Bombay High Court : डॉक्टरों पर हमले रोकने मौजूदा कानून पर्याप्त, निजी गैर अनुदानित मेडिकल कॉलेज की 85% सीटें स्थानीय

State government said- existing law is enough to stop attacks on doctors
Bombay High Court : डॉक्टरों पर हमले रोकने मौजूदा कानून पर्याप्त, निजी गैर अनुदानित मेडिकल कॉलेज की 85% सीटें स्थानीय
Bombay High Court : डॉक्टरों पर हमले रोकने मौजूदा कानून पर्याप्त, निजी गैर अनुदानित मेडिकल कॉलेज की 85% सीटें स्थानीय

डिजिटल डेस्क, मुंबई। साल 2017 से मार्च 2021 के बीच स्वास्थ्य सेवा के पेशे से जुड़े हुए लोगों पर किए गए हमले को लेकर पूरे राज्य भर में 302 मामले दर्ज किए गए है। इसमें से 231 मामले तो सिर्फ पिछले साल दर्ज किए गए है। डाक्टरों व मेडिकल स्टाफ के साथ हिंसा को रोकने के लिए मौजूदा कानूनी प्रावधान पर्याप्त है। राज्य सरकार ने बांबे हाईकोर्ट में दायर किए गए हलफनामे में इस तथ्य का खुलासा हुआ है। यह हलफनामा डाक्टर राजीव जोशी की ओर से दायर जनहित याचिका के जवाब में दायर किया गया है। हलफनामे में कहा गया है कि भारतीय दंड संहिता व महाराष्ट्र मेडिकेयर सर्विस पर्सन एक्ट 2010 के प्रावधानों तहत स्वास्थयकर्मियों पर हमला करनेवाले लोगों के खिलाफ कार्रवाई की जाती है। स्वास्थ्यकर्मियों की सुरक्षा के सरकारी अस्पतालों में लिए स्टेट सिक्योरिटी कार्पोरेशन के 1088 सुरक्षाकर्मियों को तैनात किया गया है। याचिका में दावा किया गया है कि महाराष्ट्र में स्वास्थयकर्मियों पर हिंसा के सबसे ज्यादा मामले सामने आते है। याचिका में दावा किया गया है कि सरकार महाराष्ट्र मेडिकेयर सर्विस पर्सन एक्ट 2010 के प्रावधानों को कड़ाई से लागू नहीं कर रही है। इसलिए सरकार को इस कानून को प्रभावी तरीके से लागू करने का निर्देश दिया जाए। 

निजी गैर अनुदानित मेडिकल कॉलेज की 85% सीटे स्थानीय

वहीं बांबे हाईकोर्ट ने निजी गैर अनुदानित मेडिकल कालेज में 85 प्रतिशत सीटें स्थानीय छात्रों के लिए आरक्षित रखने के राज्य सरकार के निर्णय को सही माना है। हाईकोर्ट ने कहा कि सरकार ने यह निर्णय स्थानीय व क्षेत्रिय जरुरतों को ध्यान में रखते हुए लिया है। महाराष्ट्र सरकार का यह फैसला देश के अन्य राज्यों द्वारा मेडिकल कालेजों में एडमिशन को लेकर अपनाई गई नीति के विपरीत नहीं है। सरकार ने इसके लिए कानून बनाया है। जो सही नजर आ रहा है। इसलिए सरकार के फैसले के खिलाफ दायर की गई याचिका को खारिज किया जाता है। इस विषय पर असम की एक व मध्य प्रदेश की एक छात्रा तथा अन्य लोगों ने कोर्ट में याचिका दायर की थी। मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता व न्यायमूर्ति गिरीष कुलकर्णी की खंडपीठ के सामने याचिका पर सुनवाई हुई। सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से पैरवी कर रहे अधिवक्ता वीएम थोरात ने कहा कि सरकार का 85 प्रतिशत सीटे यहां के बच्चों के लिए रखने का निर्णय असंवैधानिक है। क्योंकि यह निर्णय भेदभावपूर्ण है। इस निर्णय के चलते यहां से ज्यादा योग्य बाहर के बच्चों को दाखिला नहीं मिल पाता है। जबकि उन्हे मेडिकल के दाखिले के लिए ली जानेवाली नीट की परीक्षा में यहां के मुकाबले बाहर के बच्चों को ज्यादा अंक मिलते हैं। सरकार का यह निर्णय मैरिट से समझौता करता है। इसके अलावा सरकार निजी गैर अनुदानित मेडिकल कालेज को कुछ नहीं देती है। ऐसे में दाखिले को लेकर इतना कड़ा नियम नहीं लागू किया जा सकता है। 

वहीं राज्य के महाधिवक्ता आशुतोष कुंभकुणी ने राज्य सरकार के निर्णय को तार्किक व न्यायसंगत बताया। उन्होंने कहा कि सरकार ने एक उद्देश्य के तहत यहां के विद्यार्थियों के लिए 85 प्रतिशत सीटे आरक्षित की है। मामले से जुड़े सभी पक्षों को सुनने के बाद खंडपीठ ने सरकार की ओर से एडमिशन को लेकर 85 प्रतिशत सीट से जुड़े आरक्षण को सही माना और याचिका को खारिज कर दिया। 

 

Created On :   12 March 2021 5:48 PM IST

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