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अरुणाचल की बेटियों के लिए ‘पिता’ है नागपुर की संस्था
डिजिटल डेस्क, नागपुर. देश के दुर्गम क्षेत्र के निर्धन परिवार की बेटियों को शिक्षित कर उन्हें अपने पैरों पर खड़े करने का काम शहर की एक संस्था कर रही है। पिछले 10 साल से यह काम जारी है। इस समय इस संस्था के पास 35 बेटियां हैं। इनमें से 17 अरुणाचल प्रदेश की हैं। जब यह संस्था के पास आईं थीं, तो अशिक्षित थीं। संस्था ने उन्हें अलग-अलग स्कूलों व कॉलेजों में प्रवेश दिलाया। सारी जिम्मेदारी उठाई। अब यह बेटियां उच्च शिक्षित होने लगी हैं। कुछ अपने पैरों पर खड़े हो चुकी हैं। इस संस्था का नाम ‘जिव्हाळा परिवार’ संस्था है। संस्था के सचिव नागेश पाटिल 2012 में अकोला गए थे। वहां के एक निर्धन परिवार की एक बच्ची को देखा, तो पूछताछ की। शिक्षा, स्वास्थ्य से दूर इस परिवार की बच्ची का भी भविष्य अंधेरे में न खो जाए, इसलिए बड़ा फैसला लिया। नागेश पाटिल ने इस बच्ची का पालकत्व लेने की जिम्मेदारी उठाई और उसे नागपुर ले आए। यह बेटी 12वीं तक शिक्षित हुई। बाद में गांव चली गई। उसकी शादी हो गई। यहां से इस संस्था की शुरुआत हुई। दानदाताओं की मदद से यह संस्था चलाई जाती है। कोरोनाकाल के पहले यहां 66 लड़कियां थीं। कोरोना के दौरान घर वापसी हुई, तो 46 लड़कियां घर चली गईं। अब फिर स्थिति सामान्य होने से संख्या 35 हो चुकी है। इनमें 3 लड़के भी शामिल हैं। संस्था ने अब तक 150 बेटियों का पालकत्व स्वीकार कर उन्हें शिक्षित किया है। संस्था का काम देखकर माधव विचाेरे ने दो मंजिला मकान संस्था को दिया है। संस्था के नागेश पाटिल को सभी बेटियां पप्पा यानि पिता (फादर) कहती हैं। अरुणाचल प्रदेश के अलावा वाशिम, यवतमाल, वर्धा, पुलगांव, गोंदिया, चंद्रपुर, अमरावती, अकोला, गोंदिया आदि जिलों के छोटे-छोटे दुर्गम गांवों के निर्धन परिवार की बेटियां हैं।
अरुणाचल प्रदेश की 17 बेटियां : अरुणाचल प्रदेश के चांगलांग जिले में डायुन सर्कल हैं। इस सर्कल अंतर्गत छोटे-छोटे गांव अतिदुर्गम क्षेत्रों में हैं। यहां शिक्षा, स्वास्थ्य समेत अन्य मूलभूत सुविधाओं का अभाव है। मुख्य धारा से दूर रहने से यहां के लोग आज भी त्रासदी भरा जीवन बीता रहे हैं। इसकी जानकारी जिव्हाळा परिवार को मिलने पर संस्था की टीम वहां पहुंची। वहां के हालात देखकर ऐसा लगा कि दूसरी दुनिया में आ गए हैं। वहां के लोग कैसे जी रहे हैं, यह देखकर ही मन दु:खी हो गया। तब संस्था के सदस्यों ने वहां के लोगों का समुपदेशन किया और वहां की बेटियाें को शिक्षा देकर अपने पैरों पर खड़े करने के लिए प्रेरित किया। लोग बड़ी मुश्किल से माने और पहले दो, फिर चार इस तरह वहां की बेटियां नागपुर आने को तैयार हुईं। संस्था ने यहां उनकी शिक्षा, रहना, भोजन व अन्य सभी जरुरतों का पूरा ध्यान रखा। उन्हें अलग-अलग स्कूल-कॉलेजों में दाखिल कराया गया। इनमें से किसी की मां नहीं, किसी के पिता नहीं और किसी के मां-पिता कोई नहीं हैं। ऐसी 17 बेटियां हैं।
बेटियों ने बनाई अलग पहचान : संस्था द्वारा बेटियों के लिए अभियान चलाने के बाद कुछ बेटियों ने अलग ही पहचान बना ली है। सृष्टि भीमराव राऊत, यवतमाल ने 10वीं में 90 फीसदी अंक प्राप्त किए। 2014 में उसकी कविता ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ की प्रस्तुति संसद भवन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने हुई थी। अनेक पुरस्कार पाने वाली सृष्टि 10 साल से संस्था के पास है। उसे आईएएस बनना है। तो कोमल भगत को गायन का शौक है। वहीं, अस्मिता पाटिल भरतनाट्यम में स्वर्ण पदक प्राप्त कर चुकी है। वह नृत्य शिक्षिका है। अर्निका चकमा बैंक में नौकरी कर रही है। हर्षदा बोहरुपी बी. फॉर्म व बिरोबाबु चकमा बीएएमएस कर रही हैं, जबकि धम्ममेधा पाटिज फिजियोथेरेपी कर रही हैं। सुशिलानी चकमा, निमेतारा चकमा, अर्जना देवाण बीएससी कर रही हैं। रानी मालोदी एमएससी, पेरिसा चकमा, श्रृति बारहाते इंजीनियरिंग आदि कर रही हैं। अन्य बेटियां भी पढ़ रही हैं। कुछ अलग-अलग क्षेत्रों में सेवाएं दे रही हैं।
Created On :   19 Jun 2022 4:35 PM IST