आधुनिकता की दौड़ में संस्कारों की रक्षा करना चुनौती, साहित्यकारों पर बड़ी जिम्मेदारी - गड़करी

Protecting the rites in the race of modernity, a big responsibility on litterateurs nitin gadkari
आधुनिकता की दौड़ में संस्कारों की रक्षा करना चुनौती, साहित्यकारों पर बड़ी जिम्मेदारी - गड़करी
आधुनिकता की दौड़ में संस्कारों की रक्षा करना चुनौती, साहित्यकारों पर बड़ी जिम्मेदारी - गड़करी

डिजिटल डेस्क, नागपुर।  तेजी से आधुनिकता की ओर बढ़ रहे विश्व के सामने अपने संस्कारों के संरक्षण करने की चुनौती है। भारत देश की सबसे खास बात यह है कि, हमने अपने साहित्य, संस्कार और संस्कृति को संजोकर रखा है। ऐसे में देश भर के साहित्यकारों की यह बड़ी जिम्मेदारी बनती है कि, वे नई पीढ़ी तक साहित्य की सभी विधाओं को पहुंचाने में अहम भूमिका निभाएं। इसके लिए हमें साहित्य के विकास के लिए जरूरी सुविधाएं मुहैया करानी होगी।

 केंद्रीय मंत्री नितीन गड़करी  सीताबर्डी के माहेश्वरी सभागृह में विदर्भ हिन्दी साहित्य सम्मेलन के वार्षिक अधिवेशन मंे बतौर मुख्य अतिथि बोल रहे थे। उन्होंने आगे कहा कि, साहित्य की ताकत विश्व के किसी भी हथियार से ज्यादा होती है। गीत-साहित्य सिर्फ मनोरंजन तक सीमित नहीं है, बल्कि ये  समाज को बदलने की ताकत रखते हैं।  सड़क, पुल, मेटो जैसे इंफ्रास्ट्रक्चर के साथ हमें अपने उन संस्कारों को भी आगे बढ़ाना होगा, जहां की मिट्टी से हम बनें हैं। हमारी युवा पीढ़ी को पश्चिमी सभ्यता की कुरीतियों से बचाने के लिए भारतीय नीतिमूल्य सिखाना जरूरी है। मंच पर  सम्मेलन के प्रधानमंत्री श्री विनोद माहेश्वरी, अध्यक्ष सुरेश शर्मा, कार्यकारी प्रधानमंत्री मधुप पांडेय भी मौजूद थे। 

बुजुर्गों पर बड़ी जिम्मेदारी
अपने बचपन की यादों को ताजा करते हुए और विदर्भ हिन्दी साहित्य सम्मेलन के योगदान का उल्लेख करते हुए हुए गडकरी ने कहा कि, साहित्य-कला और संगीत में वह शक्ति है कि, वह भारत की संस्कृति को और मजबूती प्रदान कर सकती है।  बुजुर्गों पर अब यह बड़ी जिम्मेदारी है। उनको युवा पीढ़ी को ज्यादा से ज्यादा संस्कार देने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि, वैसे तो पुणे शहर को सांस्कृतिक राजधानी कहा जाता है, लेकिन नागपुर में हिन्दी और मराठी दोनों भाषाओं का कला-साहित्य काफी समृद्ध हुआ। समय के साथ सम्मेलन ने कई बदलाव किए। 

विश्व मान रहा हमारी ताकत का लोहा 
गडकरी ने कहा कि, ईरान में संस्कृत भाषा का अध्यासन है, क्योंकि वे मानते हैं कि, उनकी परशियन भाषा की जननी संस्कृत है। जर्मनी तो आयुर्वेद और योग पर भारत से ज्यादा अनुसंधान कर रहा है। कई भारतीयों को अब भी अपनी विरासत-शिक्षा पद्धति पर भरोसा नहीं है। यह एक चिंता का विषय है। समाज को अब भी अच्छे विचारकों की जरूरत है। ऐसे में  साहित्य-कला के लिए सुविधाएं और साधन भी विकसित करना जरूरी है, ताकि ज्यादा से ज्यादा युवा इससे जुड़ सकें।  कार्यक्रम में प्रेरणापुंज सम्मान नागेश पाटिल को दिया गया।  श्री रामगोपाल माहेश्वरी स्मृति प्रेरणा पुरस्कार डा. कुसुम पटोरिया, डा. विनोद नायक को प्रदान किया गया।  हिन्दी विषय में अव्वल रहने वाली गौसिया बानो और मानसी जारेल को भी इस दौरान सम्मानित किया गया। कार्यक्रम में अनंत रावल, रमेशप्रसाद शुक्ला, कुंजबिहारी अग्रवाल, विमलेश सूर्यवंशी, राजेन्द्र शुक्ला, आदेश जैन भी  उपस्थित थे। 
 

Created On :   23 Dec 2019 8:09 AM GMT

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