'सेल्फ वाटरिंग सिस्टम ट्री गार्ड’ से बचाए जाएंगे पेड़

Self-Watering System: Trees Will Be Saved by Tree Guard
'सेल्फ वाटरिंग सिस्टम ट्री गार्ड’ से बचाए जाएंगे पेड़
'सेल्फ वाटरिंग सिस्टम ट्री गार्ड’ से बचाए जाएंगे पेड़

डिजिटल डेस्क, नागपुर।  सरकार पौधारोपण पर  करोड़ों रुपए खर्च करती है लेकिन उसका संरक्षण उस अनुरूप नहीं हो पाता। पौधारोपण की अपेक्षा पौधों के जीवित रहने की दर काफी कम होती है। इसका मुख्य कारण पौधों की सिंचन व्यवस्था में कमी और उनकी देख-रेख का अभाव होता है, लेकिन इस गिरते दर को संभालने का मार्ग मिलता दिखाई दे रहा है। शहर के जैव विविधता विशेषज्ञ मनोज टावरी ने एक ऐसे ‘सेल्फ वाटरिंग सिस्टम ट्री गार्ड’ को विकसित किया है, जो न केवल पौधों को बड़े होने तक उसकी रक्षा करते हैं, बल्कि उसे लगातार पानी से सिंचित करने में भी सक्षम हैं, जिससे उनके बचे रहने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं। अब तक उनके द्वारा 6-7 तक के करीब 4 हजार पौधे लगाए जा चुके हैं, जिसके जीवित रहने का रेट शत-प्रतिशत होने का दावा उन्होंने किया है। 

लगे होते हैं रबर के वॉल्व
प्रेस कांफ्रेंस में टावरी ने बताया कि कि जून-जुलाई माह में पौधारोपण अभियान के प्रेशर को इस तकनीक से खत्म किया जा सकता है, क्योंकि इसे किसी भी समय में कहीं पर भी बड़ी आसानी से साल भर लगाया जा सकता है। नर्सरी में ऐसे पौधों को 6 फीट ऊंचाईवाले ईकोफ्रेंडली प्लास्टिक पाइप में लगाया जाता है। इन पाइपों के निचले हिस्से में रबर के वॉल्व लगे होते हैं। साथ ही सलाइन पाइप जैसे पतले पाइपों को डीप रूट इरिगेशन अर्थात जड़ों तक की सिंचाई करने के लिए पतली पाइपों को लगाया जाता है। पौधे लगाने के बाद इसमें हर दस से पंद्रह दिन में एक बार दस से पंद्रह लीटर पानी डाला जाता है। इससे इसकी जड़ें गीली रहती हैं और सीधे जड़ों की गहराई तक पानी को पोषण करती हैं। 

मवेशियों से खतरा नहीं
टावरी बताते हैं कि पाइप का आकार 6 फीट रखने से इसके नुकसान होने के मवेशियों से खतरा खत्म हो जाता है, साथ ही बच्चों आदि का भी डर नहीं रह जाता। आम तौर पर लोहे के ट्री गार्ड को बनाने के लिए करीब 1600 रुपए तक खर्च करने पड़ते हैं, जबकि इसे 850 रुपए में तैयार किया जा सकता है। असुरक्षित स्थानों में थोड़े जनसहयोग से इसे बड़े पैमाने पर लगाया जा सकता है। जुलाई माह से शुरू किए गए इस पौधारोपण अभियान की सफलता दर शत-प्रतिशत पाए जाने की भी उन्होंने जानकारी दी। 

अपने आप टूट जाते हैं पाइप
इन पौधों में  खाद भी डाला जा सकता है, ताकि इसके पोषक तत्वों को सही अनुपात में बढ़ाया जा सके। पौधों के तने जब पाइप की गोलाई के आकार तक बढ़ जाते हैं, तो यह ईकोफ्रेंडली पाइप को अपने आप तोड़ डालते हैं। बायोडायवर्सिटी कंसलटेंट दिलीप चिंचमलातपुरे ने भी टावरी के इस अनोखे ईजाद की सराहना करते हुए इसे सफल प्रयोग करार दिया। चिंचमलातपुरे ने कहा कि पाइप के फ्रेम के भीतर पौधे लगने से इसका तना सीधा और एक आकार का मिलेगा, जिससे इसकी कमर्शियल वैल्यू भी बाद में अच्छी पाई जा सकती है।  

प्रायोगिक तौर पर लगाए गए पौधे शत-प्रतिशत जीवित
अब तक शहर में लक्ष्मीनगर, रवि भवन,  विकास नगर, भट्ट सभागृह आदि कुछ इलाकों में प्रायोगिक तौर पर लगाया गया है। इसी तरह गड़चिरोली जिले के सिरोंचा और अहेरी प्रत्येक में हजार-हजार पौधे लगाए गए। वहीं गुजरात में भी 1 हजार पौधे ऐसे ही लगे हैं। सभी के जीवित रहने की दर शत-प्रतिशत बताई जा रही है।

Created On :   26 March 2018 1:44 PM IST

और पढ़ेंकम पढ़ें
Next Story