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महावितरण : 2317 करोड़ रुपए वसूलना तो दूर, कर दिया 475 करोड़ का भुगतान

डिजिटल डेस्क, नागपुर। महावितरण के अजीबोगरीब कामकाज का खामियाजा आम जनता को ही भुगतना पड़ता है। ऐसा ही एक वाकया सामने आया जिसमें महावितरण को अहमदनगर जिले की 5 तहसीलों में विद्युत आपूर्ति करने वाली लाइसेंसधारी मुला प्रवरा सोसायटी से 2317 करोड़ रुपए वसूलने हैं। बकाया वसूली तो हुई नहीं, उल्टे प्रति माह करीब 4 करोड़ रुपए का भुगतान महावितरण मुला प्रवरा को संरचना प्रयोग के लिए दे रही है। अब तक 475 करोड़ का भुगतान किए जा चुका है, जबकि कुल 750 करोड़ का भुगतान करना है। यह वसूली भी प्रदेश के ढाई करोड़ उपभोक्ताओं से की जा रही है। इसे महाराष्ट्र विद्युत उपभोक्ता संगठन ने अपीलीय न्याधिकरण के समक्ष चुनौती दी है।
लेखा-जोखा
खास यह है कि जिस ढांचागत संरचना के लिए महावितरण मुला प्रवरा को 750 करोड़ रुपए का भुगतान कर रही है। उसी क्षेत्र में ढांचागत संरचना मजबूत करने फरवरी 2011 से वर्ष 2016-17 तक 200 करोड़ महावितरण ने खर्च किए हैं।
इनका ये दावा
महाराष्ट्र राज्य विद्युत उपभोक्ता संगठन के अध्यक्ष प्रताप होगाड़े के अनुसार, इस आदेश को संगठन ने अपीलीय न्यायाधिकरण के समक्ष चुनौती दी है। इसमें ढांचागत संरचना का एक मूल्य तय करने तथा उस मूल्य को मुला प्रवरा पर बकाया राशि में समायोजित कर शेष राशि की वसूली की मांग की है। जब मुला प्रवरा लाइसेंसी ही नहीं है, तो उसे यूजर चार्ज कैसे दिया जा सकता है। विद्युत अधिनियम में ऐसा कोई प्रावधान ही नहीं है।
बदलती गईं शर्तें
1970 में अहमदनगर जिले की 5 तहसील श्रीरामपुर, नेवासा, राहता, राहुरी तथा संगमनेर के 183 गांवों को विद्युत आपूर्ति के लिए एक सोसायटी मुला प्रवरा बनाई गई। वर्ष 1971 में इसे लाइसेंस मिला। इससे पूर्व तत्कालीन महाराष्ट्र प्रदेश विद्युत मंडल यहां विद्युत आपूर्ति करती थी। वर्ष 1977 तक सोसायटी ने बिजली की राशि का भुगतान किया। इसके बाद विद्युत दर को लेकर विवाद होने लगा। वर्ष 2000 में आयोग का गठन हुआ और वर्ष 2001 के आदेश में आयोग ने मुला प्रवरा पर 110 करोड़ बकाया तय किया। उस समय विद्युत दर तय हुई 1 रुपया प्रति यूनिट।
इसके पूर्व मुला प्रवरा 43 पैसे प्रति यूनिट की दर से भुगतान करती थी। इस बीच वर्ष 1991 में सोसायटी का लाइसेंस 20 वर्ष के लिए नवीनीकृत कर दिया गया। भुगतान का विवाद बढ़ता गया और महावितरण को बिजली का भुगतान मिलना रुक गया। लाइसेंस की अवधि जनवरी वर्ष 2011 में समाप्त हो रही थी। लाइसेंस नवीनीकरण के लिए सोसायटी ने आयोग के समक्ष याचिका दायर की। महावितरण ने इसका विरोध किया और आयोग ने सब पक्षों को सुनने के बाद लाइसेंस नवीनीकरण से इनकार कर दिया। बकाया राशि तय हुई 2317 करोड़ रुपए। यहां से ही टर्न अराउंड हुआ। महावितरण ने श्रीरामपुर की दीवानी अदालत में 2317 करोड़ की वसूली के लिए मुकदमा दायर किया और मुला प्रवरा आयोग के समक्ष गई उनके संरचनात्मक ढांचे के प्रयोग से महावितरण को रोकने।
फरवरी 2011 में जब महावितरण ने इन तालुकाओं का विद्युत वितरण अपने हाथ में लिया तब इस ढांचागत संरचना का बुक वैल्यू 86.55 करोड़ रुपए थी। आयोग में सफल न होने पर मुला प्रवरा ने अपीलीय न्यायाधिकरण के समक्ष अपील की। अपीलीय न्यायाधिकरण ने आदेश दिए कि एमईआरसी संरचना का यूजर चार्ज तय करें। आयोग ने आलिया कंसल्टेंसी साल्यूसन को नियुक्त किया। उसनेे संरचना के बदलने की कीमत तय की, जो 335.77 करोड़ थी। इनकी लाइफ तय की 14 वर्ष। आयोग ने इस आधार पर यूजर चार्ज तय किया, जो 14 साल के लिए ब्याज सहित 750 करोड़ माना गया। साथ ही आयोग ने नवंबर 2016 में दिए अपने दर वृद्धि आदेश में फरवरी 2011 से मार्च 2017 तक के लिए 475 करोड़ रुपए का भुगतान मुला प्रवरा को देना मान्य किया।
हर माह घटते हुए क्रम में करीब 4 करोड़ रुपए का भुगतान वर्ष 2025 तक देने का निर्देश दिया। इस आधार पर महावितरण ने वर्ष 2017-18 के लिए मुला प्रवरा को 46.20 करोड़ रुपए देने का प्रावधान किया है। वर्ष 2018-19 के लिए 43.18 करोड़ तथा वर्ष 2019-20 के लिए 40.17 करोड़ का। खास यह कि इसकी वसूली आम जनता से ही बिजली दर के रूप में की जा रही है, जबकि जनता की रकम 2317 करोड़ की वसूली के लिए कोई खास जोर नहीं लगाया जा रहा। वर्ष 2011 में दाखिल वसूली दावा आज भी श्रीरामपुर की दीवानी अदालत में लंबित पड़ा है।
Created On :   7 Aug 2018 1:47 PM IST