योजना से वंचित पारधी समाज, 31% लोगों के पास ही है राशन कार्ड 

Pardhi society deprived by scheme only 31% people have the ration card
योजना से वंचित पारधी समाज, 31% लोगों के पास ही है राशन कार्ड 
योजना से वंचित पारधी समाज, 31% लोगों के पास ही है राशन कार्ड 

डिजिटल डेस्क, नागपुर। गरीबों और जरूरतमंदों के लिए सरकार वैसे तो कई योजनाएँ चला रही है।   गरीबों की भूख मिटाने के लिए  अन्न सुरक्षा कानून भी बनाया गया। जिसे 1 फरवरी 2014 को  लागू किया गया। राशन कार्ड बनाकर अंत्योदय गट के कार्डधारकों को राशन दुकान से अनाज दिया जाता है। राज्य के 7.50 करोड़ गरीबों को इस योजना का लाभ पहुंचाने का दावा किया जा रहा है। लेकिन पारधी समाज आज भी सरकारी योजनाओं से दूर है। पारधीयुक्त विकास अभियान की ओर से विदर्भ के 5 जिलों में किए गए अध्ययन रिपोर्ट में 31 प्रतिशत लोगों के राशन कार्ड बनाने का खुलासा किया है। 
अभियान की ओर से विदर्भ के नागपुर, यवतमाल, भंडारा, गोंदिया और वर्धा जिले में पारधी समाज का अध्ययन किया गया। इसमें राशन कार्ड बनाने वालों का प्रतिशत भले ही 31 प्रतिशत पाया गया, वहीं आधार कार्ड बनाने वालों का प्रमाण 80 प्रतिशत है। जंगली जानवर, पक्षियों का शिकार पारधी समाज का पारंपरिक व्यवसाय रहा है। पेट पालने के लिए इस गांव से उस गांव भ्रमण करने वाले पारधी समाज का कोई एक ठिकाना नहीं है। राशन कार्ड बनाने के लिए उनके पास रहिवासी का सबूत नहीं है। जिनके पास कार्ड है, वो लोग भी सरकारी राशन का लाभ नहीं उठा पाते। क्योंकि उनका कोई एक बसेरा नहीं है। जिस गांव में रोजी-रोटी मिलती है, वहीं उनका ठिकाना है। देश में अन्न सुरक्षा कानून लागू होने पर भी पारधी समाज को इसका कोई लाभ नहीं मिला है।
रास्ता, पानी, बिजली से वंचित : पारधी टोली (बस्ती) अधिकांश सरकारी जमीन पर बसे हैं। आजादी के 70 साल में इन बस्तियों को बिजली, पानी और रास्तों की सुविधा भी नसीब नहीं हुई है। जमीन के पट्टे नहीं होने से सरकारी योजना का लाभ भी नहीं मिल पाया है। 

मालिकाना अधिकार नहीं : पारधी समाज के 72 प्रतिशत लोगों के मकानों को मालिकाना अधिकार नहीं है। इसमें सें 43 प्रतिशत कच्चे मकान, 21 प्रतिशत कूड़ (बल्ली और ट्‌टा) के मकान और 8 प्रतिशत लोग झोपड़ियों में रहते हैं। केवल 28 प्रतिशत लोगों के पास पक्के मकान हैं।
मतदाता सूची  में नाम: अध्ययन रिपोर्ट के अनुसार पारधी समाज के 44 प्रतिशत लोगों का नाम मतदाता सूची में दर्ज िकया गया है। इसमें स्थाई तथा अस्थाई लोगों का समावेश है। राजनीतिक लाभ उठाने के िलए मतदाता पंजीयन मुहिम के दौरान जिस गांव में उनका बसेरा है, उस गांव में नाम दर्ज करने का अधिकार दिए जाने का यह परिणाम है।
नहीं देखी स्कूल: अध्ययन में बताया गया है कि समाज के 79 प्रतिशत लोगों ने स्कूल देखा ही नहीं है। जिन लोगों ने स्कूल में दाखिला करवाया, इसमें से केवल 40 प्रतिशत लोगों ने पढ़ाई आगे चालू रखी। 60 प्रतिशत ने प्राथमिक शिक्षा भी पूरी नहीं की।
नहीं है जाति प्रमाणपत्र : पारधी समाज को आरक्षण दिया गया है, परंतु जाति प्रमाणपत्र नहीं होने से सरकारी सुविधाएं नहीं मिल रही है। जाति प्रमाणपत्र के लिए 1961 का रहिवासी सबूत मांगा जाता है। उनका कोई एक पता, ठिकाना नहीं होने से रहिवासी सबूत जुटाना बस में नहीं है। इस समस्या के चलते समाज के 69 लोगों के पास जाति प्रमाणपत्र नहीं है। पारधीयुक्त विकास अभियान के प्रमुख बालासाहब रणपिसे का कहन है कि पुनर्वास नहीं होने से समाज पिछड़ गया है।   

Created On :   15 Dec 2017 2:20 PM IST

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