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सतपुड़ा की वादियों में मकड़ी पर रिसर्च, देहरादून से आए शोधकर्ता
डिजिटल डेस्क,छिंदवाड़ा। सतपुड़ा की वादियों बहुमूल्य संपदा के साथ ही विचित्र वन्यजीव विचरण करते है। जंगलों में इन्ही सब पर रिसर्च के लिए लोग दूर-दूर से आते है। अब देहरादून की एक टीम यहां रिसर्च करने के लिए डेरा डाले हुए है। पांच वैज्ञानिकों की टीम मकड़ी पर रिसर्च करने के लिए आई है।
गौरतलब है कि सतपुड़ा का जंगल काफी घना है। यहां मकड़ियों की कई प्रजातियां मौजूद हैं। इन्ही पर शोध करने के लिए देहरादून से 5 वैज्ञानिक तामिया में डेरा जमाए हैं। वैज्ञानिकों ने बताया कि वो साल 2010 से मकड़ियों पर रिसर्च कर रहे हैं। इस शोध के तहत 4 योजनाओं में काम किया जा रहा है। पर्यावरण मंत्रालय दिल्ली से संबद्धता डॉ.वीपी उनियाल देहरादून से आए वैज्ञानिक डॉ.अतुल भेडखे, सुभाष कावणे, सुप्रिया तलवार, श्वेता पावरिया, सोनिया काडे वन्यजीव संस्थान से संचालित एमई से पातालकोट के चिमटीपुर तक घने जंगलों में जाकर मकड़ी पर सघन रिसर्च कर रहे हैं।
यहां नेफिला फीलीपीस और नेफिया कुली दो प्रजातियां पाई जाती है। इनके 42 परिवारों की 190 जाति, 440 प्रजातियां है। मकड़ी की प्रजाति में हिपसोसिंगा, सातपुरेसी, कैंबैलीडा, घूपगडेली, हेमोटिलीना,जटाशंकरा, पाडव आरूणी शामिल है। हिपसोसिंगा जाति की मकड़ी की पहली खोज भारत ने सन 2015 में की। वहीं कैंबैलीडा जाति की मकड़ी पहली खोज एशिया के एमपी सतपुड़ा 2016 में की गई। पहले मकड़ी जाति पर 61 परिवारों की खोज हुई। बाद में दो परिवार की खोज करके भारत ने 63 परिवार किए। यह प्रजाति मानव जीवन व वृक्षों को रोग मुक्त करती हैं। वैज्ञानिकों को वन विभाग की ओर से मुख्य वन संरक्षक यूके सुबुद्धि, वनमंडलाधिकारी डॉ किरण बिसेन, उपवन मंडलाधिकारी तामिया आरएस चौहान, रेंजर जेपी त्रिपाठी, डिप्टी मोहन पांडे, फूलसिंग इनवाती ने रिसर्च में मदद की है।
Created On :   20 Aug 2017 9:22 AM GMT