दाभोलकर व पानसरे मामले में जांच एजेंसी को मिली समानता

Similarities found in investigation agency on Dabholkar and Pansare case
दाभोलकर व पानसरे मामले में जांच एजेंसी को मिली समानता
दाभोलकर व पानसरे मामले में जांच एजेंसी को मिली समानता

डिजिटल डेस्क, मुंबई। सीबीआई व महाराष्ट्र सीआईडी ने बांबे हाईकोर्ट को सूचित किया है कि उसने कुछ हद तक सामाजिक कार्यकर्ता नरेंद्र दाभोलकर व गोविंद पानसरे की हत्या के मामले में समानता को साबित किया है। न्यायमूर्ति एससी धर्माधिकारी व न्यायमूर्ति गौतम पटेल के सामने सीबीआई व सीआईडी के वकीलों ने दावा किया कि पानसरे व दाभोलकर मामले से जुड़े सारे आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया गया है लेकिन आरोपियों द्वारा अपराध को अंजाम देने के लिए इस्तेमाल किया गया हथियार अब तक नहीं मिला है। सीबीआई दाभोलकर मामले की  जबकि सीआईडी पानसरे मामले की जांच कर रही है। सीबीआई की ओर से पैरवी कर रहे एडिशनल सालिसिटर जनलर अनिल सिंह ने कहा कि सीबीआई एक महीने के भीतर इस मामले में इस्तेमाल  किए गए हथियार की तलाश के लिए आपरेशन शुरु करेगी। क्योंकि वारदात को अंजाम देने के बाद पिस्तोल को नष्ट करके ठाणे की खाड़ी में फेका गया है। हथियार की तलाश के लिए सीबीआई अपना आपरेशन शुरु कर सके इसके लिए वह सरकार से जरुरी अनुमति का इंतजार कर रही है।  इस पर खंडपीठ ने कहा कि सीबीआई को अपने आपरेश की शुरुआत में देरी नहीं करना चाहिए। हो सके तो बरसात की शुरुआत से पहले अपना काम शुरु कर दे। वहीं महाराष्ट्र सीआईडी की ओर से पैरवी कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता अशोक मुंदरगी ने कहा कि प्रकरण से जुड़े मुख्य साजिशकर्ता को गिरफ्तार कर लिया गया है। अब सिर्फ पानसरे पर हमला करनेवाले की तलाश जारी है। इस पर खंडपीठ ने कहा कि क्या जांच के दौरान जांच एजेंसी को इन दोनों मामलों में कोई समानता मिली है? इस सवाल का सकारात्मक जवाब देते हुए श्री मुंदरगी ने कहा कि कुछ हद तक दोनों मामलों में काफी समानता मिली है जिसे साबित किया गया है।  इस दलील पर खंडपीठ ने कहा कि हमे इस मामले में कुछ कमी महसूस हो रही है लेकिन एक दिन हत्यारे जरुर पकड़े जाएगे। खंडपीठ ने कहा कि सत्तासीन नेता जो जनता से शांति व संवैधानिक अधिकारों के सरंक्षण का वादा करते है वे आश्वस्त करे की जांच एजेंसी को हर संभव सहोयग व मार्गदर्शन मिले। खंडपीठ के सामने दाभोलकर व पानसरे के परिजनों की ओर से दायर याचिकाओं पर सुनवाई चल रही है। गौरतलब है कि दाभोलकर की पुणे में 20 अगस्त 2013 को हत्या की गई थी जबकि पानसरे की 16 फरवरी 2015 को कोल्हापुर में गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। 

सरकार के हलफनामा दायर न करने से हाईकोर्ट में नहीं हो सकी सुनवाई

इसके अलावा एक मामले में केंद्र व राज्य सरकार की ओर से हलफनामा न दायर किए जाने के चलते बांबे हाईकोर्ट ने फांसी की सजा पाए दो मुजरिमो की ओर से दायर याचिका पर 19 जून को सुनवाई रखी है। अदालत ने सरकार को मामले से जुड़ी फाइल व दस्तावेज अगली सुनवाई के दौरान कोर्ट में लाने को कहा है। इससे पहले सरकार की ओर से जवाब दायर करने में हो रही देरी के आधार पर याचिकाकर्ता के वकील युग चौधरी ने न्यायमूर्ति बीपी धर्माधिकारी व न्यायमूर्ति स्वप्ना जोशी की खंडपीठ के सामने फांसी की सजा पर रोक लगाने की मांग की। सरकार ने फांसी की सजा पाए दोनों मुजरिमों की फांसी की तारीख 24 जून को तय की है। चौधरी ने कहा कि अदालत ने 6 जून को केंद्र व राज्य सरकार को हलफनामा दायर करने को कहा था लेकिन अब तक सरकार का कोई जवाब नहीं आया। इसलिए 24 जून को तय की गई फांसी की सजा पर रोक लगा दी जाए और फिर सरकार जितना चाहे उसे उतना वक्त दे दिया जाए। क्योंकि सरकार के इस रुख के चलते मेरे मुवक्किल व उनके परिजन काफी परेशान हैं। राज्य के महाधिवक्ता आशुतोष कुंभकोणी ने फांसी की सजा पर रोक लगाने का विरोध किया। उन्होंने कहा कि हमे थोड़ा वक्त दिया जाए। इस दौरान केंद्र सरकार की ओर से पैरवी कर रहे अधिवक्ता हितने वेणेगांवकर ने भी समय की मांग की। इसके बाद खंडपीठ ने मामले की सुनवाई 19 जून तक के लिए स्थगित कर दी। 

2012 में पुणे सत्र न्य़ायालय ने सुनाई थी सजा 

मामला पुणे में विप्रो कंपनी में कार्यरत एक महिला कर्मचारी के साथ सामूहिक बलात्कार व हत्या के मामले में दोषी पाए गए पुरुषोत्म बरोटे व प्रदीप कोकाटे से जुड़ा है। कोर्ट ने इन दोनों को फांसी की सजा सुनाई है। दोनों ने याचिका में दावा किया है कि उनकी फांसी की सजा को लागू करने में बहुत देरी की गई है। यह उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि फांसी की सजा को लागू करने में चार साल (1509 दिन) की देरी हुई है। जिसके चलते इस अवधि के दौरान हमे अनावश्यक क्रूरता व मानसिक पीड़ा की सजा भुगतनी पड़ी है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा सजा की पुष्टि किए जाने के बाद तीन महीने के भीतर दया याचिका पर निर्णय किया जाना चाहिए। लेकिन इसमें देरी हुई इसलिए हमे (याचिकाकर्ता) लगा कि सरकार ने हमारी सजा माफ कर दी है। फांसी की सजा के खिलाफ की गई दोनों मुजरिमों की अपील रद्द की जा चुकी है। साल 2017 में राष्ट्रपति ने भी दोनों मुजरिमों की दया याचिका को नामंजूर कर दिया था। अब इन दोनों की फांसी की तारीख 24 जून 2019 को तय की गई है। मार्च 2012 में दोनों याचिकाकर्ताओं को पुणे सत्र न्यायालय ने विप्रो कंपनी की बीपीओ कर्मचारी के साथ दुष्कर्म व हत्या के लिए फांसी की सजा सुनाई थी। साल 2012 में ही हाईकोर्ट ने दोनों की फांसी की सजा पुष्टि की थी। साल 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने सजा की पुष्टी के संबंध में हाईकोर्ट के फैसले को कायम रखा था। 2016 में राज्यपाल ने दोनों मुजरिमों की दया याचिका नामंजूर कर दी थी। इसके बाद साल 2017 में राष्ट्रपति ने भी दोनों की दया याचिका खारिज कर दी थी। दोनों याचिकाकर्ता फिलहाल पुणे के येरवदा जेल में बंद है। 

Created On :   14 Jun 2019 3:24 PM GMT

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