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स्वास्थ्य मंत्री के गलत निर्णय का खामियाजा परीक्षार्थियों ने भुगता
डिजिटल डेस्क, नागपुर। स्वास्थ्य विभाग के ग्रुप-सी और ग्रुप-डी में कुल 6,205 पदों पर भर्ती प्रक्रिया के लिए राज्य के 1,500 केन्द्रों पर 25 व 26 सितंबर को परीक्षा होनी थी। परीक्षा में 8 लाख छात्रों ने पंजीयन कराया था। स्वास्थ्य मंत्री राजेश टोपे ने अचानक एक दिन पहले यह परीक्षा रद्द करने की घोषणा कर दी। हालांकि, परीक्षा के लिए परीक्षार्थी शुक्रवार को ही बाहर गांव से अपने-अपने परीक्षा केंद्रों के लिए निकल पड़े थे। नागपुर में दूर-दराज से अनेक परीक्षार्थी पहुंचे। परीक्षा रद्द होने के कारण उन्हें भटकना पड़ा। कई लोगों को इस निर्णय की जानकारी तक नहीं थी।
राज्यभर से आए थे परीक्षार्थी
गड़चिरोली, वाशिम, नांदेड़ और पूरे महाराष्ट से कई छात्र नागपुर परीक्षा देने पहुंचे थे। चूंकि, उन छात्रों के लिए कोई आवास उपलब्ध नहीं था। कई छात्रों की आर्थिक स्थिति भी ठीक नहीं थी, ऐसे छात्रों को बुद्ध विहार, समाज भवनों में रुकना पड़ा। छात्रों को हुई असुविधा और मानसिक पीड़ा का सामना करना पड़ा।
यह तो हद है
इसके अलावा अनेक परेशानियों से भी जूझना पड़ा। परीक्षार्थियों ने अपनी पीड़ा को बताते हुए कहा कि, विद्यार्थियों को उनके जिले के परीक्षा केन्द्र न देकर महाराष्ट्र के बाहर या दूर-दराज के परीक्षा केन्द्र दिए गए। हद तो तब हो गई जब वाशिम जिले के एक विद्यार्थी को उत्तरप्रदेश में परीक्षा केन्द्र दिया गया। महाराष्ट्र शासन ने 7 दिन पहले ऑनलाइन व एसएमएस के माध्यम से प्रवेशपत्र नहीं दिया। मंत्री द्वारा सूचित किए जाने के बावजूद भी छात्रों को 2 दिन पहले प्रवेशपत्र प्राप्त हुए। कई छात्र प्रवेशपत्र से वंचित रह गए।
छात्राओं की सुरक्षा किसके हाथ
आशीष फुलझेले, सदस्य मानव अधिकारी संरक्षण मंच के मुताबिक स्वास्थ्य विभाग की परीक्षा होने के कारण विभिन्न स्थानों से विद्यार्थी आए थे। मुंबई में हाल में घटित घटना ने महिलाओं की सुरक्षा पर सवाल खड़े कर दिए हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि, महिलाओं की सुरक्षा की जिम्मेदारी किसके पास है। इसलिए भविष्य में छात्राओं के जिला व शहर में परीक्षा केन्द्र होने चाहिए, ताकि छात्र-छात्राओं को असुविधा का सामना न करना पड़े।
Created On :   26 Sept 2021 2:59 PM IST