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सरकारी वकील ने कहा - बदले की आड़ ले जांच से नहीं बच सकते परमबीर, जानिए - रश्मि शुक्ला का क्या था दावा
डिजिटल डेस्क, मुंबई। पूर्व मुंबई पुलिस आयुक्त परमबीर सिंह खुद के खिलाफ दर्ज आपराधिक मामलों की जांच से यह कह कर नहीं बच सकते हैं कि उनके खिलाफ प्रतिशोध के तहत शिकायते दर्ज की गई हैं। बुधवार को राज्य सरकार ने बांबे हाईकोर्ट में यह दावा किया। अदालत ने इस याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है। हाईकोर्ट में दायर याचिका में सिंह ने मुख्य रुप से राज्य सरकार की ओर से प्रारंभिक जांच को लेकर दिए गए दो आदेश को चुनौती दी है। एक आदेश में सिंह के खिलाफ ड्यूटी में लापरवाही व अनियमितता के आरोपों की जांच करने को कहा गया है, जबकि दूसरे आदेश में सिंह पर लगे कथित भ्रष्टाचार के आरोपों की पड़ताल करने को कहा गया है। सुनवाई के दौरान जब न्यायमूर्ति एसएस शिंदे व न्यायमूर्ति एन जे जमादार की खंडपीठ ने दोनों जांच की प्रगति के बारे में पूछा तो जवाब में अतिरिक्त सरकारी वकील जयेश याज्ञनिक ने कहा कि दोनों आरोपों की जांच अभी जारी है। इस पर सिंह की ओर से पैरवी कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता महेश जेठमलानी ने कहा कि जांच के विषय में मेरे मुवक्किल को अब तक कोई समन व नोटिस नहीं मिला है
वहीं महाराष्ट्र सरकार की ओर से पैरवी कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता डेरिस खंबाटा ने कहा कि सिंह की याचिका को हाईकोर्ट में नहीं सुना जाना चाहिए। क्योंकि यह सेवा से जुड़ा मामला है। इस प्रकरण को सुनवाई के लिए केंद्रीय प्रशासकीय न्यायाधिकरण के पास भेजा जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ता (सिंह) यह कह कर आपराधिक मामलों की जांच से नहीं बच सकते है कि उन्होंने (सिंह) राज्य के पूर्व गृहमंत्री के खिलाफ शिकायत की है, इसलिए प्रतिशोध के तहत उनके खिलाफ मामले दर्ज किए जा रहे हैं। यह पूरी तरह से अनुचित है। क्योंकि कोई भी कानून के ऊपर नहीं है। वहीं राज्य के पुलिस महानिदेश संजय पांडे की ओर से पैरवी कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता नवरोज शिरवई ने भी सिंह की याचिका को खारिज करने का आग्रह किया। सिंह ने पुलिस महानिदेशक पांडे पर दवाब बनाने का आरोप लगाया था। खंडपीठ ने मामले से जुड़े सभी पक्षों को सुनने के बाद इस पर अपना फैसला सुरक्षित कर लिया कि सिंह की याचिका सुनवाई योग्य है कि नहीं।
राज्य सरकार की अनुमति से फोन नंबर से जुड़ी जानकारी की थी, आईपीएस अधिकारी रश्मी शुक्ला ने कोर्ट में किया दावा
राज्य सरकार ने जुलाई 2020 में पुलिस महकमे में पुलिसकर्मियों की तैनाती व तबादले में भ्रष्टाचार की शिकायतों की प्रमाणिकता को परखने के लिए कुछ फोन नंबर पर निगरानी रखने की अनुमति दी थी। बुधवार को वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी रश्मी शुक्ला ने अपने वकील के माध्यम से बांबे हाईकोर्ट में यह दावा किया। शुक्ला की ओर से पैरवी कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता महेश जेठमलानी ने कहा कि राज्य पुलिस महानिदेशक ने मेरे मुवक्किल(शुक्ला) को पिछले साल उस समय कुछ नंबरों को इंटरसेप्ट करने का निर्देश दिया था जब वे राज्य के खूफिया विभाग की प्रमुख थी। यह नंबर कुछ दलालों के थे जिनके राजनीतिक लोगों से संबंध थे और अच्छी जगह तैनाती दिलाने के नाम पर काफी पैसे मांग रहे थे। ये लोग भ्रष्टाचार में संलिप्त थे। उन्होंने कहा कि तत्कालीन पुलिस महानिदेशक ने मेरे मुवक्किल को कुछ नंबरो पर निगरानी रखने को कहा था। इसके बाद मेरी मुवक्किल ने गृह विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव सीताराम कुंटे से इस बारे में अनुमति ली थी। हाईकोर्ट में आईपीएस अधिकारी रश्मी शुक्ला की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई चल रही है। शुक्रवार को न्यायमूर्ति एसएस शिंदे व न्यायमूर्ति एनजे जमादार की खंडपीठके सामने इस मामले की सुनवाई हुई। इस दौरान श्री जेठमलानी ने कहा कि इस मामले में मेरे मुवक्किल को बली का बकरा बनाया जाल रहा है। खंडपीठ ने फिलहाल मामले की सुनवाई 5 अगस्त तक के लिए स्थगित कर दी है। जब तक शुक्ला को कड़ी कार्रवाई से मिली राहत जारी रहेगी।
Created On :   28 July 2021 8:52 PM IST