थ्री इडियट्स की तर्ज पर स्टूडेंट्स ने बना दिया प्रसव पीड़ा कम करने वाला डिवाइस

On the lines of Film Three Idiots, students prepared a device to reduce labor pains
थ्री इडियट्स की तर्ज पर स्टूडेंट्स ने बना दिया प्रसव पीड़ा कम करने वाला डिवाइस
थ्री इडियट्स की तर्ज पर स्टूडेंट्स ने बना दिया प्रसव पीड़ा कम करने वाला डिवाइस

डिजिटल डेस्क, नागपुर। किसी भी महिला के लिए मां बनना सबसे सुंदर क्षण होता है। गर्भ में नौ महीने तक जीव को संभालने के बाद उसे जन्म देना सरल नहीं होता। असह्य वेदना के बाद ही नवजात का जन्म होता है। प्रसव का यह दर्द कम करने के लिए इंजीनियरिंग के दो छात्रों ने विशेष उपकरण तैयार किया है। यह उपकरण प्रसव पीड़ा कम करने के साथ ही सुरक्षित प्रसूति करने में सहायक साबित होगा। कई मामलों में सिजेरियन को टालने में भी इस उपकरण की मदद ली जा सकेगी। इस उपकरण का नाम डिवॉयस फॉर सर्विक्स डाइलेटर है। स्वास्थ्य की दृष्टि से इस उपकरण की उपयोगिता का परीक्षण हो चुका है। इस उपकरण को पेटेंट भी मिल चुका है।

शल्यक्रिया की पीड़ा होगी कम

प्रसव के समय शरीर में कोई परेशानी हुई तो पीड़ा अधिक होती है। ऐसे में डॉक्टरों द्वारा सिजेरियन डिलीवरी की सलाह दी जाती है। यह शल्यक्रिया अधिक पीड़ादायी होती है। इस पीड़ा को कम करने के लिए वानाडोंगरी के यशवंतराव चव्हाण इंजीनियरिंग कॉलेज के इंजीनियरिंग के अंतिम साल के दो छात्रों ने डिवॉयस फॉर सर्विक्स डाइलेटर तैयार किया है। छात्र कुशाग्र कुमार वंजारी और छात्रा काजल रवींद्र राय ने इसे तैयार किया है। इस उपकरण की मदद से सामान्य प्रसूति करने में आसानी होगी। अधिक परेशानी के समय में शल्यक्रिया को टालना तक संभव होगा। इसके अलावा किसी कारणवश तीन से छह महीने का गर्भ निकालना हो, तो यह कार्य भी किया जा सकेगा।

परीक्षण के बाद मिला पेटेंट

स्वास्थ्य की दृष्टि से इस उपकरण का परीक्षण हो चुका है। इसके सकारात्मक परिणाम सिद्ध हो चुके हैं। उपकरण को ऑस्ट्रेलियन इनोवेशन पेटेंट मिल चुका है। भारतीय पेटेंट के लिए आवेदन प्रक्रिया की गई है। इस उपकरण के लिए सरकार की सब्सिडी योजना के लाभ पाने का प्रयास किया जाएगा, ताकि दाम कम से कम हो और सभी को इसका लाभ मिल सके। कॉलेज के प्राध्यापक डॉ. संदीप खेडकर ने उपकरण तैयार करने तकनीकी मार्गदर्शन किया। इसी तरह सावंगी के दत्ता मेघे स्वास्थ्य विज्ञान संस्था ने मदद की। सावंगी के ही ओबीजीवाई जवाहरलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज की प्राध्यापक डॉ. अर्पिता जयस्वाल सिंघम ने स्वास्थ्य विषयक मार्गदर्शन किया। डॉ. पुनीत फुलझेले इसके प्रकल्प के समन्वयक हैं।

ऐसे करेगा काम

यह उपकरण कैथेटर ग्रीवा में डाला जाता है। ग्रीवा के भीतर जाकर यह उपकरण बलून को फुलाता है। बाद में प्रक्षेपण रॉड ट्यूब में से सुरक्षित तरीके से भीतर जाती है। प्रक्षेपण रॉड फ्लैक्स को बाहर ढकेलता है। इस तरह विघटन प्रक्रिया शुरू होती है। धीरे-धीरे प्रसार रॉड बाहर निकालकर फ्लैक्स को मूल स्थिति में लाया जाता है। गर्भाशय ग्रीवा के बाहर जगह तैयार कर फूला हुआ बलून बाहर निकाला जाता है।
 

Created On :   28 May 2021 3:19 PM IST

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