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नागपुर में 2000 से अधिक हैं विदेशी नागरिक, सबसे अधिक बांग्लादेशी

डिजिटनल डेस्क, नागपुर। अनिवासी भारतीयों की घुसपैठ का मामला भले ही असम से चर्चा में आया है, पर नागपुर इस घुसपैठ के मामले में पहले से ही चर्चित है। यहां समय-समय पर इन अप्रवासियों की धर-पकड़ होती रही है। विशेष अभियान भी चलाए गए हैं, लेकिन समय के साथ सब कुछ ठंडे बस्ते में चले जाने की परंपरा घुसपैठ के मामले में भी लागू होती दिख रही है। हद तो यह है कि कई बार चर्चा में आने के बाद भी नागपुर में विदेशी नागरिकों के बारे में सही तरह से सर्वे भी नहीं हो पाया है। अंदाजन 2000 विदेशी नागरिकों का परिवार नागपुर में रह रहा है। इनमें सबसे अधिक बांग्लादेश के बताए जा रहे हैं।
विशेष अभियान चलाना जरूरी
नागपुर में अवैध तरीके से रह रहे विदेशी नागरिकों के लिए पुलिस व गुप्त एजेंसियों का विशेष अभियान चलता है। 2008 में मुंबई में आतंकवादी हमला की घटना के बाद एटीएस अर्थात आतंकवाद प्रतिबंधक दस्तों का गठन किया गया। एटीएस की एक ब्रांच नागपुर में भी खोली गई। तब से एटीएस विविध स्लम क्षेत्रों में धर-पकड़ करती है। उससे भी पहले देखें तो विदेशियों की घुसपैठ का मामला शहर पुलिस के लिए विशेष निगरानी का विषय बनता रहा है।
2006 में बांग्लादेशी नागरिकों की घुसपैठ का मामला कुछ ऐसा चर्चा में आया था कि तत्कालीन पुलिस उपायुक्त प्रभातकुमार को विशेष अभियान चालाना पड़ा था। पुलिस ने विविध थाना क्षेत्रों से एक साथ 108 बांग्लादेशी नागरिकाें को गिरफ्तार किया था। अपराध शाखा के तत्कालीन इंस्पेक्टर माधव गिरि के नेतृत्व में बनाए गए दस्ते ने दिसंबर 2007 में तहसील थाना क्षेत्र में 32 बांग्लादेशी नागरिकों को पकड़ा था। उनमें से 13 नागरिक के पास किसी तरह का प्रमाण-पत्र नहीं था।
पाकिस्तानी नागरिकों पर भी उठता रहा है सवाल
पाकिस्तान से दीर्घ वीजा लेकर यहां आकर बसे वहां के अल्पसंख्यक यानी गैर मुस्लिम नागरिकों को लेकर भी सवाल उठते रहे हैं। सिंधी समाज के पाकिस्तान के नागरिकों को लेकर आरटीआई के तहत पूछ गए सवाल में प्रशासन की ओर से जवाब आया कि जनवरी 1996 से अगस्त 2011 तक नागपुर में 1436 पाकिस्तान के नागरिक दीर्घ वीजा पर रह रहे हैं। इस मामले का लेकर एजाज खान नामक कार्यकर्ता ने उच्च न्यायालय में याचिका भी दायर की थी। हालांकि केंद्रीय गृह विभाग ने विदेशों के अल्पसंख्यक नागरिकों को शरणार्थी के तौर पर संरक्षण देने के जो नियम बनाए हैं उससे सिंधी समाज के नागरिकों को राहत मिलती रही है। सरकार ने जिलाधिकारी को ही इन नागरिकों को नागरिकता देने का अधिकार दे दिया है।
हाल ही में 150 लोगों को नागरिकता प्रमाण पत्र दिए गए हैं, लेकिन अभी भी कई लोगों की नागरिकता संकट में है। नागपुर में करीब 2000 से अधिक पाकिस्तान के नागरिक रह रहे हैं। उनके नागरिकता के आवेदन केंद्रीय गृह मंत्रालय से होते हुए जिलाधिकारी तक पहुंच गए हैं। लेकिन ज्यादातर नागरिकों के वीजा पर अंडर कंसीडरेशन अर्थात विचाराधीन लिखा रहने के कारण नागरिकता पर संकट आ सकता है।
समाज का सहयोग जरूरी
शहर में अनिवासी भारतीय नागरिकों के मामले में पुलिस की नजर लगी रहती है। यहां तक कि किराएदारों की पहचान के लिए भी पुलिस थाना स्तर पर व्यवस्था की गई है। इस संबंध में समाज का सहयोग आवश्यक है। किसी भी नागरिक की गतिविधि या पहचान पर संदेह तो पुलिस का सूचना दें। फिलहाल नागरिकता को लेकर अपराध शाखा तक कम ही शिकायत पहुंच रही है।
संभाजी कदम, उपायुक्त अपराध शाखा शहर पुलिस
हवाला में लिप्त
पुलिस सूत्र के अनुसार, शहर में बांग्लादेशी नागरिक हवाला कारोबार में भी लिप्त पाए गए हैं। अक्टूबर 2015 में एटीएस के अधिकारी बीडी मिश्रा के नेतृत्व में शालीमार एक्सप्रेस यानी हावड़ा कुर्ला ट्रेन में छापामारी की थी। नागपुर में हवाला के जरिए लाए जा रहे 9.11 लाख रुपए बरामद किए गए थे। उससे पहले भी ऐसे ही कुछ मामलों में बांग्लादेशी नागरिकों से नकद रुपए बरामद किए गए थे। अगस्त 2010 में एटीएस ने ही 28 बांग्लादेशी श्रमिक को पकड़कर विदेशी नागरिक पंजीकरण कार्यालय में पेश करने के बाद वापस बांग्लादेश छुड़वाया था।
नकली नोटों का जाल
2009 में जरीपटका पुलिस थाना क्षेत्र में अमीरुल शेख 45 को पकड़ा गया था। उससे पहले इसी थाना क्षेत्र की मेकाेसाबाग बस्ती में नोट तस्करी के मामले में महिला को गिरफ्तार किया गया था। खुलासा हुआ था कि नागपुर में नकली नाेट खपानेवाला गिरोह सक्रिय है। इस गिराेह में बांग्लादेशी नागरिक शामिल है। बांग्लादेश के मालदा से नकली नोट व नशे की सामग्रियां पहुंचती है। शहर पुलिस को मालदा जाकर धर-पकड़ करने के दौरान जान जोखिम में भी डालना पड़ा है। जरीपटका, पांचपावली, गिट्टीखदान, यशोधरानगर, कलमना व नंदनवन थाना क्षेत्र में सबसे अधिक नकली नोट पहुंचाए जाते रहे हैं।
‘वह’ कारण नहीं यहां आने का
खास बात तो यह भी है कि नागपुर में इन विदेशियों के बसने का कारण अन्य क्षेत्रों से अलग है। पूर्वोंतर के राज्यों में आरोप लग रहे हैं कि ‘वोट बैंक’ के तौर विदेशी नागरिकों को संरक्षण दिया जा रहा है। नागपुर में तो ये लोग सस्ते लेबर के तौर पर संरक्षण पा रहे हैं। खुले तौर पर काम भी करने लगे हैं। नागपुर में बांग्लादेश के नागरिकों के पहुंचने का तरीका उसी तरह है, जैसे देश के अन्य व्यावसायिक क्षेत्रों में पहुंचे व पहुंचाए जाते हैं। एजेंट के माध्यम से कोलकाता पहुंचने के बाद हावड़ा मार्ग से आसानी से बांग्लादेशी नागरिक नागपुर पहुंच जाते हैं। मतदाता कार्ड व राशन कार्ड बनवाकर वे यहीं रहने लगते हैं।
"इन" कामों में रहते हैं लिप्त
रेडीमेड वस्त्रों के अलावा जरी अर्थात वस्त्र डिजाइन के काम में ये सर्वाधिक हैं। स्वर्णाभूषण बनाने की विशेष कला के साथ भी बांग्लादेशी कम उम्र के नागरिक यहां सरंक्षण पा रहे हैं। फल सब्जी बिक्री के काम में भी उन्हें देखा जा सकता है। व्यापारियों को सस्ते में हुनरमंद कामगार मिलते हैं। चूंकि नागरिकता नहीं होने के कारण कामगार श्रम शोषण का विराेध भी नहीं कर पाते हैं, लिहाजा उन्हें रहने व खाने-पीने की व्यवस्था के साथ संरक्षण दिया जाता है। कुछ लोग स्लम क्षेत्र में भी मनचाहा किराया पाकर, इन्हें आसानी से कमरे किराए पर दे देते हैं।
"वे" इलाज कराने आते हैं
इलाज के लिए भी विदेश नागरिक यहां आकर लंबे समय तक बस जाते हैं। नागपुर स्वास्थ्य सेवा का केंद्र बनने लगा है। अमेरिका में आपरेशन खर्च 20 से 25 लाख रुपए हो तो नागपुर में वही आपरेशन 5 लाख रुपए में हो जाता है। लिहाजा, आस्ट्रेलिया, इरान, इराक के नागरिक भी यहां इलाज के लिए आते हैं। मूत्रपिंड प्रत्यारोपण, मस्तिष्क ज्वर व हृदयरोग उपचार के लिए नागपुर प्रमुख स्वास्थ्य केंद्र माना जाता है। 2008 में हनुमान नगर क्षेत्र में पाकिस्तान के विद्यार्थियों को पकड़ा गया था। जांच में खुलासा हुआ था कि वे इलाज के लिए लंबे समय से यहां आकर रह रहे थे।
Created On :   3 Aug 2018 1:18 PM IST