सज-धज कर छाने को बेताब मिट्‌टी के देवता, 100 करोड़ से अधिक का है मूर्ति कारोबार

Statue making business is on its peak for upcoming festive season
सज-धज कर छाने को बेताब मिट्‌टी के देवता, 100 करोड़ से अधिक का है मूर्ति कारोबार
सज-धज कर छाने को बेताब मिट्‌टी के देवता, 100 करोड़ से अधिक का है मूर्ति कारोबार

डिजिटल डेस्क, नागपुर। जन्माष्टमी, गणेशोत्सव जैसे-जैसे पास आ रहा है मिट्‌टी से बनी मूर्ति कारोबार पर रंगत चढ़ने लगी है। 2 सितंबर को जन्माष्टमी है और 13 सितंबर को गणेशोत्सव। उसके बाद नवरात्रोत्सव और शारदोत्सव की धूम रहेगी। विरोध के बावजूद पीओपी मूर्ति का चलन बढ़ा है। इस बीच यह खबर भी है कि पारंपरिक मूर्ति का कारोबार काफी बढ़ गया है। उसमें भी खास बात यह है कि पहले जिन क्षेत्रों से शहर में अधिक मूर्तियां पहुंचती थीं, अब उन क्षेत्रों में भी यहां से मूर्तियां भेजी जाने लगी हैं।

एक तरह से मूर्ति कारोबार में नागपुर के बाप्पा छाने लगे हैं। पारंपरिक मूर्ति कारीगरी को बढ़ावा मिल रहा है। कारोबार से जुड़े लोगों की मानें तो उत्सव के दौरान ही शहर में 2 लाख से अधिक गणेश मूर्तियां बिक जाती हैं। सालाना कारोबार 100 करोड़ से अधिक का रहता है। इसमें पारंपरिक मूर्तियों की हिस्सेदारी भी बढ़ी है। 

उत्तरप्रदेश से लाई जाती है मिट्‌टी
पारंपरिक मूर्ति निर्माण के लिए उत्तरप्रदेश के आजमगढ़ से भी यहां मिट्टी लाई जाती है। आजमगढ़ की मिट्टी छानने, लुगदी बनाने में आसान होती है। उस मिट्टी से बनी मूर्ति का आकार कम ज्यादा नहीं होता है। पहले कच्चे मकानों की मिट्टी का भी इस्तेमाल किया जाता था। अब भंडारा के आंधडगांव, जिले के ही सावरगांव, ब्रह्मपुरी, चंद्रपुरी, वरोरा, आष्ठी, आर्वी की मिट्टी यहां लाई जाती है। अमरावती जिले से पारंपरिक मूर्तियां भी यहां बड़ी संख्या में पहुंचती हैं। अब यहां से मूर्तियां गुजरात, दिल्ली तक भेजी जाने लगी हैं।

मूर्तिकार शैलेंद्र चक्रवर्ती के अनुसार, पारंपरिक मूर्तिकारों ने भी बाजार के बदलाव को स्वीकार किया है। प्रदूषण रहित मूर्तियों के निर्माण के लिए आधुनिक तरीके अपनाए जाने लगे हैं। घरों में पुटिंग कराने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले उपकरणों का इस्तेमाल मिट्टी की मूर्ति बनाने के लिए होने लगा है। प्लास्टर आफ पेरिस मूर्ति विरोधी कृति समिति के संयोजक सुरेश पाठक ने कहा है कि प्रदूषण नियंत्रण की उपाय योजना के कारण पारंपरिक मूर्ति कारोबार को बढ़ावा मिला है। फिर भी सरकार को प्रदूषण नियंत्रण के संबंध में अपनी ही अधिसूचना का संपूर्ण पालन कराने के लिए ध्यान देना होगा। 

पीओपी मूर्ति का कारोबार भी कम नहीं
पीओपी मूर्ति का कारोबार कम नहीं हुआ है। शहर में विविध क्षेत्रों से बिक्री के लिए पीओपी मूर्तियां लाई जा रही हैं। नागपुर मनपा ने बिक्री प्रतिबंध का प्रयास किया था। सरकार को प्रस्ताव भेजा था। 2015 में राज्य सरकार ने जो अधिसूचना जारी की उसका पालन नहीं हो रहा है। पीओपी मूर्ति बिक्री के लिए यह स्पष्ट करना होता है कि संबंधित मूर्ति पीओपी की है। इसके लिए मनपा से पूर्व अनुमति लेना भी आवश्यक है, लेकिन नियमों का  पालन नहीं हो पाता है। पीओपी मूर्ति विसर्जन के टैंक की संख्या बढ़ रही है। 

पारंपरिक मूर्ति निर्माण की 20 से अधिक बस्तियां
शहर में 20 से अधिक बस्तियों में पारंपरिक मूर्तियों का निर्माण किया जाता है। इन बस्तियों में लालगंज कुंभारपुरा, पांचपावली, बुधवारी, बालाभाऊपेठ, नई मंगलवारी, जूनी मंगलवारी, मासूरकर चौक, पारडी, टिमकी, सिरसपेठ, नंदनवन, हंसापुरी, भानखेड़ा शामिल है। यहां मूर्ति निर्माण का काम वर्ष भर चलने लगा है। कारीगरों से रंग रहित मूर्तियां लेकर बड़े कारोबारी भंडारण करके रखते हैं। कहा जा रहा है कि पारंपरिक मूर्तियों की मांग इतनी है कि उसकी पर्याप्त आपूर्ति नहीं हो पाती है।

पहले से प्रसिद्ध है यहां की मूर्तियां
मूर्ति कारोबार से जुड़े एक कारीगर के अनुसार, नागपुर का मूर्ति कारोबार पहले से ही मध्य भारत में प्रसिद्ध रहा है। गणेशपूजन पहले घराें में ही होता था। महाराष्ट्र से सार्वजनिक गणेश पूजन आरंभ हुआ। बाल गंगाधर तिलक ने स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान लोगों को एकजुट करने के लिए सार्वजनिक गणेशोत्सव की शुरुआत कराई। सबसे पहले यह उत्सव कोंकण या पश्चिम महाराष्ट्र में होता था। बाद में नागपुर में चलन बढ़ा। नागपुर सीपी एंड बेरार प्रांत की राजधानी थी। मध्य भारत की प्रशासनिक व्यवस्था यहां से क्रियान्वित होती थी। मध्यप्रदेश व छत्तीसगढ़ संयुक्त मध्यप्रदेश के तौर पर नागपुर पर केंद्रित थे। लिहाजा नागपुर में सामाजिक, राजनीतिक आंदोलनों को गति देने के लिए सार्वजनिक गणेशोत्सव मनाए जाने लगे। यहीं से मध्यभारत तक गणेश मूर्तियां पहुंचती थीं।

बताते हैं कि पहले यहां पेण, पुणे व कोल्हापुर की मूर्तियाें की अधिक मांग थी। रत्नागिरी के पेण क्षेत्र में बननेवाली मूर्तियों का अधिक आकर्षण था। कहा जाता था कि शाड़ू मिट्टी से बनने वाले पेण, पुणा कोल्हापुर की मूर्तियां प्रदूषण रहित रहती हैं, लेकिन नागपुर में पारंपरिक मूर्तिकारों ने क्षेत्रीय स्तर पर मिट्टियों से मूर्ति बनाकर पेण, पुणा, कोल्हापुर के मूर्ति कारोबार को  चुनौती दी। यहां हलबा, कुंभार समाज के अलावा मुस्लिम समाज के कारीगर भी मूर्ति कारोबार से जुड़े। इसी बीच पीओपी मूर्ति का चलन बढ़ने से पारंपरिक मूर्ति काराेबार प्रभावित हुआ था। लेकिन बताया जाता है कि पिछले 5-6 वर्ष में पीओपी मूर्ति कारोबार को लेकर सरकार की ओर से उठाए जा रहे कदम को देखते हुए पारंपरिक मूर्ति कारोबार में दोबारा रंगत लौट आई है। 

Created On :   30 Aug 2018 9:03 AM GMT

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