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बांस से बनी मेलघाट की राखियां
डिजिटल डेस्क, धारणी। आदिवासी क्षेत्र के संपूर्ण बांबू केंद्र में तैयार की जाने वाली पर्यावरणपूरक राखियों की मांग देश सहित विदेशों में की जा रही है। बांस से बनी राखियां सभी का आकर्षण बनती है। जंगल में निवास कर रहे आदिवासियों को बांस का महत्व बताते हुए उन्हें रोजगार के अवसर उपलब्ध करने वाले लवादा का संपूर्ण बांस केंद्र में करीब 30 प्रकार की राखियां तैयार की गई। आदिवासियों को रोजगार के अवसर उपलब्ध करवाने वाले लवादा के संपूर्ण बांबू केंद्र के पालनहार स्व. सुनील देशपांडे की स्मृतियां आज भी ताजा हैं। अनेक वर्षों से पर्यावरणपूरक वस्तुएं यहां बनाई जाती हैं। आदिवासी महिलाओं द्वारा बनाई गईं राखियां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कलाई पर 2 साल पूर्व बांधी गई थी। यहां की राखियों को आदिवासी महिलाओं के नाम दिए गए हैं। सात गांवों की महिलाओं को प्रशिक्षण: राखी बनाने का प्रशिक्षण 7 गांव की महिलाओं को दिया गया है। इस वर्ष भी 50 देशों में बांस की राखियां भेजी गई हैं। बारिश के दिनों में मेलघाट से बड़े पैमाने पर लोगों का रोजगार के लिए लोगों का स्थलांतरण होता है। लेकिन राखी निर्मिति के कारण 50 महिलाओं का काम मिला है। पर्यावरण पूरक राखी को सभी लोगों द्वारा पसंद किया जा रहा है।
विविध शहरों में राखी के स्टॉल
उल्लेखनीय है कि इस वर्ष नागपुर, कोल्हापुर, सोलापुर, अमरावती सहित बड़े शहरों में राखी के स्टॉल लगाए गए है। करीब 1 लाख बांस की राखियां बनाई गई है। केंद्र सरकार के भारतीय संस्कृृति परिषद की मदद से विश्व के 50 देशों में पर्यावरणपूरक राखी पहंुची है। करीब 1 लाख राखियां और 50 हजार राखी बनाने की किट्स उपलब्ध करवाई हैं। इस किट में बांस के बीज भी रहने से इसका पौधारोपण के लिए उपयोग होगा। शहरी क्षेत्र से बांस से बनी राखी को उत्तम प्रतिसाद मिलने पर इसका लाभ मेलघाट के आदिवासियों को रोजगार मिलने के लिए होगा।
रोजगार की समस्या स्थायी रूप से होगी हल
संपूर्ण बांबू केंद्र लवादा की निरूपमा देशपांडे के मुताबिक संपूर्ण बांस केंद्र की वजह से 50 आदिवासी महिलाएं अपने बलबूते पर खड़ी है। बांस से निर्मित वस्तुओं को बाजार उपलब्ध होने पर यहां की रोजगार की समस्या स्थायी रूप से हल होगी।
Created On :   22 Aug 2021 3:45 PM IST