रकांत चावरे | शासकीय चिकित्सा महाविद्यालय व अस्पताल (मेडिकल) के कैंसर रोग विभाग में आने वाले कुल मरीजों में मुंह व गले के कैंसर के मरीजों का प्रमाण बढ़ रहा है। खर्रा, तंबाकू व तंबाकूजन्य पदार्थों का सेवन करना इसका प्रमुख कारण है। इनमें 40 फीसदी संख्या ग्रामीण क्षेत्रों के मरीजों की होती है।

महिलाओं से पुरुषों की संख्या ज्यादा

मेडिकल के कैंसर रोग विभाग में हर साल जांच के बाद कैंसर के 2300 नए मरीज पाए जाते हैं। यह मरीज अलग-अलग प्रकार के कैंसर से पीड़ित होते हैं। इनमें से 30 फीसदी मरीजों में मुंह व गले का कैंसर पाया जाता है। यानी 690 मरीज इस कैंसर से पीड़ित होते हैं। इनमें से औसत 50 फीसदी यानी 345 मरीज लंबे समय तक उपचार के बाद ठीक हो जाते हैं, वहीं 345 मरीजों की मृत्यु हो जाती है। मृतकों में अधिकाधिक ग्रामीण क्षेत्र के होते हैं। इनमें 10 फीसदी शहरी क्षेत्र के व 90 फीसदी मरीज ग्रामीण क्षेत्र के होते हैं। मुंह के कैंसर के मरीजों की आयु वर्ग 45 से 60 और इससे ऊपर की होती है। इसका प्रमाण महिलाओं में कम और पुरुषों में अधिक देखा जा रहा है।

ग्रामीण में जांच की सुविधा नहीं : शासकीय दंत चिकित्सा महाविद्यालय व अस्पताल (डेंटल) में दांतों व जबड़ों की समस्या लिए आने वाले मरीजों में भी मुंह व गले के कैंसर के मरीज पाए जाते हैं। हर महीने जांच के बाद औसतन 5 मरीजों को मेडिकल में भेजा जाता है। इन मरीजों को मुंह व गले का कैंसर हो चुका होता है। कैंसर रोग विभाग के अनुसार, ग्रामीण क्षेत्रों में जांच के लिए सुविधाएं नहीं होने से वहां के लोग स्थानीय अस्पताल या स्वास्थ्य केंद्रों में जाकर दवाएं लेते रहते हैं। जांच नहीं होने से पता नहीं चलता कि उन्हें कैंसर हो चुका है। समय यूं ही बीत जाता है। इस कारण उनका कैंसर तीसरे या चौथे चरण में पहुंच जाता है। ऐसे में उन्हें बचा पाना मुश्किल हो जाता है।

लक्षण दिखने पर होती है जांच : अनुमान है कि जिले में मुंह व गले के कैंसर से मरने वालों की सालाना संख्या 500 से अधिक हो सकती है। जिन मरीजों में कैंसर पाया जाता है, उनमें कई तरह की समस्याएं होती हैं। उनका मुंह पूरी तरह नहीं खुल पाता है, आवाज बदल जाती है, मुंह में छाले पड़ जाते हैं, मवाद जम जाता है, कई बार मुंह से या जबड़ों से खून निकलता है, दातों व जबड़ों में दर्द होता है, मुंह से बदबू आती है। भोजन चबाने व निगलने में परेशानी होती है। दांत हिलने लगते हैं, मुंह के भीतर का मांस कठोर हो जाता है, वहां गांठ हो जाती है। ऐसे लक्षण दिखने पर कैंसर की जांच की जाती है।

स्वास्थ्य योजनाओं में उपचार सुविधा : कैंसर रोग विभाग के अनुसार, तंबाकू व तंबाकू जन्य पदार्थ, खर्रा, धूम्रपान, अल्कोहल समेत अनुवांशिक कारणों से भी कैंसर हो सकता है। जिले में मुंह के कैंसर रोगियों में तंबाकू व खर्रा प्रमुख कारण है। मुुुंह का कैंसर गाल, जबड़ा व मसूड़ों में होता है। यह मुंह से गले तक के भाग को प्रभावित करता है। मुंह व गले के कैंसर रोगियों को दवाओं के अलावा रेडिएशन थेरेपी, बायोप्सी, कीमोथेरेपी, सामान्य सर्जरी आदि पद्धतियों से उपचार किया जाता है। मेडिकल में यह सारी सुविधाएं उपलब्ध हैं। स्वास्थ्य योजनाओं के अंतर्गत कैंसर पीड़ितों का उपचार किया जाता है।

उपचार से ठीक हो सकते हैं

डॉ. अशोक दीवान, कैंसर रोग विभाग प्रमुख के मुताबिक खर्रा व तंबाकू जन्य पदार्थों के सेवन से मुंह व गले के कैंसर का प्रमाण बढ़ रहा है। कैंसर रोग विभाग में सालाना 2300 नए मरीज दर्ज होते हैं। इनमें से 30 फीसदी मंुह व गले के कैंसर से पीड़ित होते हैं। इनमें से 50 फीसदी मरीज तीसरे व चौथे चरण में होते हैं, इसलिए उनके ठीक होने की संभावना न के बराबर होती है। पहले व दूसरे चरण के मरीज नियमित उपचार से स्वस्थ हो जाते हैं। कैंसर रोग विभाग में स्वास्थ्य योजना अंतर्गत उनके उपचार की सुविधाएं उपलब्ध हैं। यहां आकर नियमित जांच व उपचार करवाया जा सकता है।

 

Created On :   27 March 2023 12:05 PM GMT

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