हिन्दी दिवस पर विशेष  - रामधारी सिंह दिनकर, महादेवी वर्मा, नंददुलारे बाजपेयी सहित देश-विदेश के साहित्यकार व विचारक आ चुके हैं छिंदवाड़ा    

Ramdhari Singh Dinkar, Mahadevi Verma, Nanddulare Bajpayee litterateurs and thinkers have come to Chhindwara
हिन्दी दिवस पर विशेष  - रामधारी सिंह दिनकर, महादेवी वर्मा, नंददुलारे बाजपेयी सहित देश-विदेश के साहित्यकार व विचारक आ चुके हैं छिंदवाड़ा    
हिंदी के मूर्धन्य साहित्यकारों का जिलेवासियों को मिला सानिध्य हिन्दी दिवस पर विशेष  - रामधारी सिंह दिनकर, महादेवी वर्मा, नंददुलारे बाजपेयी सहित देश-विदेश के साहित्यकार व विचारक आ चुके हैं छिंदवाड़ा    

 मुझे तोड़ लेना वनमाली, उस पथ पर तुम देना फेक।
मातृभूमि पर शीष चढ़ाने, जिस पथ जाएं वीर अनेक
डिजिटल डेस्क छिंदवाड़ा ।  
इस रचना के माध्यम से देशवासियों में राष्ट्रीय चेतना व आजादी की अलख जगाने वाले माखनलाल चतुर्वेदी सहित हिन्दी साहित्य को समृद्धशाली बनाने वाले देश-विदेश के अनेक मूर्धन्य साहित्यकारों, कवियों एवं विचारकों का सानिध्य जिलेवासियों को समय समय पर मिलता रहा है। साहित्यजगत में विशेष पहचान रखने  वाले छिंदवाड़ा जिले में आचार्य विनोबा भावे, आचार्य रजनीश, माखनलाल चतुर्वेदी, महादेवी वर्मा, सेठ गोविंददास, महाकवि रामधारी सिंह दिनकर, आचार्य नंददुलारे वाजपेयी सहित अनेक साहित्यकारों के आगमन की स्मृतियां जिलेवासियों के दिलों में बसी हुई हैं।
भारतीय संस्कृति से प्रभावित हुए डॉ. कामिल बुल्के ने हिन्दी सीखी और रामकथा के विकास पर किया था शोध
हिंदी प्रचारिणी समिति के साहित्य सचिव रणजीत सिंह परिहार बताते हैं कि बेल्जियम के डॉ. कामिल बुल्के भारतीय संस्कृति से प्रभावित होकर भारत आए। यहां पर उन्होंने हिन्दी सीखी और हिन्दी में साहित्य सृजन किया। उन्होंने रामकथा के विकास पर शोध भी किया था। 28 अगस्त 1966 को उनका छिंदवाड़ा आगमन हुआ था।
महादेवी वर्मा ने लिखा था-छिंदवाड़ा की जनता सांस्कृतिक प्रवृत्तियों का विकास करती चलती है:-
वर्ष 1965 में 29 अगस्त को महादेवी वर्मा का छिंदवाड़ा आगमन हुआ था। इस दौरान वे हिन्दी प्रचारिणी समिति के पुस्तकालय, वाचनालय को देखने पहुंची थीं। यहां पर रजिस्टर में उन्होंने संदेश लिखा था कि-  छिंदवाड़ा की जनता वस्तुत:  बधाई की पात्र है, जो अपनी सीमा में सांस्कृतिक प्रवृत्तियों का विकास करती चलती है।
1922 में आए थे माखनलाल चतुर्वेदी:-
अपनी रचनाओं से देशवासियों में स्वतंत्रता की अलख जगाने वाले माखनलाल चतुर्वेदी वर्ष 1922 में छिंदवाड़ा आए थे। वहीं साहित्यकार सेठ गोविंददास का वर्ष 1956 में छिंदवाड़ा आगमन हुआ था। माखनलाल चतुर्वेदी एवं सेठ गोविंददास की प्रतिमाएं हिन्दी प्रचारिणी समिति भवन परिसर में स्थापित की गई हैं।
1957 में हुआ था द्वारकाप्रसाद मिश्र का आगमन :-
हिंदी साहित्य सम्मेलन के तत्कालीन सभापति व्योहार राजेंद्र सिंह का 1944 में छिंदवाड़ा आगमन हुआ था। पंडित प्रयागदत्त शुक्ल 1956, पंडित द्वारका प्रसाद मिश्र 1957, नर्मदा प्रसाद खरे 1957, महाकवि रामधारी सिंह दिनकर 1968, आचार्य नंद दुलारे बाजपेयी 1957, आचार्य रजनीश 1960, कमलेश्वर 1970, आचार्य विनोबा भावे 1951, भवानी प्रसाद तिवारी 1960, डॉ. रामकुमार वर्मा 1966, रामेश्वर शुक्ल अंचल 1963 में छिंदवाड़ा आए थे। इसके साथ ही रामेश्वर शुक्ल अंचल, वेदप्रताप वैदिक, आचार्य राममूर्ति त्रिपाठी, डॉ. नामवर सिंह, डॉ. विष्णु नागर सहित देश-विदेश के अनेक प्रसिद्ध साहित्यकारों का आगमन शहर में हो चुका है।
साहित्य जगत में छिंदवाड़ा की विशेष पहचान:-
पंडित भगवत प्रसाद शुक्ल, मारुतिराव ओक्टे, रामप्रसाद सिंह, प्यारेलाल मिश्र, देवीदयाल चतुर्वेदी, संपतराव धरणीधर, विष्णु खरे, लीलाधर मंडलोई सहित जिले के अनेक साहित्यकारों ने साहित्य जगत में छिंदवाड़ा को अलग पहचान दिलाई है।
छिंदवाड़ा की बोली में कई भाषाओं के शब्द:-
रणजीत सिंह परिहार बताते हैं कि महाराष्ट्र के नजदीक होने से छिंदवाड़ा में महाराष्ट्रियन संस्कृति का प्रभाव रहा है। यही कारण है कि यहां बोली जाने वाली हिंदी में मराठी के कई शब्द शामिल रहते हैं। इसी तरह आदिवासी भाषाओं के शब्दों के साथ ही गुजराती, पंजाबी, बुंदेलखंडी, भोजपुरी भाषाओं के शब्दों का समावेश भी यहां की बोली में रहता है।

Created On :   14 Sep 2021 12:55 PM GMT

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