गोन्सालविस और फरेरा की जमानत याचिका पर फैसला सुरक्षित
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को भीमा कोरेगाव मामले में पिछले चार साल से जेल में बंद वर्णन गोन्साल्विसस और अरुण फरेरा की जमानत याचिका पर फैसला सुरक्षित रख लिया है। वरिष्ठ अधिवक्ता रेबेका जॉन और आर बसंत ने तीन दिन तक चली सुनवाई के दौरान क्रमशः गोंजाल्विस और फरेरा की ओर से पेश होकर दलीलें दी कि जिस सामग्री के आधार पर राष्ट्रीय जांच एजेंसी ने अपीलकर्ताओं को फंसाने की कोशिश की, वह अपर्याप्त है और उसका अपीलकर्ताओं से कोई संबंध नहीं है। इस समय अगर हमें यह जवाब देना है कि क्या इस सामग्री के आधार पर उनका दोष सिद्ध किया जा सकता है, तो जवाब नहीं होगा। मूल्यांकन की समग्रता पर दोषी होने के निष्कर्ष पर आना असंभव होगा। वकीलों ने अपनी दलील में कहा कि आतंकवाद-रोधी कानून के तहत लगाए आरोपों के आधार पर तैयार किए गए दस्तावेज़ न तो अपीलकर्ताओं के इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों से बरामद किए गए थे, न ही उनके द्वारा भेजे गए या संबोधित किए गए थे। वरिष्ठ वकील ने दावा किया कि उनमें से ज्यादातर में उनके नामों का भी स्पष्ट रूप से उल्लेख नहीं किया गया था।
अपीलकर्ताओं के इस तर्क पर कि उनके खिलाफ सबूत अपर्याप्त है, कड़ी आपत्ति जताते हुए अतिरिक्त सॉलिसिटर-जनरल केएम नटराज ने जोर देकर कहा कि यूएपीए की धारा 43डी की उपधारा (5) के तहत प्रथम दृष्टया मामले के लिए रिकॉर्ड पर सामग्री 'पर्याप्त' थी। उन्होंने दावा किया कि कई दस्तावेज और गवाहों के बयान हैं जो एजेंसी के घटनाओं के संस्करण की पुष्टि करते हैं। गौरतलब है कि इस हाई प्रोफाइल मामले में सुनवाई अभी शुरू नहीं हुई है और विचाराधीन कैदी अगस्त के अंत से ही जेल में बंद हैं। कोर्ट को एजेंसी द्वारा यह भी बताया गया कि लगभग पांच साल बीत जाने के बावजूद अभी तक आरोप तय नहीं किए गए हैं। साथ ही यह भी एजेंसी 336 गवाहों से पूछताछ करना चाहती है। इस पर जस्टिस धूलिया ने एजेंसी से कहा कि आपको इतने गवाहों को जांचने की क्या जरूरत है। जबकि कम ही मामले की पुष्टि कर सकते है। दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद जस्टिस अनिरुद्ध बोस और जस्टिस सुधांशु धूलिया की बेंच ने अपना फैसला सुरक्षित रखने का फैसला किया।
Created On :   3 March 2023 10:42 PM IST