सूखने लगे हैं वन्यक्षेत्रों के नैसर्गिक जलस्रोत, कृत्रिम वॉटर होल से चलाएंगे काम

natural water resources are dying in wild areas work from artificial hole
सूखने लगे हैं वन्यक्षेत्रों के नैसर्गिक जलस्रोत, कृत्रिम वॉटर होल से चलाएंगे काम
सूखने लगे हैं वन्यक्षेत्रों के नैसर्गिक जलस्रोत, कृत्रिम वॉटर होल से चलाएंगे काम

डिजिटल डेस्क,नागपुर। वैसे तो गर्मी लगते ही जलाशयोंं का जलस्तर कम होने लगता है इस बार जिले के अभयारण्यों में जलस्रोत के बुरे हाल नजर आ रहे हैं।  अधिकृत जानकारों के अनुसार विदर्भ के पेंच व्याघ्र प्रकल्प अंतर्गत आनेवाले बोर व्याघ्र प्रकल्प, उमरेड, पवनी, करांडला अभयारण्य, टीपेश्वर अभयारण्य, पैनगंगा अभयारण्य में के 87 नैसर्गिक जलस्रोत में काफी कम मात्रा में जल रह गया है जिससे आने वाले दो माह में इन जलाशयों के सूख जाने का खतरा मंडरा रहा है। अभयारण्यों को जलस्रोत सूखने से प्राणियों को मुश्किलें हो सकती हैं। हालांकि प्रशासन ने इससे निपटने की सारी तैयारियां कर ली है। कुल 350 कृत्रिम जलस्रोतों को विभिन्न तरीकों से दुरुस्त किया जा रहा है। वन विभाग की ओर से जरूरी जगहों पर वॉटर होल बनाए गए हैं। जरूरत के अनुसार छोटे-बड़े वॉटर होल प्राणियों के लिए मुख्य जल स्रोत साबित होते हैं। अधिकृत आंकड़ों के अनुसार कुल 179 नैसर्गिक जलस्रोत बने हैं। इसमें से 76 में हर माह पानी उपलब्ध रहता है। बचे 103 जलस्रोतों में बढ़ते माह के अनुसार पानी बच जाता है। अनुमान के अनुसार मई के आखिर तक 87 जलस्रोत सूख  सकते हैं।

350 कृत्रिम जलस्रोत 
कृत्रिम वॉटर होल की संख्या 350 है। इसमें 123 पर सोलर पंप के माध्यम से जलापूर्ति होती है। 29 पर हैंडपंप के माध्यम से और शेष 198 में से 61 पर सरकारी टैंकर से जलापूर्ति की जा रही है। 137 वॉटर होल पर 7 निजी टैंकर के माध्यम से भी जलापूर्ति की जा रही है। 

वन्यजीवों को राहत पहुंचाने के प्रयास
उल्लेखनीय है कि गर्मी में पानी नहीं मिलने से वन्यजीव अक्सर शहर की ओर रूख करते हैं। जिससे जंगल से सटे गांवों में वन्यजीवों को लेकर काफी दहशत बनी रहती है। इस दौरान वन्यजीव और मानव के बीच संघर्ष की घटनाएं भी बढ़ जाती है। ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए वनविभाग ने प्रयास करते हुए छोटे-बड़े वाटर होल तैयार किए हैं।
 

Created On :   10 April 2018 1:42 PM IST

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