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नागपुर में प्रदूषण का कहर, रोगियों की 10% से ज्यादा बढ़ी संख्या

डिजिटल डेस्क, नागपुर। संतरानगरी में पोल्यूशन ने अस्थमा मरीजों का संकट दोगुना कर दिया है। यहां तक कि अनेक रोगियों का डोज डबल करना पड़ रहा है। ऊपर से शहर में जगह-जगह निर्माण कार्य चल रहा है। सड़कें खुद गई हैं और उनसे धूल के गुबार उठ रहे हैं। इन सबके अलावा गाड़ियों से निकलने वाला धुआं और निजी निर्माण ने समस्या बढ़ा रखी है। कई बार अस्थमा पीड़ित मरीजों को देखा गया है कि स्थिति में थोड़ा सुधार आता है, तो मरीज दवाई को लेना बंद कर देते हैं। इससे समस्या और बढ़ सकती है, क्योंकि दवाई बीच में छोड़ने से फिर अस्थमा बढ़ सकता है। चेस्ट फिजीशियन डॉ. विक्रम राठी ने बताया कि शहर में पिछले एक से डेढ़ साल में ऐसे मरीजों की संख्या ज्यादा बढ़ी है।
धूल और धुआं खतरनाक
शहर की सड़क पर धूल और धुआं उड़ता रहता है। यह प्रदूषण नग्न आंखों से कुछ ही फीसदी देखने को मिलता है, लेकिन एक आम नागरिक इस समस्या का प्रतिदिन सामना करता है। घर से दफ्तर और किसी एक जगह से दूसरी जगह जब वह व्यक्ति जाता है तो बदन के खुले हिस्से पर एक काली परत जम जाती है, जबकि सूक्ष्मकण सांस नली में पहुंचकर संक्रमण करते हैं।
शरीर पर ऐसा प्रभाव
अस्थमा की बीमारी में सांस नली सिकुड़ जाती है, जिस कारण से फेफड़ों को आवश्यकतानुसार ऑक्सीजन नहीं मिल पाता है। पर्याप्त ऑक्सीजन ना मिलने के कारण रक्त एवं मांसपेशियों में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है। पर्याप्त ऑक्सीजन न मिल पाने के कारण व्यक्ति सांस लेने के लिए सामान्य से अधिक प्रयास करता है और ऑक्सीजन न मिल पाने के कारण व्यक्ति को थका-थका महसूस करने लगता है। परिवार में अस्थमा होने से बच्चों को 80 से 95% अस्थमा होने की आशंका रहती है।
खांसी-बलगम के साथ बुखार भी
डॉक्टरों की मानें तो हवा में मौजूद एनओ-टू पार्लिटकल्स खाने की नली के रास्ते हमारे शरीर में प्रवेश करते हैं, जिसके बाद हमें गले में खराश और बलगम की शिकायत होती है। शहर के सरकारी और निजी अस्पतालों के ईएनटी (कान-नाक-गला) विभाग की ओपीडी में ऐसे मरीजों की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है। यहां ऐसे मरीजों की संख्या तेजी से बढ़ रही है, जिन्हें पहले केवल खांसी और बलगम की शिकायत थी, लेकिन अचानक ही उन्हें बुखार ने अपनी चपेट में ले लिया।
इससे करें बचाव
ज्यादा ठंडे और प्रदूषण वाली जगह न जाएं। हल्का व्यायाम करें।
सांस नली में जमे विकारों को हटाएं,10 से 12 गिलास गुनगुना पानी पीएं।
फेफड़ों की जकड़न के लिए गर्म पानी से नहाएं व धूप में बैठें।
ज्यादा तेल, ठंडा व चिकनाई, अधिक मसाले आदि के अधिक सेवन से बचें।
क्या है यह बीमारी
अस्थमा एक जेनेटिक बीमारी है। आमतौर पर देखा गया है कि लोग बचपन में ही इसके चंगुल में फंस जाते हैं। प्रदूषण व जेनेटिक क्रिया के कारण लोगों में यह बीमारी देखी जाती है। सांस में सूजन व इसके छिद्रों के बंद पड़ने से अस्थमा की समस्या देखी जाती है। सांस लेने में तकलीफ, सांस छोड़ते समय आवाज निकलना, अत्यधिक खांसी का होना इस बीमारी के मुख्य लक्षण हैं। इसकी पहचान के लिए नियमित रूप रक्त परीक्षण और छाती का एक्स-रे करवाना पड़ता है।
इसलिए इसे जानना भी बेहद जरूरी
एक अध्ययन के मुताबिक बीते एक साल में शहरी क्षेत्र में प्रदूषण का स्तर करीब 15 फीसदी बढ़ गया है, जबकि अस्थमा के मरीजों की संख्या में 10 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है।
अस्थमा बीमारी से सबसे ज्यादा बच्चे और बूढ़े परेशान रहते हैं। बदलते लाइफ स्टाइल के चलते ये बीमारी बच्चों में भी फैल रही है। मौजूदा वक्त में 12 प्रतिशत शिशु अस्थमा से पीड़ित हैं।
एक अनुमान के मुताबिक सड़क किनारे मौजूद स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों को अस्थमा होने का खतरा ज्यादा होता है, क्योंकि वे लंबे समय तक प्रदूषण के संपर्क में रहते हैं और इस वजह से उन बच्चों में सूक्ष्म खनिज तत्वों की कमी देखने को मिलती है।
ठीक होने में लग रहा समय
पिछले करीब एक से डेढ़ साल में ऐसा देखने में आया कि कई मरीजों का संक्रमण ठीक नहीं हो रहा है, जिससे उनके दवा के डोज को डबल करना पड़ा। मरीजों में 15 दिन से 2 माह में ठीक होने वाली बीमारी में फिलहाल काफी समय लग रहा है। अस्थमा बीच में ठीक भी हो जाता है। मरीजों को एलर्जी के लिए इन्हेलर, खांसी के लिए दवा एवं स्टेरॉयड की गोली दे रहे हैं। अस्थमा रोगी पीईएफआर मोनिटरिंग से अपनी नियमित जांच करें और जांच रिपोर्ट सामान्य से अधिक होने पर डॉक्टर को दिखाएं।
(डॉ.विक्रम राठी, चेस्ट फिजीशियन)
Created On :   27 Aug 2018 2:52 PM IST