33 % वन क्षेत्र की जरूरत शेष बचा है मात्र 11%, सबसे अधिक खतरा भारत को

Need of 33 % forest area but only 11 % is left, danger for India
33 % वन क्षेत्र की जरूरत शेष बचा है मात्र 11%, सबसे अधिक खतरा भारत को
33 % वन क्षेत्र की जरूरत शेष बचा है मात्र 11%, सबसे अधिक खतरा भारत को
हाईलाइट
  • पर्यावरण संतुलन की दृष्टि से यह खतरे की घंटी है।
  • उपग्रह सर्वेक्षण में भारत में मात्र 11 प्रतिशत वनक्षेत्र शेष होने का खुलासा हुआ है।
  • पर्यावरण काे संतुलित रखने 33 प्रतिशत क्षेत्रफल वनक्षेत्र से आच्छित होना आवश्यक है।
  • विश्व के अन्य देशों के मुकाबले सबसे अधिक खतरा भारत पर है।

डिजिटल डेस्क, नागपुर। पर्यावरण काे संतुलित रखने 33 प्रतिशत क्षेत्रफल वनक्षेत्र से आच्छित होना आवश्यक है। जिस समय देश आजाद हुआ, उस समय भारत में 35 प्रतिशत वनक्षेत्र था। सरकार भले ही 26 प्रतिशत वनक्षेत्र का दावा कर रही है, परंतु उपग्रह सर्वेक्षण में भारत में मात्र 11 प्रतिशत वनक्षेत्र शेष होने का खुलासा हुआ है। पर्यावरण संतुलन की दृष्टि से यह खतरे की घंटी है। ग्लोबल वार्मिंग से संपूर्ण विश्व खतरे के मोड़ पर खड़ा है। विश्व के अन्य देशों के मुकाबले सबसे अधिक खतरा भारत पर है। हालांकि इस संकट से बचने की उपाय योजना का विकल्प भी हमारे पास है। इसे प्रत्यक्ष धरातल पर साकार करने से भविष्य के संभावित खतरे से बचा जा सकता है। इस बात का खुलासा पत्र परिषद में मौसम विशेषज्ञ प्रा. बीएन शिंदे ने किया।

उन्होंने बताया कि, पेट्रोलिमय पदार्थों का इस्तेमाल बढ़ने से धरती के तापमान में वृद्धि हो रही है। तापमान बढ़ने से हवा हल्की होकर ऊपर जाने से धरती पर कम हवा के दबाव का पट्टा तैयार हो जाता है। तब बाहरी हवा का कम दबाव के पट्टे पर प्रभाव बढ़ जाता है। इस स्थिति में चक्रवात, आंधी-तूफान, ओलावृष्टि, बारिश की अनियमितता का खतरा बढ़ जाता है। अन्य देशों के मुकाबले भारत का तापमान सामान्य है। जिस देश का तापमान सामान्य से कम और सामान्य से अधिक है, उस देश के मुकाबले भारत को हवा के दबाव का खतरा अधिक है। पत्र परिषद में सुभाष नलगे, राजेश मुनोत, दिलीप इंगले आदि उपस्थित थे।

सर्वाधिक उपजाऊ है जमीन  
विश्व के अन्य देशों के मुकाबले भारत की भौगोलिक स्थिति वनक्षेत्र बढ़ाने की दृष्टि से पोषक है। अनेक देशों में रेतीली, बर्फाच्छादित, पथरीली, क्षारयुक्त जमीन का प्रमाण अधिक है। चाहकर भी उस जमीन पर पेड़ों को उगाना और बढ़ाना संभव नहीं है। वहीं भारत में 95 प्रतिशत जमीन उपजाऊ है। इसका उपयोग वनक्षेत्र बढ़ाने की दिशा में हो सकता है। उपजाऊ जमीन का प्रमाण विश्व में सर्वाधिक रहने से ग्लाेबल वार्मिंग को रोकने विकल्प सिर्फ भारत के पास ही है।

शाश्वत खेती प्रभावी उपाय
कृषि क्षेत्र में तकनीकी क्रांति आने से उत्पादन बढ़ा है, लेकिन क्षमता कम हो गई है। जिससे कृषि व्यवसाय घाटे का सौदा साबित हो रहा है। फसल के लिए पानी का अत्यधिक प्रयोग करने से वाष्पीकरण होकर वातावरण का तापमान बढ़ रहा है। इसका परिणाम पर्यावरण संतुलन पर हो रहा है। इसे रोकने के लिए शाश्वत खेती प्रभावी उपाय है। 

क्या है शाश्वत खेती
शाश्वत खेती में 50 प्रतिशत क्षेत्रफल में पेड़ उगाए जाने चाहिए। इसमें भी 30 प्रतिशत जंगली पेड़ का प्रमाण हो। इन पेड़ों से भी किसानों को आय मिलेगी। सागौन, चंदन के पेड़ों से मिलने वाली आय कृषि फसल के मुकाबले अधिक होगी। शेष 50 प्रतिशत खेती में 25 प्रतिशत अनाज और 25 प्रतिशत में फल, सब्जियों की खेती करनी चाहिए। कृषि माल की उत्पादन क्षमता कम होने से खर्च अधिक और आय कम हो रही है। उसकी जगह पेड़ लगाने से किसानों की आय में वृद्धि होगी। किसानों को आत्महत्या जैसे कदम उठाने की नौबत भी नहीं आएगी।

नमी बढ़ने  से बारिश होगी
मौसम के मिजाज के हिसाब से पेड़ों में परिवर्तन होता है। जब पानी की कमी होती है, पेड़ों के पत्ते झड़ जाने से पत्तों से होने वाला वाष्पीकरण बंद हो जाता है। बारिश का मौसम आने पर पेड़ हरे-भरे हो जाते है। पत्तों से वाष्पीकरण होने के कारण नमी बढ़ने से तापमान कम होगा। धरती पर अधिक दबाव का पट्टा बना रहने से मौसमी हवा थम जाएगी और बारिश होगी।

जनजागरण ही एकमात्र उपाय
वनक्षेत्र बढ़ाने के लिए सरकारी उपाय योजना पूरी तरह नाकाम रही है। महाराष्ट्र में पिछले 2 वर्ष से पौधारोपण का महाअभियान चलाया जा रहा है। इस अभियान अंतर्गत सरकारी जमीन पर लाखों पौधे लगाए जा रहे हैं। सरकारी लापरवाही के चलते इसमें से अधिकांश पौधे मर गए हैं। यदि खेती में पौधे लगाए जाते, तो किसान उसकी देखभाल करता। संभावित खतरे से बचने के लिए किसानों को प्रोत्साहित करना आवश्यक है। इसके लिए जनजागरण यही एकमात्र उपाय है।

Created On :   13 July 2018 2:35 PM IST

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