रेप केस : पुणे बीपीओ के आरोपियों को फांसी की सजा से राहत, सीपीआई नेता के बेटे को देना होगा डीएनए के दें रक्त का नमूना

Pune BPO Rape case convicts got relief from hanging
रेप केस : पुणे बीपीओ के आरोपियों को फांसी की सजा से राहत, सीपीआई नेता के बेटे को देना होगा डीएनए के दें रक्त का नमूना
रेप केस : पुणे बीपीओ के आरोपियों को फांसी की सजा से राहत, सीपीआई नेता के बेटे को देना होगा डीएनए के दें रक्त का नमूना

डिजिटल डेस्क, मुंबई। बांबे हाईकोर्ट ने सोमवार को राज्य सरकार द्वारा फांसी देने में हुई देरी के आधार पर विप्रो कंपनी की बीपीओ महिला कर्मचारी के साथ दुष्कर्म व हत्या के मामले में दोषी पाए गए दो दोषियों की फांसी की सजा को अजीवन कारावास में बदल दिया है। चार साल में राज्य सरकार इन आरोपियों को फांसी पर नहीं लटका सकी। मामले से जुड़े मुजरिमों को अब आजीवन कारावास के रुप में जेल में 35 साल बिताने होंगे। पहले इस मामले में दोषी पाए गए पुरुषोत्म बरोटे व प्रवीण कोकाडे को 24 जून 2019 को फांसी दी जानी थी। जिसके खिलाफ दोनों दोषियों ने अधिवक्ता युग चौधरी के मार्फत हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। याचिका में दोनों ने दावा किया था कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा उनकी फांसी की सजा की पुष्ट किए जाने के बाद उन्हें फांसी की सजा देने में चार साल एक महीने 6 दिन ( कुल 1507 दिन)  की देरी हुई है। जिसके चलते इस अवधि के दौरान हमे अनावश्यक क्रूरता व मानसिक पीड़ा सहनी पड़ी है। यह उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा सजा पुष्ट किए जाने के बाद तीन महीने के भीतर दया याचिका पर निर्णय किया जाना चाहिए। लेकिन इसमें काफी देरी हुई है। इसलिए उनकी फांसी की सजा को रद्द कर दिया जाए। न्यायमूर्ति बीपी धर्माधिकारी व न्यायमूर्ति स्वप्ना जोशी की खंडपीठ ने मामले से जुड़े दोनों पक्षों को सुनने के बाद दिए गए फैसले में साफ किया है कि दोनों याचिकार्ताओं को फांसी की सजा देने में काफी विलंब हुआ है। जो बिल्कुल भी तर्कसंगत नजर नहीं आता है। सरकार की ओर से देरी को लेकर कोई सफाई नहीं दी गई है। खंडपीठ ने कहा कि एक विभाग द्वारा दूसरे विभाग को पत्राचार के माध्यम से सूचना देना अतीत की बाते हो चुकी हैं। इसमें काफी देरी होती है, आज के डिजिटल दौर में ईमेल फैक्स, फोन व वीडियो कांफ्रेंसिग सहित संचार के अत्याधुनिक माध्यम उपलब्ध हैं जिनका सूचनाओं को भेजने व संवाद के लिए इस्तेमाल किया जाना चाहिए। इसके अलावा इस मामले में फांसी की सजा पाए प्रवीण कोकाडे को जब सत्र न्यायालय ने फांसी की सजा सुनाई थी तब उसकी उम्र महज 19 साल थी। इस तथ्य की जानकारी उसकी दया याचिका पर फैसला लेनेवाले राष्ट्रपति व राज्यपाल को नहीं पहुंचायी गई थी। इस मामले में याचिकाकर्ताओं को फांसी की सजा देनें में काफी विलंब हुआ है। इसलिए उन्हें दी गई फांसी की सजा को रद्द कर उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई जाती है। पुणे में विप्रो कंपनी के बीपीओ में कार्यरत  महिला कर्मचारी के साथ सामूहिक बलात्कार व हत्या के मामले में दोषी पाए गए पुरुषोत्म बरोटे व प्रदीप कोकाडे को सत्र न्यायालय ने 2012 में फांसी की सजा सुनाई थी। वर्ष 2012 में ही बांबे हाईकोर्ट ने भी इनकी फांसी की सजा को कायम रखा था। साल 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने सजा की पुष्टी के संबंध में हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखा था। 2016 में राज्यपाल ने दोनों मुजरिमों की दया याचिका नामंजूर कर दी थी। इसके बाद साल 2017 में राष्ट्रपति ने भी दोनों की दया याचिका खारिज कर दी थी। दोनों याचिकाकर्ता फिलहाल पुणे के येरवड़ा जेल में हैं। 

दुष्कर्म के आरोपी केरल सीपीआई नेता के बेटे को हाईकोर्ट का निर्देश 

बांबे हाईकोर्ट ने दुष्कर्म के मामले में आरोपी केरल के सीपीआई (माओवादी) नेता बालकृष्णन के बेटे बिनॉय कोडियेरी को निर्देश दिया है कि वे डीएनए जांच के लिए पुलिस को अपने रक्त का नमूना प्रदान करे। ताकि इस मामले में यह पता चल पाए की आरोपी पीड़िता महिला के बच्चे का पिता है की नहीं। कोडियेरी पर एक महिला ने शादी का झांसा देकर दुष्कर्म करने का आरोप लगाया है। शिकायत में पीड़िता ने दावा किया है कि कोडियेरी के साथ उसके साल 2009 से संबंध है और इस संबंध से उसे एक बच्चा भी हुआ है। वहीं महिला के आरोपों को निराधार बताते हुए कोडियेरी ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर खुद के खिलाफ दर्ज आपराधिक मामले को रद्द करने की मांग की है। सोमवार को न्यायमूर्ति आरवी मोरे व न्यायमूर्ति भारती डागरे की खंडपीठ के सामने याचिका सुनवाई के लिए आयी। इस दौरान सरकारी वकील ने खंडपीठ के सामने कहा कि आरोपी कोडियेरी को निचली अदालत ने अग्रिम जमानत देते समय डीएनए की जांच के लिए रक्त के नमूने देने के लिए कहा था लेकिन उसने अब तक जांच के लिए रक्त का नमूना नहीं उपलब्ध कराया है। इस पर खंडपीठ ने कहा कि निचली अदालत के आदेश का पालन होना ही चाहिए। इस पर कोडियेरी के वकील ने कहा कि उनके मुवक्किल पुलिस को रक्त के नमूने देने के लिए तैयार हैं। हमारा सिर्फ इतना ही आग्रह है कि डीएनए रिपोर्ट सील बंद लिफाफे में कोर्ट में पेश की जाए। रिपोर्ट की जानकारी शिकायतकर्ता को न दी जाए।  इसके बाद खंडपीठ ने मामले की सुनवाई 26 अगस्त तक के लिए स्थगित कर दी और कोर्ट ने अगली सुनवाई के दौरान आरोपी की डीएनए रिपोर्ट कोर्ट में पेश करने का निर्देश दिया।  
 

Created On :   29 July 2019 12:56 PM GMT

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