- Home
- /
- राज्य
- /
- महाराष्ट्र
- /
- नागपुर
- /
- हार के बाद ही जीत है - ठाणेदार
हार के बाद ही जीत है - ठाणेदार

डिजिटल डेस्क, नागपुर। मैंने सोचा कि कैरियर का अंत हार से न हो, इसलिए मैंने इलेक्शन लड़ने के बारे में सोचा। 2016 में मैंने मिशिगन राज्य का गर्वनर बनने के लिए चुनाव लड़ा। चुनाव के लिए मैंने अपने पास से 77 करोड़ रुपए लगाए। मुझे 2 लाख अमेरिकन लोगों ने वोट दिए, लेकिन मैं चुनाव हार गया, लेकिन मुझे इस बात का दुख नहीं हुआ। मैं तो बस यही जानता हू कि हार के बाद ही जीत है। यह विचार उद्योजक श्री ठाणेदार ने रखे। शहर के एक होटल में पत्रकारों से संवाद साधते हुए उन्होंने कहा कि मैंने अपनी पहली मराठी पुस्तक "ही श्री ची इच्छा" में 2005 तक के अनुभव लिखे। दूसरी पुस्तक "पुन्हा श्री गणेशा" में 2005 से 2016 तक के अनुभवों को शेयर किया है। 22 फरवरी 1955 को बेलगाम में जन्मे श्री ठाणेदार ने वार्ता के दौरान अपने जीवन के अनुभव को शेयर किया।
बचपन से लिखने का शौक
श्री ठाणेदार ने बताया कि बचपन से उन्हें न्यूज पेपर पढ़ने का शौक था। जब वे 11 वर्ष के थे, तो न्यूज पेपर में कुछ आर्टिकल भेजना शुरू किए। 18 वर्ष की उम्र में बीएससी किया। उसके बाद बैंक में क्लर्क की नौकरी मिली, लेकिन मैं इससे संतुष्ट नहीं था, इसलिए मैंने एक निजी कंपनी में नौकरी की। एमएससी में फर्स्ट आने के बाद अमेरिका में डॉक्ट्रेट की पदवी मिली और एक उद्योगपति के रूप में नाम कमाया। इसके लिए मुझे अर्नस्ट एंड यंग अंत्रप्रिन्योर अवार्ड भी मिला।
सब कुछ खाेने के बाद भी नहीं मानी हार
अमेरिका में रिसेशन आने के बाद मेरा सब कुछ चला गया, लेकिन मैंने हार नहीं मानी। जब मेरी उम्र 55 वर्ष की थी, तब यह दुर्घटना मेरे साथ हुई। उसके बाद मैंने एक पुरानी लैब ली और फिर से काम शुरू किया। उसके बाद फिर से मुझे अर्नस्ट एंड यंग अंत्रप्रिन्योर अवार्ड मिला। मेरी पत्नी शशि दो बेटे नील और समीर वेल सेटल्ड हैं। मैं अपनी तीसरी पुस्तक "श्री शिल्लक" की तैयारी कर रहा हूं। नागपुर में शुरू हुए नाट्य सम्मेलन को देखकर बहुत अच्छा लगा। मैं रोज जाकर नाटक देख रहा हूं।
हार से निराश नहीं होना चाहिए
श्री ठाणेदार ने कहा कि मेरी मातृभाषा मराठी है। पढ़ाई भी मराठी मीडियम में हुई है। आज के युवाओं में पेशंस नहीं है, वे जल्दी हायपर हो जाते हैं। हार से निराश हो जाते हैं। उनसे यही बताना चाहता हूं कि हार से जीत का रास्ता निकलता है, इसलिए हार से निराश नहीं होना चाहिए। मैंने अपनी पहली पुस्तक ही ‘ही श्री ची इच्छा’ की शुरुआत मेरी पहली पत्नी के आत्महत्या वाली घटना से की है। मुझसे कुछ लोगो ने कहा कि ऐसी शुरुआत नहीं करनी चाहिए, तो मैंने कहा कि सच्चाई से भागने की बजाय उसका सामना करना चाहिए।
Created On :   25 Feb 2019 2:33 PM IST