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सिंधी समाज के पट्टाधारकों को मिलेगा मालिकाना हक

डिजिटल डेस्क, नागपुर। भारत-पाकिस्तान के विभाजन के दौरान पश्चिमी पाकिस्तान से आए निर्वासितों एवं विस्थापितों को मुआवजे के तौर पर मिली जमीन (कंपनसेशन पूल प्रॉपर्टीज) को लेकर सकारात्मक कदम उठाते हुए राज्य सरकार ने जिला प्रशासन को संबंधित लीज भूमि का सर्वेक्षण एवं पुनर्मूल्यांकन करने का आदेश दिया है। 14 जून को सरकार द्वारा जारी किए गए जीआर से सिंधी समाज एवं संबंधित अन्य निर्वासितों में हर्ष की लहर है। सरकार के इस फैसले से राज्य के 50 लाख एवं नागपुर शहर के करीब 20 हजार निर्वासित निवासियों एवं व्यावसायिक भूमिधारकों को लाभ मिलेगा। सिंधी समाज ने सरकार के इस ऐतिहासिक निर्णय का स्वागत करते हुए मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और केंद्रीय मंत्री नितीन गडकरी का आभार माना है।
अतिक्रमित भूमि पर भी विचार
राज्य में करीब 30 स्थानों पर निर्वासितों की बस्तियां बसाई गई थीं। संपत्ति व अतिक्रमण के मालिकाने हक के लिए वर्षों से निर्वासित नागरिक संघर्षरत थे। मंत्रिमंडल में इस विषय पर विस्तार से चर्चा करने के बाद सरकार ने सभी क्षेत्रीय राजस्व अधिकारियों को दिशा-निर्देश देते हुए स्वयं सर्वेक्षण कर पुनर्मूल्यांकन के आदेश दिए हैं। निवासी व व्यावसायिक भूमि के अलावा अतिक्रमित भूमि का भी इसमें विचार किया जाएगा। जिलाधिकारी को इस मामले में प्रमुख जिम्मेदारी देते हुए विशेष मुहिम चलाने हेतु कालबद्ध कार्यक्रम का नियोजन करने की सूचना दी गई है।
प्रक्रिया को मिलेगी गति
सिंधी समाज की वर्षों से लंबित लीज पट्टों की समस्या का स्थाई समाधान करने के लिए सरकार ने जीआर जारी किया है। सरकार के इस फैसले से भूमि अधिकार की प्रक्रिया को अब गति मिलेगी। बताया जाता है कि 1954 के अधिनियम निर्वासित इसम (नुकसान भरपाई व पुनर्वसन) के अनुसार पुनर्वास का निर्णय लिया गया था। धारा 34 के अनुसार केंद्र सरकार ने अपने अधिकार 1971 से महाराष्ट्र सरकार को दिए हैं।
विभाजन के दौरान अपनी संपत्ति, जमीन आदि के साथ पाकिस्तान छोड़ कर विस्थापित हुए सिंधी समाज को राहत दिलाते हुए भारत में बसाने के लिए इस अधिनियम की धारा 20 के अनुसार संपत्ति भरपाई संकोष के माध्यम से भूमि पट्टे आवंटित किए गए थे, परंतु शरणार्थियों की तरह अनेक परेशानियों में जीवन-यापन करने के बावजूद इस भूमि के मालिकाना हक व नियमित करने में वर्षों से दिक्कतें पेश आ रही थीं। अब राज्य सरकार ने फैसला लेते हुए सभी जिलों के जिला प्रशासन को तत्काल इस संदर्भ में योजना बद्ध तरीके से विशेष मुहिम चलाकर सर्वेक्षण एवं पुनर्मूल्यांकन करने के निर्देश दिए हैं।
70 वर्ष से जारी था संघर्ष
सिंधी समाज के नेता व मनपा स्थाई समिति के सभापति वीरेंद्र कुकरेजा ने बताया कि सिंधी समाज के लीज पट्टाधारकों की समस्याओं को लेकर बीते 70 वर्षों से संघर्ष जारी था। पिछली सरकारों ने इस मांग पर ध्यान नहीं दिया। अनेक मोर्चे निकाले गए, सैंकड़ों बार ज्ञापन सौंपे गए। पश्चात 2014 में विविध संस्थाओं के पदाधिकारियों को साथ लेकर राज्य के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस व केंद्रीय मंत्री नितीन गडकरी से भेंट कर इस विषय की अहमियत बताई गई। अब जाकर सरकार ने सकारात्मक पहल की है।
Created On :   16 Jun 2018 5:27 PM IST