पर्यावरण बचाने की लड़ाई में सफलता हासिल कर बदली तस्वीर

Picture changed after achieving success in the fight to save the environment
पर्यावरण बचाने की लड़ाई में सफलता हासिल कर बदली तस्वीर
नागपुर पर्यावरण बचाने की लड़ाई में सफलता हासिल कर बदली तस्वीर

डिजिटल डेस्क, नागपुर। 27 अप्रैल 2011 का दिन न केवल मेंढा (लेखा) गांव के लिए बल्कि पूरे आदिवासी आंदोलन के लिए महत्वपूर्ण दिन था, जब गड़चिरोली जिले की धानोरा तहसील के इस गांव को 2006 के वन अधिकार अधिनियम के तहत सरकार द्वारा 1,890 हेक्टेयर वन जमीन का सामूहिक स्वामित्व प्रदान किया गया। यह अधिकार एक लंबे संघर्ष का परिणाम था। कागजों पर सीमित इन अधिकारों को वन विभाग के झमेलों से मुक्त कराने के लिए काफी जद्दोजहद करनी पड़ी थी। आदिवासी बहुल और नक्सलग्रस्त गड़चिरोली जिला मुख्यालय से लगभग 30 किलोमीटर दूरी पर बसा है -आदिवासियों का मेंढा (लेखा) गांव। यह वन पर सामूहिक अधिकार हासिल करने वाला देश का पहला गांव है। आज 100 परिवार वाले इस गांव की प्रतिवर्ष आमदनी लगभग एक करोड़ रुपए है। यह आय सामूहिक वन अधिकार कानून 2006 से प्राप्त लगभग 1,900 हेक्टेयर वन से मिल रही है। वर्ष 2018-19 में इस गांव ने दस लाख रुपए से अधिक आयकर का भुगतान किया है। पूर्व में इतनी राशि यहां वनोत्पाद की पूरी बिक्री से भी प्राप्त नहीं होती थी। साधारण से दिखने वाले इस गांव में दिन भर सूनी रहने वाली गलियां और शांत माहौल देखकर लगता ही नहीं कि यहां कुछ ऐसा है जो इसे विशेष बनाता हो, सिवाय गांव के बीचों-बीच बनी ग्रामसभा भवन पर लगे उस बड़े बोर्ड को छोड़कर,  जिस पर लिखा है, ‘दिल्ली, मुंबई में हमारी सरकार, हमारे गांव में हम ही सरकार’ तीन भाषाओं- गोंडी, मराठी और हिन्दी में लिखा यह नारा पढ़कर ही हम इस गांव की उस ताकत से रूबरू होते हैं, जो इसे दूसरे गांवों से अलग पहचान देती है। इस बोर्ड के बगल में ही एक और बोर्ड लगा है, जिस पर लिखा है- ‘माहितीचा अधिकार अधिनियम 2005’ और नीचे इस गांव को इस मुकाम तक पहुंचाने वाले देवाजी तोफा का नाम दर्ज है। आज देश-विदेश में यह मॉडल गांव के रूप में जाना जाता है लेकिन आदर्श गांव बनने की यह यात्रा कोई एक दिन की बात नहीं थी। इसके पीछे लंबे और अथक संघर्ष की दास्तां है और खुद को साबित कर दिखाने का जज्बा भी। मंेढा को ग्रामसभा में तब्दील कर उन्नति के मार्ग पर पहुंचाने के लिए देवाजी तोफा को काफी संघर्ष करना पड़ा। उनके संघर्षों के कारण ही आज गांव के पूरे परिवार सर्वसंपन्न हो पाए हैं। आदिवासियों को जल, जंगल और जमीन का हक दिलवाने वाले सामाजिक कार्यकर्ता देवाजी तोफा को गोंडवाना विश्वविद्यालय ने हाल ही में डी-लिट की उपाधि से भी नवाजा है। 

इलेक्शन नहीं सीधे सिलेक्शन 

मेंढा (लेखा) ग्रामसभा की सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि यहां फैसले लेने, नियम बनाने और उनके क्रियान्वयन की प्रक्रिया सामूहिक तौर पर की जाती है। यहां ‘इलेक्शन’ नहीं ‘सिलेक्शन’ किया जाता है। जिसमें महिलाओं और पुरुषों की समान भागीदारी होती है। किसी भी पुरुष या महिला का चुनाव तीन वर्ष के लिए किया जाता है, जो गांव वालों की सहमति से लिए गए फैसलों को क्रियान्वित करने का काम करते हैं। ग्रामसभा के पास ग्राम विकास से लेकर अन्य गांव से संबंधी सभी दस्तावेजों एवं अन्य प्रारूपों का समुचित लेखा-जोखा रहता है। ग्रामसभा में किसी भी बात के निपटारे या निर्णय लेने में विपक्ष की भूमिका भी महत्वपूर्ण होती है। इस कारण इस ग्रामसभा में एक विपक्षी सदस्य भी चुना जाता है। यह सदस्य इसी गांव का होता है और वह हर प्रकार के निर्णयों में खामियों को खोजता है। उन खामियों को भी समय रहते हल कर लिया जाता है। 

ग्राम सभा में होते हैं समेकित निर्णय

देवाजी तोफा ने गांव में एक परंपरा शुरू की है। किसी भी तरह के सरकारी कार्य करने के लिए गांव का कोई व्यक्ति रिश्वत नहीं देता। यदि किसी से रिश्वत मांगी जाती है तो इसकी शिकायत ग्रामसभा अध्यक्ष तोफा से की जाती है। शिकायत के मिलते ही ग्रामसभा का आयोजन होता है और मसले पर विस्तृत चर्चा होती है। काम किसी एक व्यक्ति का हाेने के बाद भी पूरा गांव संबंधित कार्यालय पहुंचता है और बिना रिश्वत दिए अपना कार्य पूर्ण करवाता है। आदिवासी गांव होने के बावजूद गांव का कोई भी व्यक्ति शराब का आदी नहीं है और न ही यहां शराब बेची जाती है। 

संरक्षण-संवर्धन से बढ़ी बाघों की संख्या 

तमाम सरकारी और सामाजिक प्रयासों के बावजूद देशभर में जहां बाघों की संख्या ऊपर-नीचे होती रहती है, वहीं विदर्भ में इनकी संख्या लगातार बढ़ रही है। इस साल राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) के आंकड़ों के मुताबिक, महाराष्ट्र में 312 बाघों की संख्या दर्ज की गई हैं, जिनमें से करीब 200 विदर्भ में पाए जा रहे हैं। नागपुर जिले की बात करें तो यहां वाइल्ड लाइफ एरिया व प्रादेशिक एरिया में करीब 40 बाघ मौजूद हैं। इनको मिलाकर नागपुर विभाग के जंगलों में अब 83 बाघ हैं जबकि 5 साल पहले तक इनकी संख्या उंगलियों पर गिनी जा सकती थी। बोर अभयारण्य में केवल 5 बाघ थे, जिनकी संख्या अब 7 से ज्यादा हो गई है। वहीं, उमरेड करांडला में केवल 3 बाघों की मौजूदगी थी लेकिन अब यहां इनकी संख्या 13 से ज्यादा है। पेंच में भी 40 बाघों की जगह अब 58 बाघों की संख्या दर्ज है। यही नहीं, प्रादेशिक इलाका जहां वन्यजीवों की संख्या कम होती है, ऐसी जगह पर भी 11 से ज्यादा बाघों की मौजूदगी दर्ज की गई है।
 

 

Created On :   9 Dec 2021 6:12 PM IST

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