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ड्यूटी पर हाजिर न होने के आधार पर प्रमोशन रद्द करना सही - हाईकोर्ट
डिजिटल डेस्क, मुंबई। समय पर पदोन्नति के स्थान पर कर्मचारी के ड्यूटी पर हाजिर न होने के आधार पर बांबे हाईकोर्ट ने प्रमोशन रद्द करने के फैसले को सही ठहराया है। मामला महाराष्ट्र जीवन प्राधिकरण में क्लर्क के रुप में कार्यरत राजेश्वर राणे से जुड़ा है। राणे की 16 फरवरी 1981 को जूनियर क्लर्क के रुप में नियुक्ति की गई थी। 12 साल की सेवा के बाद एसुअर्ड कैरियर प्रोग्रेशन योजना का भी लाभ दिया गया। इसके बाद 15 मार्च 2000 को राणे को चिपलून में वरिष्ठ क्लर्क के रुप में प्रमोशन दिया गया। और 28 मार्च 2000 तक अपना पद भार ग्रहण करने के लिए कहा गया। प्रमोशन के स्थान पर जाने की बजाय राणे ने वरिष्ठ अधिकारियों से आग्रह किया कि उन्हें प्रमोशनवाले स्थान पर जाने के लिए चार महीने का समय दिया जाए। क्योंकि तुरंत पदोन्नति के स्थान पर जाने से उनके बच्चों की पढ़ाई प्रभावित होगी।
इसके अलावा राणे ने प्रमोशन की जगह पर न जाने के पीछे अपनी बीमारी को भी वजह बताया था। राणे ने मांग की थी कि उसे पदोन्नति के की जगह ड्युटी ज्वाइन करने के लिए उपयुक्त समय दिया जाए। तीन महीने तक जब राणे अपने प्रमोशनवाले पद पर ड्युटी पर हाजिर नहीं हुए तो प्राधिकरण ने न सिर्फ राणे का प्रमोशन रद्द कर दिया बल्कि असुअर्ड कैरियर प्रोग्रेशन योजना के तहत मिले लाभ को भी खत्म कर दिया। प्राधिकरण के इस फैसले के खिलाफ राणे ने औद्योगिक न्यायालय में आवेदन दायर किया। आवेदन में राणे ने कहा कि उसने अधिकारियों को पत्र लिखकर चार महीने के समय की मांग की थी लेकिन उसके पत्र का कोई जवाब नहीं दिया गया। यह प्राधिकरण के अनुचित व्यवहार को दर्शाता है। इसलिए उसने नए स्थान पर ड्युटी नहीं ज्वाइन की। औद्योगिक न्यायालय ने राणे के पक्ष में फैसला सुनाया। जिसके खिलाफ महाराष्ट्र जीवन प्राधिकरण ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की।
न्यायमूर्ति एमएस कर्णिक की खंडपीठ के सामने राणे की याचिका पर सुनवाई हुई।
इस दौरान प्राधिकरण की वकील ने न्यायमूर्ति के सामने कहा कि मेरे मुवक्किल ने राज्य सरकार की ओर से 8 जून 1995 के हिसाब से राणे के प्रमोशन को रद्द करने व योजना के तहत मिले लाभ को वापस लेने का फैसला किया है। क्योंकि तीन महीने बाद राणे के प्रमोशन को रद्द करने का निर्णय किया गया। इससे पहले राणे ने मेरे मुवक्किल के सामने ठाणे व पनवेल इलाके में प्रमोशन दिए जाने की इच्छा जाहिर की थी। वहीं राणे के वकील ने कहा कि औद्योगिक न्यायालय का फैसला सही उसमें दखल दिए जाने की जरुरत नहीं है। मामले से जुड़े दोनों पक्षों को सुनने के बाद खंडपीठ ने कहा कि राणे अपनी पंसद व सुविधा के हिसाब से प्रमोशन के इच्छुक थे। प्राधिकरण ने सरकार के शासनादेश के आधार पर राणे के पदोन्नति को रद्द किया। राणे को पदोन्नति के स्थान पर ड्युटी ज्वाइन करने के लिए तीन महीने का समय दिया गया। जो की उपयुक्त समय है। इस लिहाज से हमे औद्दयोगिक न्यायालय का निर्णय खामी पूर्ण नजर आ रहा है। इसलिए उसे रद्द किया जाता है। वहीं न्यायमूर्ति ने प्राधिकरण के निर्णय को सही पाया।
Created On :   13 May 2019 6:50 PM IST