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मीटिंग तक सीमित रह गई शिवसेना, संपर्क नेता बदला, संगठन को मजबूत करने की कवायद

डिजिटल डेस्क, नागपुर। राज्य में सत्ता गठबंधन का नेतृत्व कर चुकी शिवसेना विदर्भ में केवल मीटिंगों तक सीमित नजर आने लगी है। विशेषकर पूर्व विदर्भ में सेना केवल कुछ कार्यकर्ताओं की पार्टी बनकर रह गई है। ऐसे में शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने एकाएक संपर्क नेता बदलकर चुनाव तैयारी का निर्णय लिया है।
लंबे समय तक इस क्षेत्र में संगठनात्मक कार्य संभालते रहे गजानन कीर्तिकर को विदर्भ का संपर्क प्रमुख बनाया गया है। कीर्तिकर को पूर्व विदर्भ में नागपुर, रामटेक, चंद्रपुर, वर्धा व गोंदिया-भंडारा लोकसभा क्षेत्र की जिम्मेदारी दी गई है। दिवाकर रावते को विदर्भ के बजाय पश्चिम महाराष्ट्र में 5 लोकसभा क्षेत्र की जिम्मेदारी दी है। संगठनात्मक कार्य के लिहाज से देखा जाए तो शहर में भी शिवसेना कुछ कार्यकर्ताओं तक ही सीमित नजर आ रही है। 7 साल से कार्यकारिणी विस्तार की कवायद चल रही है। शहर के संपर्क प्रमुख बदले, जिला प्रमुख बदले,कई बार यहां से कार्यकर्ताओं के नामों की सूची मुंबई तक पहुंची लेकिन कार्यकारिणी नहीं बन पायी है।
कीर्तिकर पहले भी रहे हैं संपर्क नेता
गजानन कीर्तिकर मुंबई से लोकसभा सदस्य भी हैं। वे पहले भी विदर्भ में संपर्क नेता रहे हैं। बाल ठाकरे के नेतृत्व में जब शिवसेना आक्रामक राजनीति कर रही थी तब कीर्तिकर विशेष तौर से पूर्व विदर्भ में शिवसेना की जमीन तैयार करने में लगे थे। 1992 से 2000 तक वे यहां की राजनीति में सक्रिय रहे। शिवसेना के नेतृत्व की युति सरकार के समय वे गृहराज्यमंत्री रहते हुए भी संपर्क नेता थे। लेकिन बाद में वे एकाएक यहां से हटा दिए गए। यह भी कहा सुना जाता है कि कीर्तिकर को शिवसेना में ही गुटबाजी का शिकार होना पड़ा। उद्धव ठाकरे के करीबी मिलिंद नार्वेकर एकाएक सक्रिय व प्रभावी हुए। राज्य समेत विदर्भ में संगठन कार्य की अप्रत्यक्ष कमान नार्वेकर के हाथ में चली गई।
संगठन की स्थिति पर दुख जताने वाले कार्यकर्ताओं की सुने तो नार्वेकर का शिवसेना में प्रभाव बढ़ने से भाजपा को लाभ मिला। भाजपा के बड़े नेताओं के साथ नार्वेकर के अच्छे संबंध बने। लेकिन विदर्भ में शिवसेना साफ हो गई। शहर प्रमुख, जिला प्रमुख,जिला संपर्क प्रमुख जैसे महत्वपूर्ण पद केवल नाम के रह गए। हर निर्णय मुंबई से लिए जाने लगे। 7 साल से नागपुर में कार्यकारिणी विस्तार का मामला भी मुंबई में ऐसा अटका है कि यहां के जिला प्रमुख या संपर्क प्रमुख केवल इंतकार करने की दिलासा कार्यकर्ताओं को दिलाते रहते हैं। संपर्क नेता के तौर पर दिवाकर रावते, दीपक सावंत या अन्य सभी की स्थिति केवल मातोश्री के दूत की बनकर रह गई।
शहर में कैसे बढ़ेगा संगठन
स्वयं को निष्ठावान कार्यकर्ता मानने वाले शिवसेना की सुने तो उन्हें सबसे अधिक संगठन के बढ़ने को लेकर चिंता है। उनका कहना है कि नागपुर या विदर्भ में संगठन का कार्य ही नहीं हो रहा है। मुंबई में मातोश्री से जुड़े कुछ नेता यहां आते रहते है। फिर चले जाते हैं। यहां केवल गुटबाजी रह जाती है। विभाग स्तर की संगठन समीक्षा की औपचारिकता केवल होती है। शहर में ही देखें तो यहां शिवसेना के संगठन कार्य को गति नहीं मिल पा रही है। कुछ समय पहले मुंबई से विधान परिषद सदस्य अनिल परब को जिला संपर्क प्रमुख बनाकर भेजा गया था। वे दो बार कार्यकर्ताओं की मीटिंग ही ले पाए। बड़े बदलाव के वादे-दावे को अधूरा छोड़कर वापस लौट गए। उसके बाद तानाजी सावंत को जिला संपर्क प्रमुख बनाया गया। सावंत भी विधानपरिषद सदस्य है। स्थिति यह रही कि 2017 के मनपा चुनाव में सावंत नागपुर तक नही पहुंच पाए।
परिवहन मंत्री दिवाकर रावते को जिम्मेदारी दी गई। वे भी कुछ अलग नहीं कर पाए। लंबे समय तक सतीश हरडे जिला प्रमुख पद के प्रभारी रहे। स्थायी जिला प्रमुख के तौर पर प्रकाश जाधव को नियुक्त किया गया। जाधव रामटेक से सांसद रहे हैं। पुराने शिवसैनिक हैं। लेकिन वे भी संगठन विस्तार नहीं कर पाए। हद तो यह रही कि जाधव की उपस्थिति में ही मुंबई के नेताओं के सामने प्रश्न उठने लगे कि शहर संगठन में 2 जिला प्रमुख नियुक्त किए जाए। जाधव द्वारा प्रस्तावित शहर पदाधिकारियों की सूची सोशल मीडिया में घूमती रह गई। अब पुन: संकेत दिए जा रहे हैं कि शहर संगठन के काम के लिए नए संपर्क प्रमुख व जिला प्रमुख मिलनेवाले हैं।
Created On :   10 Aug 2018 3:41 PM IST