यूराेप नहीं भारत कहलाएगा डायनासोर का उत्पत्ति स्थल, आयरलैंड की परिषद में नागपुर का डंका

Now India will be termed as the origin place of Dinosaur not Europe
यूराेप नहीं भारत कहलाएगा डायनासोर का उत्पत्ति स्थल, आयरलैंड की परिषद में नागपुर का डंका
यूराेप नहीं भारत कहलाएगा डायनासोर का उत्पत्ति स्थल, आयरलैंड की परिषद में नागपुर का डंका

डिजिटल डेस्क, नागपुर। अब तक डॉयनासोर व जीव उत्पत्ति को लेकर केवल यूरोप के वैज्ञानिक ही अपने पुरातन जीवाश्मों को प्रदर्शित करते रहे हैं, लेकिन बीते सप्ताह जब आयरलैंड के डबलिन में आयोजित अंतरराष्ट्रीय पैलियो बॉटनिकल परिषद में भारत के 11 अनुसंधानकर्ताओं ने दक्कन के पठार पर मिलने वाले जीवाश्मों पर अपना शोध पत्र पेश किया तो यूरोपियन जीवाश्मों से भी पुरातन होने के इसके प्रमाण को अंतत: 300 वैज्ञानिकों को मानना पड़ा।

स्पष्ट है जीवन की उत्पत्ति की यूरोपियन थ्योरी में अब भारत का नाम जुड़ गया है। इस मुद्दे पर मुहर लग जाने से यहां के जैव विविधता, जीवाश्म तथा डॉयनासोर युग पर अनुसंधान कर रहे वैज्ञानिकों में हर्ष है। इससे अब नागपुर जिले के माहूरझरी व कोंढाली के अलावा सिरोंचा में पाए जाने वाले जीवाश्मों के संवर्धन को गति मिलेगी। दूसरी तरफ, गड़चिरोली जिले के सिरोंचा तहसील के वड़धमना में बन रहे अंतरराष्ट्रीय डॉयनासोर पार्क को साकार करने की दिशा में यह एक बड़ा कदम माना जा रहा है।  

रिसर्च में विदेशियों की मदद
दक्कन क्षेत्र में और खासकर सिरोंचा से 19 किमी दूर पाए जाने वाले डॉयनासोर एवं अन्य जीव-जंतु तथा वनस्पतियों के जीवाश्मों के लिए अब तक अमेरिका के प्लोरिडॉ यूनिवर्सिटी के डॉ. स्टीवन मैंचेस्टर, वॉशिंग्टन यूनिवर्सिटी के कॅरोलीन स्ट्रोम्बर्ग, नार्थ कॅरोलिना यूनिवर्सिटी के एलिजाबेेथ विलर, मिशिगन यूनिवर्सिटी के प्रा.सेलेना स्मिथ व डॉ. केली मातसुंगा व लंदन के हूल यूनिवर्सिटी के डॉ. माइक विडोसन ने इसके पूर्व विदर्भ व छिंदवाड़ा क्षेत्र में जीवाश्मों के अनुसंधान पर भारतीय वैज्ञानिकों के खोज में मदद की है।

सिरोंचा को भेंट देने वालों में अमेरिका के वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी के डॉ. जॉर्ज विल्सन व मिशिगन यूनिवर्सिटी के डॉ. जेफ विलसन, फ्लोरिडॉ यूनिवर्सिटी के डॉ. स्टीवन चेस्टर व मिशिगन यूनिवर्सिटी के डॉ.सेलेना व डॉ. केली मातसुंगा शामिल हैं। डॉयनासोर जीवाश्म के भारतीय विशेषज्ञ डॉ. धनंजय मोहबे, पूर्व उपसंचालक जिओलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के साथ अनुसंधान जारी है। खोज से पता चला है कि यहां के जीवाश्म करीब 5 से 7 करोड़ वर्ष पुराने हैं। इसे क्रिटेशियस काल कहा जाता है।

छिंदवाड़ा, सिवनी तक फैला था समंदर
सिरोंचा में पाए गए जीवाश्म व अनुसंधान के आधार पर वैज्ञानिकों का दावा है कि यहां केंकड़े, कछुए, शंख, सीप, वनस्पतियों में समंदरी शैवाल, अपुष्प व सपुष्प पौधे, नारियल, सुपारी, पाम, नायपा, केवडा, रायझोप्लोरा, बीज रहित केले आदि के अवशेष यह साबित करते हैं कि यह इलाका छिंदवाड़ा, सिवनी जिले तक समंदर की खाड़ी हुआ करता था। लाखों-करोड़ों वर्ष के बदलाव के कारण समंदर पीछे हटता चला गया। पृथ्वी के गर्भ में उथल-पुथल, ज्वालामुखी और भूकंप ने समंदर को पीछे धकेल दिया। करीबन 15 से 20 करोड़ पूर्व के पॅनजिया भूभाग के थेसीस सी के कारण यूरेशिया व गोंडवाना विभाजित हुआ। गोंडवाना क्षेत्र (यह नाम गोंड जनजाति की रानी दुर्गावती के काल में ब्रिटिश भूगर्भ विशेषज्ञ मेडलीकॉट ने 1872 में दिया है) करोड़ों वर्ष पूर्व ऑस्ट्रेलिया, साउथ अमेरिका, अफ्रीका, मेडॉगास्कर व न्यूजीलैंड से संलग्न था।

भारतीय वैज्ञानिकों की जीत
नागपुर, सिरोंचा, जबलपुर एवं दक्कन के अन्य इलाकों में बरसों से अनुसंधान के बाद जो शोध प्रबंध पेश किए गए है, वे जीवन की उत्पत्ति में यूरोपियन थ्योरी को बदलने के लिए काबिल है, क्योंकि भारत की भूमि जीव उत्पत्ति के पुरातन इतिहास को समेटे हुए है। जीवाश्मों का प्रमाण हमने सही ढंग से विश्व पटल पर रखा। इसके चलते सभी देशों के वैज्ञानिकों को डॉयनासोर व वनस्पतियों से जुड़े उत्पत्ति के सिद्धांत में अब बदलाव करना होगा। यह भारतीय वैज्ञानिकों की जीत है।
-डॉ. प्रा. दशरथ कापगते, भारतीय जीवाश्म वैज्ञानिक, भंडारा

सिरोंचा व नागपुर अब विश्व पटल पर 

नागपुर जिले के माहूरझरी व कोंढाली में बड़े पैमाने पर जीवाश्म पाए गए है। उल्लेखनीय है कि ब्रिटिश काल में नागपुर के बर्डी एवं टाकली क्षेत्र में पाए गए जीवाश्मों को लंदन के संग्रहालय में रखे जाने का दावा किया जाता है। वहीं वर्धा जिले के नवरगांव, सिंधीविहीरी व मरगसूर के अलावा यवतमाल जिले के झरगड, पांढरकवड़ा, वडनेर, कोंडी एवं शिबला में भी जीवाश्म मिले हैं। बुलढाणा जिले के बुलढाणा व चिखली के अलावा चंद्रपुर जिले के भारी, मराईपाटन, लेंडीगुडॉ, पुडीयाल मोहदा व शंकरलोधी में अति प्राचीन जीवाश्म पाए गए हैं। सिरोंचा के वडधम में डॉयनासोर के अलावा मछली, कछुआ, वनस्पति आदि पाए जाने से वहां डॉयनासोर पार्क का निर्माण जारी है। 

परिषद में शामिल हुए 11 अनुसंधानकर्ता
10वें यूरोपीयन अंतरराष्ट्रीय पैलियो बॉटनिकल परिषद में भारत के 11 अनुसंधानकर्ता शामिल हुए थे। इंगलैंड, चीन, अमेरिका आदि देशों के 300 वैज्ञानिकों के समक्ष दक्कन के जीवाश्मों पर भंडॉरा के वैज्ञानिक प्रा. दशरथ कापगते,  नागपुर के प्रा. वंदना सामंत, डॉ. सुबीर बेरा, डॉ. श्रीकांत मूर्ति, डॉ. स्वाति त्रिपाठी एवं अंजू सक्सेना लखनऊ ने अपने शोध प्रबंध पेश किए। नागपुर की बुलंद आवाज के चलते जीवन के उत्पत्ति के सिद्धांत में अब भारत को जोड़ने की पहल शुरू हो गई है।

Created On :   30 Aug 2018 2:01 PM IST

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