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महंगी फीस के कारण कोई भी न्याय से वंचित न रहे, वकील रखें ध्यान - बोबड़े
डिजिटल डेस्क, नागपुर। न्यायदान की संकल्पना और सामाजिक दायित्व के प्रति संवेदनशील और समर्पित बार (विधि वर्ग) ही न्यायपालिका को कानून के सही और रचनात्मक इस्तेमाल करने में मदद कर सकता है। सर वॉल्टर स्कॉट ने कहा है कि इतिहास और साहित्य के बगैर वकील केवल एक मैकेनिक जैसा है। लेकिन अगर उसे इन दो चीजों का ज्ञान हो तो वह स्वयं को आर्किटेक्ट कहलवा सकता है। ऐसे सुसज्ज वकीलों के कारण न्यायपालिका न्यायदान करने मंे सफल होती है। देश के मुख्य न्यायाधीश शरद अरविंद बोबड़े ने शनिवार को वकीलों का मार्गदर्शन किया। हाईकोर्ट बार एसोसिएशन द्वारा शनिवार को हाईकोर्ट परिसर मंे न्या.बोबड़े का सत्कार समारोह आयोजित किया गया था। अपने सत्कार के प्रति उत्तर में उन्होंने विधि वर्ग के स्वरूप पर विचार रखे। मुकदमे लड़ने के लिए वकीलों की महंगी फीस को उन्होंने न्यायदान की प्रक्रिया में एक मुख्य अवरोध बताया। उन्होंने कहा कि हम किसी वकील को पैसे कमाने से तो नहीं रोक सकते, लेकिन महंगी फीस के कारण कई बार जरूरतमंद न्याय से वंचित रह जाते हैं, वकीलों को इस बात का ध्यान रखना चाहिए। उन्होंने कोर्ट तक मुकदमे पहुंचने के पूर्व ही मध्यस्थता के जरिए उन्हेंे हल करने पर जोर दिया।
बौद्धिक और नेतृत्व क्षमता कमाल: न्या.लोढा : देश के पूर्व मुख्य न्यायमूर्ति आर.एम.लोढा इस कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे थे। उनके हाथों न्या.बोबड़े का सत्कार किया गया। न्या.लोढ़ा ने कहा-वर्ष 1994 में जब मैं नागपुर खंडपीठ में जज था, तब बोबड़े वकालत करते थे। तब ही उनकी प्रतिभा पहचान कर यह सोचा था कि यह वकील देश की न्यायपालिका का भविष्य है। आज बात सच साबित हुई। उन्होंने न्या.बोबड़े को बौद्धिक और नेतृत्व क्षमता वाला व्यक्ति बताया। उन्होंने टिप्पणी में कहा कि न्या.गोगोई के उलट न्या.बोबड़े के काम करने का अंदाज धीरज और शांत स्वभाव का है। न्या.बोबड़े ने हाल के दिनों में जिस तरह न्यायपालिका का नेतृत्व करते हुए इसकी छवि सुधारी है। हैदराबाद एनकाउंटर के बाद उनका बयान था कि "न्यायदान त्वरित प्रक्रिया नहीं है। यदि इसमें बदले की भावना जुड़ जाए तो यह चरित्र खो देती है" यह अत्यंत सराहनीय बयान है। ऐसे व्यक्ति के न्यायपालिका के नेतृत्व करने पर देश की न्यायपालिका नए आयाम छुएगी।
पूर्व मुख्य न्यायाधीश लोढ़ा की सलाह
देश के मुख्य न्यायमूर्ति शरद बोबड़े ने न्यायपालिका का सर्वोच्च पद संभालने के बाद न्यायदान की प्रक्रिया में तेजी लाने के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) का उपयोग बढ़ाने पर जोर दिया है। "न्यायपालिका मंे आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का उपयोग" विषय ही शनिवार को हाईकोर्ट मंे आयोजित न्या.शरद बोबड़े के सत्कार समारोह में मुख्य चर्चा का विषय बना। कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे देश के पूर्व मुख्य न्यायमूर्ति आर.एम.लोढ़ा ने न्यायपालिका मंे आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का उपयोग बढ़ाने पर चिंता जाहिर करते हुए कहा कि यह विचार ताे अच्छा है, लेकिन इसे अमल में लाने के पूर्व कई सावधानियां बरतनी जरूरी है।
तकनीक के कुछ नकारात्मक पहलू भी होते हैं। इससे सूचना के गलत निष्कर्ष की आशंकाएं बढ़ सकती हैं। भारत एक विविधता वाला देश है, ऐसे मंे न्यायदान की प्रक्रिया मंे भी विविधताएं हैं। महज एआई के उपयोग से मुकदमों का सीधा-सीधा वर्गीकरण हो सकता है।
न्याय की संकल्पना भंग नहीं होगी : न्या.बोबड़े
न्या.बोबडे ने उन्हें आश्वस्त किया कि न्यायदान में एआई के उपयोग से न्याय की संकल्पना भंग नहीं होगी। उन्होंने बताया कि वे एक हम जिस सिस्टम को लागू करने का विचार कर रहे हैं, वह 10 लाख शब्द प्रति सेकंड पढ़ने की क्षमता रखता है। मतलब हम उससे कुछ भी पढ़वा कर सुनवाई के दौरान कोई भी सवाल पूछ सकते हैं। अयोध्या मामले की सुनवाई में हमारे समक्ष हजारों पन्नों के दस्तावेज थे, ऐसी स्थिति मंे एआई के उपयोग से काम आसान हो जाता है। हम न्यायदान में मानवी समझ और विवेक मंे कोई बदलाव नहीं कर रहे हैं। एआई के उपयोग का अर्थ एक कंप्यूटर के फैसले को तीन अन्य कंप्यूटरों के पास अपील करना नहीं है।
Created On :   15 Dec 2019 6:19 PM IST