शिक्षक दंपति का अलग-अलग तहसील में तबादला, हाईकोर्ट ने कहा- कारण बताए सरकार

डिजिटल डेस्क, मुंबई। शिक्षक पति-पत्नी में किसी का भी एक तहसील से दूसरी तहसील में तबादला किया जाता है, तो इसके लिए प्रशाकीय अनिवार्यता का लिखित में उल्लेख किया जाना चाहिए। बांबे हाईकोर्ट ने शिक्षकों की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई के बाद राज्य सरकार को यह निर्देश दिया। शिक्षकों ने याचिका में दावा किया था कि वे सातारा जिले की विभिन्न तहसीलों में जिला परिषद के प्राइमरी स्कूलों में शिक्षक के रुप में कार्यरत हैं। राज्य सरकार की ओर से 12 मई 2011 को जारी शासनादेश के मुताबिक यदि पति-पत्नी दोनों शिक्षक हैं तो उन्हें एक ही तालुका में तैनात किया जाए। प्रशासकीय अनिवार्यता की स्थिति में उन्हें दूसरे तालुका में भेजा जा सकता है। याचिका में शिक्षक राजेंद्र जाधव ने दावा किया था कि उनका व उनकी पत्नी का एक ही जिले में तबादला किया गया है लेकिन दोनों की तहसील अलग-अलग है। यह सरकार की ओर से 12 मई 2011 को जारी शासनादेश के खिलाफ है। मुख्य न्यायाधीश प्रदीप नांदराजोग व न्यायमूर्ति एनएम जामदार की खंडपीठ के सामने मामले की सुनवाई हुई। मामले से जुड़े तथ्यों पर गौर करने के बाद खंडपीठ ने पाया कि याचिकाकर्ता व अन्य शिक्षकों का साल 2014 में स्कूलों में अतिरिक्त शिक्षक होने के चलते तबादला किया गया था। जिसके बाद शिक्षकों ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। कोर्ट ने सुनवाई के बाद याचिकाकर्ता व अन्य शिक्षकों के तबादले पर रोक लगा दी थी। अब याचिका दायर करनेवाले शिक्षक सेवानिवृत्त हो गए हैं। ऐसे में अब याचिकाकर्ताओं के तबादलों के विषय में निर्णय देने का औचित्य नहीं है, लेकिन भविष्य में यदि सरकार शिक्षक पति-पत्नी में से किसी का एक का भी एक तहसील से दूसरे तहसील में तबादला करती है तो ऐसा करने की प्रशाकीय वजह का लिखित में उल्लेख किया जाना जरुरी है। यह बात कहते हुए खंडपीठ ने याचिका को समाप्त कर दिया। राज्य सरकार की ओर से अधिवक्ता निशा मेहरा ने पक्ष रखा।
स्कूल प्रबंधन के पास होता है प्रशासनिक और वित्तीय अधिकार का फैसला
इसके अलावा एक मामले में कोर्ट ने कहा कि मुख्यधापिका स्कूल में प्रशासकीय व वित्तीय जिम्मेदारी से जुड़े कार्य सौपने की मांग अधिकार के रुप में नहीं कर सकती है। यह स्कूल प्रबंधन का अधिकार है कि वह प्रशासकीय व वित्तीय जिम्मेदारी से जुड़ा कार्य किसे सौपता है। हाईकोर्ट ने एक मुख्यधापिका गीता चावला की ओर से दायर याचिका को खारिज करते हुए यह निर्णय सुनाया है। चावला ने याचिका में दावा किया था कि हैदराबाद (सिंध) नेशनल कालिजिएट बोर्ड ने उसे अपने उल्हासनगर स्थित स्कूल में शिक्षिका के रुप में नियुक्त किया था। कई वर्षों की सेवा के बाद उसे 15 नवंबर 1994 को मुख्यधापिका के रुप में पदोन्नति दी गई। इस बीच उसके खिलाफ एफआईआर दर्ज हो गई। इसके चलते उसे 14 अगस्त 2014 पद से निलंबित कर दिया गया। निलंबन के खिलाफ चावला ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की। सुनवाई के दौरान कोर्ट को बताया गया कि स्कूल प्रबंधन ने याचिकाकर्ता का निलंबन 12 मई 2016 को वापस ले लिया है। अपनी मौजूदा याचिका में चावला ने कहा है कि वह मई 2016 से स्कूल में मुख्यधापिका के रुप में कार्य कर रही हैं, लेकिन उससे प्रशासकीय व वित्तीय जिम्मेदारी से जुड़े कार्य वापस ले लिए गए हैं। इसलिए अदालत स्कूल प्रबंधन को निर्देश दे की उसे प्रशाकीय व वित्तीय जिम्मेदारी फिर से सौपी जाए। इसके साथ निलंबन की अवधि का बकाया वेतन भुगतान किया जाए। मामले से जुड़े दोनों पक्षों को सुनने के बाद मुख्य न्यायाधीश प्रदीप नांदराजोग व न्यायमूर्ति एनएम जामदार की खंडपीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता का निलंबन न्यायसंगत था कि नहीं यह उसके खिलाफ विभागीय जांच के बाद साबित होगा। इसलिए हम बकाया वेतन भुगतान के बारे में निर्देश नहीं दे सकते है। जहां तक बात वित्तीय व प्रशासकीय जिम्मेदारी दिए जाने की है तो इस विषय में निर्णय लेने का अधिकार स्कूल प्रबंधन है। याचिकाकर्ता इस जिम्मेदारी को अधिकार के तौर पर नहीं मांग सकती है। यह कहते हुए खंडपीठ ने चावला की याचिका को खारिज कर दिया।
Created On :   11 Jun 2019 7:22 PM IST