राज्या सभा में प्रधानमंत्री द्वारा राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव का मूल पाठ

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। प्रधानमंत्री कार्यालय राज्या सभा में प्रधानमंत्री द्वारा राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव का मूल पाठ आदरणीय सभापति जी, पूरा विश्व अनेक चुनौतियों से जूझ रहा है। शायद ही किसी ने सोचा होगा कि मानव जाति को ऐसे कठिन दौर से गुजरना पड़ेगा। ऐसी चुनौतियों के बीच इस दशक के प्रारंभ में ही हमारे आदरणीय राष्ट्रपति जी ने जो संयुक्त सदन में अपना उद्बोधन दिया, वह अपने आप में इस चुनौतियों भरे विश्व में एक नई आशा जगाने वाला, नया उमंग पैदा करने वाला और नया आत्मविश्वास पैदा करने वाला राष्ट्रपति जी का उद्बोधन रहा, आत्मनिर्भर भारत की राह दिखाने वाला और इस दशक के लिए एक मार्ग प्रशस्त करने वाला राष्ट्रपति जी का उद्बोधन रहा। आदरणीय सभापति जी, मैं राष्ट्रपति जी का तहे दिल से आभार व्यक्त करने के लिए आज आप सबके बीच खड़ा हूं। राज्यसभा में करीब 13-14 घंटे तक 50 से अधिक माननीय सदस्यों ने अपने विचार रखे, बहुमूल्य विचार रखे, अनेक पहलुओं पर विचार रखे। और इसलिए मैं सभी आदरणीय सदस्योंका हृदयपूर्वक आभार भी व्यक्त करता हूं इस चर्चा को समृद्ध बनाने के लिए। अच्छा होता कि राष्ट्रपति जी का भाषण सुनने के लिए भी सब होते तो लोकतंत्र की गरिमा और बढ़ जाती और हम सबको कभी गिला-शिकवा न रहता कि हमने राष्ट्रपति जी का भाषण सुना नहीं था। लेकिन राष्ट्रपति जी के भाषण की ताकत इतनी थी कि न सुनने के बावजूद भी बहुत कुछ बोल पाए। ये अपने-आप में उस भाषण की ताकत थी, उन विचारों की ताकत थी, उन आदर्शों की ताकत थी कि जिसके कारण न सुनने के बाद भी बात पहुंच गई। और इसलिए मैं समझता हूं इस भाषण का मूल्य अनेक गुना हो जाता है। आदरणीय सभापति जी, जैसा मैंने कहा, अनेक चुनौतियों के बीच राष्ट्रपति जी का ये दशक का प्रथम भाषण हुआ। लेकिन ये भी सही है कि जब हम पूरे विश्व पटल की तरफ देखते हैं, भारत के युवा मन को देखते हैं तो ऐसा लगता है कि आज भारत सच्चे अर्थ में एक अवसरों की भूमि है। अनेक अवसर हमारा इंतजार कर रहे हैं। और इसलिए जो देश युवा हो, जो देश उत्साह से भरा हुआ हो, जो देश अनेक सपनों को ले करके संकल्प के साथ सिद्धि को प्राप्त करने के लिए प्रयासरत हो, वो देश इन अवसरों को कभी जाने नहीं दे सकता। हम सबके लिए ये भी एक अवसर है कि हम आजादी के 75 वर्ष में प्रवेश कर रहे हैं। ये अपने-आप में एक प्रेरक अवसर है। हम जहां भी हों, जिस रूप में हों, मां भारती की संतान के रूप में इस आजादी के 75वें पर्व को हमने प्रेरणा का पर्व बनाना चाहिए। देश को आने वाले वर्षों के लिए तैयार करने के लिए कुछ न कुछ कर गुजरने का होना चाहिएऔर 2047 में देश जब आजादी की शताब्दी मनाए तो हम देश को कहां तक ले जाएंगे, इन सपनों को हमें बार-बार हमें देखते रहना चाहिए। आज पूरे विश्व की नजर भारत पर है, भारत से अपेक्षाएं भी हैं और लोगों में एक विश्वास भी है कि अगर भारत ये कर लेगा, दुनिया की बहुत सी समस्याओं का समाधान वहीं से हो जाएगा, ये विश्वास आज दुनिया में भारत के लिए बढ़ा है। आदरणीय सभापति जी, जब मैं अवसरों की चर्चा कर रहा हूं, तब महाकवि मैथलीशरण गुप्त जी की कविता को मैं उद्घोषित करना चाहूंगा। गुप्तजी ने कहा था- अवसर तेरे लिए खड़ा है, फिर भी तू चुपचाप पड़ा है। तेरा कर्म क्षेत्र बड़ा है पल-पल है अनमोल,अरे भारत उठ, आखें खोल।। ये मैथिलीशरण गुप्त जी ने लिखा है। लेकिन मैं सोच रहा था इस कालखंड में, 21वीं सदी के आरंभ में अगर उनको लिखना होता तो क्या लिखते- मैं कल्पना करता था कि वो लिखते- अवसर तेरे लिए खड़ा है,तू आत्मविश्वास से भरा पड़ा है। हर बाधा, हर बंदिश को तोड़, अरे भारत, आत्मनिर्भरता के पथ पर दौड़। आदरणीय सभापति जी, कोरोना के दौरान किस प्रकार की वैश्विक परिस्थितियां बनीं, कोई किसी की मदद कर सके ये असंभव हो गया। एक देश दूसरे देश को मदद न कर सके। एक राज्य दूसरे राज्य को मदद न कर सके, यहां तक कि परिवार का एक सदस्य दूसरे परिवार के सदस्य की मदद न कर सके; वैसा माहौल कोरोना के कारण पैदा हुआ। भारत के लिए तो दुनिया ने बहुत आशंकाएं जताई थीं। विश्व बहुत चिंतित था कि अगर कोरोना की इस महामारी में अगर भारत अपने-आप को संभाल नहीं पाया तो न सिर्फ भारत, लेकिन पूरी मानव जाति के लिए इतना बड़ा संकट आ जाएगा ये आशंकाएं सबने जताईं। कोरोड़ों लोग फंस जाएंगे, लाखों लोग मर जाएंगे।हमारे यहां भी डराने के लिए भरपूर बातें भी हुईं।
Created On :   9 Feb 2021 3:33 PM IST