दल बदले पर नहीं बदले दिन, नए गठबंधन की सरकार ने बिगाड़े कई नेताओं के गणित

new coalition government spoiled the career of many leaders
दल बदले पर नहीं बदले दिन, नए गठबंधन की सरकार ने बिगाड़े कई नेताओं के गणित
दल बदले पर नहीं बदले दिन, नए गठबंधन की सरकार ने बिगाड़े कई नेताओं के गणित

डिजिटल डेस्क ,नागपुर । सत्ता पाने या सत्ता में बने रहने के लिए राज्य में कुछ नेताओं ने दलबदल किया। लेकिन नए गठबंधन ने कई नेताओं के गणित बिगाड़ दिए है। सत्ता के लिए जिस दल को छोड़ा वही दल सत्ता में पहुंच गया है। कुछ तो ऐसे भी है जो अपने पुराने दल में लौट आए लेकिन उनकी भूमिका नेता की बन गई है। राज्य में शिवसेना के नेतृत्व में राकांपा व कांग्रेस सत्ता संभालने जा रही है। सबसे अधिक सदस्य संख्या वाली भाजपा विपक्ष में रहेगी। राजनीतिक फेरबदल कुछ ऐसा हुआ है कि भाजपा के साथ सत्ता में रही शिवसेना ने विपक्ष को साथ लेकर सरकार बना ली है। ऐसे में उन नेताओं की सबसे अधिक मुसीबत है जो मानकर चल रहे थे कि उन्हें आसानी से सत्ता मिलेगी। इन नेताओं में सबसे पहले पूर्व मुख्यमंत्री नारायण राणे व उनके पुत्र नीतेश राणे शामिल है।

राणे को शिवसेना ने मुख्यमंत्री बनाया था। बाद में वे कांग्रेस में रहकर मंत्री बने। फिर से मुख्यमंत्री बनने का प्रयास करते रह गए । भाजपा के करीब आए लेकिन पिछले लोकसभा चुनाव तक भाजपा चाहकर भी उन्हें पार्टी में शामिल नहीं करा पायी। अब वे बेटे के साथ भाजपा में शामिल हुए हैं लेकिन भाजपा सत्ता से बाहर हो गई है। कभी शिवसेना में रहे राधाकृष्ण विखे पाटील को कांग्रेस ने महत्व दिया था। वे कांग्रेस के नेतृत्व की सरकार में कृषिमंत्री भी रहे। 2014 में देवेंद्र फडणवीस मुख्यमंत्री बने।भाजपा के नेतृत्व में पहली बार राज्य में सरकार बनी तो कांग्रेस ने राधाकृष्ण विखे पाटील को नेता प्रतिपक्ष बनाया। लेकिन विखे पाटील नेता प्रतिपक्ष पद पर रहते हुए ही भाजपा में शामिल हो गई। उन्हें भाजपा ने 3 माह के लिए मंत्री भी बनाया।

अब भाजपा सत्ता में नहीं होने से विखे पाटील की स्थिति को भी समझा जा सकता है। विलासराव देशमुख सरकार में संसदीय कार्य मंत्री रहे हर्षवर्धन पाटील भी भाजपा मेें शामिल होकर चुनाव जीते हैं। उनके अलावा जयकुमार गोर, गणेश नाइक, शिवेंद्र राजे भोसले, बबन पाचपुते, प्रसाद लाड, वैभव पिचड, राणा जगजीतसिंह जैसे कई नाम हैं जिन्होंने सत्ता के लिए अपनी पार्टी छोड़ी । उनकी पार्टी तो सत्ता में पहुंच गई पर वे अधर में रह गए हैं। विदर्भ के अमरावती में अपना प्रभाव बढ़ानेवाले रवि राणा भी भाजपा के करीब आकर नुकसान में हैं। स्वाभिमान पक्ष के राणा 3 बार विधायक चुने गए हैैं। उनकी पत्नी नवनीत कौर राणा ने लाेकसभा का चुनाव निर्दलीय जीता है। राणा दंपति का जुड़ाव राकांपा से रहा है। निर्दलीय रहकर भी वे राकांपा का सहयोग पाते रहे हैं। अब भाजपा को समर्थन करके वे विपक्ष में आ गए हैं। 

Created On :   28 Nov 2019 4:04 PM IST

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