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SC ने बरकरार रखा फैसला : मातंगवाड़ी निवासियों को पहले मुआवजा दें, फिर खाली कराएं जमीन

डिजिटल डेस्क, नागपुर। देश की सर्वोच्च अदालत ने महाराष्ट्र सरकार को आदेश दिया है कि वे नागपुर बेंच के आदेश का पालन करते हुए शेगांव के मातंगवाडी निवासियों को जमीनों के बदले क्षेत्र के रेडी रेक्नर से पांच गुना अधिक मुआवजा दें। नागपुर बेंच ने प्रशासन को आठ दिनों के भीतर जमीनें खाली कराने को कहा था। इसे आंशिक रूप से परिवर्तित करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि महाराष्ट्र सरकार मातंगवाडी निवासियों को मुआवजा देने के बाद ही उनकी जमीनें खाली कराएं।
सर्वोच्च न्यायालय ने प्रमोद और अन्य की याचिका पर यह फैसला दिया है। सर्वोच्च न्यायालय ने नागपुर बेंच के आदेश पर स्थगन देने से भी इंकार किया है। इस मामले में कुछ अतिक्रमणकारियों ने भी नागपुर बेंच के आदेश के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर की थी, जिसमें सर्वोच्च न्यायालय ने दखल देने से इंकार किया है। उन्हें 15 दिनों में खुद ही जगह खाली करने के आदेश दिए गए हैं।
सर्वोच्च न्यायालय ने यथावत रखा नागपुर बेंच का आदेश
दरअसल शेगांव विकास संस्था को मातंगवाड़ी और खलवाड़ी में विकासकार्य के लिए भू-खंड चाहिए, मगर इसे देने से वहां के मूल जमीन मालिकों और अतिक्रमणकारियों का विरोध था। इस मुद्दे पर केंद्रित विविध याचिकाओं पर नागपुर बेंच में एक साथ सुनवाई चल रही है। नागपुर बेंच ने 5 अप्रैल को अपना आदेश जारी किया था कि, मातंगवाड़ी के 22 भू-खंड मालिकों को उनके भू-खंड के बदले रेडीरेक्नर से पांच गुना ज्यादा मुआवजा दिया जाएगा।
इसकी प्रक्रिया क्या होगी, दरें क्या होंगी, यह तय करने के लिए हाईकोर्ट ने यहां विशेष भू-संपादन अधिकारी नियुक्त करने के लिए विभागीय आयुक्त को आदेश दिया था। इसके अलावा कोर्ट ने तय किया है कि, यहां के 11 अतिक्रमणकारियों को नई जगहों पर दुकानें दी जाएंगी। प्रत्येक दुकान का मूल्य करीब 10 लाख रुपए है। यह सारा खर्च गजानन महाराज मंदिर संस्था उठाएगी। इस प्रक्रिया में मातंगवाड़ी की करीब डेढ़ एकड़ जमीन संस्था को मिलेगी।
यह था मामला
गजानन महाराज शताब्दी महोत्सव के उपलक्ष्य में शेगांव के विकास कार्यों के लिए याचिका दायर की गई थी। अन्य तीर्थ क्षेत्रों की तुलना में शेगांव के धीमे विकास को देखते हुए राज्य सरकार ने पेयजल, सड़क और बिजली जैसी सुविधाओं के लिए करोड़ों रुपए दिए, लेकिन अतिक्रमण के चलते विकास कार्य मंद पड़ गए। न्यायालय ने वर्ष 2010 में मुख्य सचिव को नए सिरे से विकास प्रारूप तैयार करने के निर्देश दिए।
इसके बाद भी श्रद्धालुओं के लिए सुविधाएं पर्याप्त नहीं होने को लेकर एक बार फिर न्यायालय ने स्वयं जनहित याचिका दायर की थी। इसके बाद पुनर्वसन से गुजर रहे जमीन मालिकों, अतिक्रमणकारियों और अन्य संबंधित पक्षों ने भी अपनी अपनी याचिकाएं हाईकोर्ट में दायर की थी। इस याचिका में पुर्नवसन, क्षेत्र की समस्याएं, विकासकायों में आने वाली बाधाओं पर प्रकाश डाला गया था।
Created On :   11 April 2018 5:52 PM IST