भीमा कोरेगांव हिंसा: आरोप पत्र दाखिल करने पुलिस को नहीं मिलेगा अतिरिक्त समय

Pune Police will not get additional time to file chargesheet
भीमा कोरेगांव हिंसा: आरोप पत्र दाखिल करने पुलिस को नहीं मिलेगा अतिरिक्त समय
भीमा कोरेगांव हिंसा: आरोप पत्र दाखिल करने पुलिस को नहीं मिलेगा अतिरिक्त समय

डिजिटल डेस्क, मुंबई। बांबे हाईकोर्ट ने भीमा कोरेगांव हिंसा मामले व माओवादियों से कथित संबंध के आरोप में गिरफ्तार आरोपी व पेशे से वकील सुरेंद्र गडलिंग को राहत प्रदान की है। हाईकोर्ट ने बुधवार को पुणे कोर्ट के उस आदेश को खारिज कर दिया है जिसके तहत गडलिंग के खिलाफ  पुलिस को आरोपपत्र  दायर करने के लिए 90 दिन का अतिरिक्त समय दिया गया था। गडलिंग ने पुणे कोर्ट के आदेश के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। न्यायमूर्ति मृदुला भाटकर ने मामले से जुड़े दोनों पक्षों को सुनने के बाद कहा कि हमें पुलिस को आरोपपत्र दायर करने अतिरिक्त समय दिए जाने का आदेश गैरकानूनी नजर आ रहा है। क्योंकि पुलिस को अतिरिक्त समय देने का मतलब आरोपी की हिरासत को बढाना है।

न्यायमूर्ति के इस आदेश के साथ ही भीमा कोरेगांव व माओवादियों से कथित संबंध के आरोप में गिरफ्तार गडलिंग व अन्य समाजिक कार्यकर्ताओं के जमानत का रास्ता भी साफ हो गया है। न्यायमूर्ति के इस फैसले के बाद सरकारी वकील ने आग्रह किया कि वे अपने आदेश पर कुछ समय के लिए रोक लगाए ताकि सरकार इस आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील कर सके। इसके बाद न्यायमूर्ति ने अपने आदेश पर 1 नवंबर तक के लिए रोक लगा दी।

पुलिस ने गडलिंग के खिलाफ भीमा कोरेगांव मामले और माओवादियों से संबंध के आरोप में गैर कानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) के तहत मामला दर्ज किया था। गडलिंग के साथ पुलिस ने प्रो.सोमा सेन, सामाजिक कार्यकर्ता सुधीर धवले व महेश राउत व अन्य लोगों को भी गिरफ्तार किया गया था।  यूएपीए कानून के तहत पुलिस को आरोपी के खिलाफ 90 दिन के भीतर आरोपपत्र दायर किया जाना चाहिए। लेकिन पुलिस ने गडलिंग के खिलाफ इस अवधि में आरोपपत्र नहीं दायर किया था। इसलिए उसने पुणे कोर्ट से आरोपपत्र दायर करने के लिए और समय की मांग की थी।

पुलिस के आग्रह पर पुणे कोर्ट ने पुलिस को 90 दिन का समय प्रदान किया था। नियमानुसार यदि आरोपपत्र दायर करने में देरी को लेकर पुलिस वैध कारण बताती है तो ही उसे अतिरिक्त 90 दिन का समय मिल सकता है। पुणे कोर्ट के इस आदेश को अवैध मानते हुए गडलिंग ने हाईकोर्ट में अपील की थी। जिसमें दावा किया गया था कि पुलिस ने मुझे जमानत से वंचित करने के लिए आरोपपत्र दायर करने के लिए अतिरिक्त समय लिया है। 

पुणे होर्डिंग हादसे में पुलिस कमिश्नर सहित 8 को नोटिस

वहीं बांबे हाईकोर्ट ने पुणे के होर्डिंग हादसे को लेकर बुधवार को  पुणे पुलिस आयुक्त के. व्यंक्टेशम, पुणे के मंडल रेल प्रबंधक मिलिंद देवस्कर व पुणे की मेयर सहित 8 लोगों को नोटिस जारी किया है। हाईकोर्ट ने यह नोटिस सामाजिक कार्यकर्ता कनीज सुकरानी की ओर से दायर न्यायालय की अवमानना याचिका पर सुनवाई के बाद जारी किया है। याचिका में दावा किया गया है कि अवैध होर्डिंग के खिलाफ कार्रवाई को लेकर हाईकोर्ट की ओर से दिए गए आदेशों का पालन नहीं किया जा रहा है। पिछले दिनों पुणे मे गिरी अवैध होर्डिंग के चलते चार लोगों की मौत हो गई थी जबकि कई लोग घायल हो गए थे।

बुधवार को न्यायमूर्ति अभय ओक व न्यायमूर्ति एमएस सोनक की खंडपीठ ने याचिका पर गौर करने के बाद पुणे पुलिस आयुक्त सहित अन्य लोगों को नोटिस जारी किया और सभी को अगली सुनवाई के दौरान मामले को लेकर हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया। सुनवाई के दौरान पुणे महानगरपालिका की ओर से पैरवी कर रहे अधिवक्ता अभिजीत कुलकर्णी ने कहा कि जो होर्डिंग गिरी है, उसे मनपा ने अनुमति नही दी थी। यह होर्डिंग रेलवे की संपत्ति पर लगाई गई थी। इसलिए मनपा की इस मामले में कोई भूमिका नहीं है। खंडपीठ ने फिलहाल मामले की सुनवाई 24 नवंबर तक के लिए स्थगित कर दी है। 

पेड़ काटने की अनुमति नहीं दे सकता मनपा का वृक्ष प्राधिकरण

बांबे हाईकोर्ट ने मुंबई महानगरपालिका के वृक्ष प्राधिकरण को पेड़ काटने की अनुमति देने से रोक दिया है। हाईकोर्ट ने कहा कि प्राधिकरण में स्वतंत्र विशेषज्ञों की नियुक्ति कानून के तहत जरुरी है इसे विकल्प के तौर पर नहीं देखा जा सकता है। न्यायमूर्ति अभय ओक व न्यायमूर्ति एमएस सोनक की खंडपीठ सामाजिक कार्यकर्ता जोरु भतेना की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई के बाद यह फैसला सुनाया है। याचिका में दावा किया गया था कि मुंबई के वृक्ष प्राधिकरण का गठन नियमों के अनुसार नहीं किया गया है। इसलिए प्राधिकरण को पेड़ों को काटने की अनुमति देने से रोका जाए। क्योंकि प्राधिकरण में सिर्फ नगरसेवक है। इसमे किसी भी विशेषज्ञ सदस्य को शामिल नहीं किया गया है।

खंडपीठ ने कहा कि आपात स्थिति में संपत्ति व लोगों की जान को खतरा होने की स्थिति में ही मनपा आयुक्त पेड़ काटने की अनुमति दे सकते हैं। लेकिन प्राधिकरण पेड़ों को काटने की अनुमति नहीं दे सकता है। मामले से जुड़े दोनों पक्षों को सुनने के बाद खंडपीठ ने कहा कि कानून में वृक्षा रोपण व  उनके संरक्षण के विषय में विशेष जानकारी रखनेवालों को प्राधिकरण में शामिल करने का प्रावधान है। इस प्रावधान का पालन करना अनिवार्य है, इसे वैकल्पिक नहीं माना जा सकता है। 

Created On :   24 Oct 2018 2:45 PM GMT

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