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कभी भी ढह सकता है मानकापुर स्टेडियम का महाद्वार, प्रशासन बेपरवाह

डिजिटल डेस्क,नागपुर। मेट्रो सिटी बनने जा रहे उपराजधानी में खेल मैदान के हाल कई जगह बड़े खराब हैं। करीब 10 साल पहले मानकापुर में विभागीय क्रीड़ा संकुल और इंडोर स्टेडियम बनाया गया था लेकिन सर्वसुविधा युक्त स्टेडियम का पूरा खाका अभी तक कागजों में ही है। करोड़ों रुपए खर्च किये जा रहे हैं, लेकिन संतोषजनक परिणाम दिखायी नहीं दे रहे। स्टेडियम के मुख्य द्वार का हाल ऐसा है कि यह कभी भी ढह सकता है। पिछले दो साल से इस महाद्वार के निचले हिस्से और जमीन के बीच काफी अंतर आ चुका है। यह अंतर दिन ब दिन बढ़ने से कभी दुर्घटना का कारण बन सकता है।
कीमती पत्थर गायब, उखड़ गए ग्रेनाइट
नागपुर ही नहीं पूरे विदर्भ के लिए नये अध्याय के रूप में देखे जा रहे मानकापुर स्टेडियम के मुख्य द्वार के कीमती पत्थर गायब हो चुके हैं। द्वार को लगाए गए महंगे ग्रेनाइट उखड़ चुके हैं। इस कारण द्वार की सुंदरता बिगड़ गई है। द्वार के लिए बनाए गए लोहे के दरवाजे पर ताला तक नहीं लगाया जाता। दरवाजे के दोनों पल्लों को रस्सियांे बांधकर बंद किया जाता है। यहां सुरक्षाकर्मियों के लिए कैबिन तैयार किये गए हैं, लेकिन यहां सुरक्षाकर्मी या चौकीदार नहीं रहता। आवारा जानवर दरवाजे से भीतर चले जाते हैं। स्टेडियम परिसर ही इनके लिए आरामगाह बनी है।
ट्रैक भी तीन माह में उखड़ा
अनेक मामलों में यहां सुविधाएं उपलब्ध नहीं होने से यहां के खिलाड़ियों को पुणे और मुंबई का रुख करना पड़ता है। विदर्भ के धावकों के अभ्यास के लिए कहीं भी सिंथेटिक ट्रैक नहीं था। यहां के धावक बरसों से पथरीली ट्रैक और धूल-मिट्टी के बीच अभ्यास कर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपना नाम रोशन कर चुके हैं। बरसों से यहां सिंथेटिक ट्रैक बनाने की मांग की जा रही थी। इसलिए नागपुर के विभागीय संकुल में ट्रैक बनाने का निर्णय लिया गया। नवंबर 2015 में इसका काम शुरू हुआ। मई 2017 में इसका काम पूरा हुआ। 400 मीटर और 10 लेन के इस ट्रैक पर 21 करोड़ 32 लाख खर्च किये गए। ट्रैक तो बन गया, लेकिन तीन महीने में ही यह उखड़ने लगा है।
होते रहते हैं विभिन्न आयोजन
स्टेडियम की वर्षों पुरानी मांग तो सरकार ने पूरी की लेकिन इस स्टेडियम का खेल, प्रशिक्षण, शिविर आदि के लिए जितना उपयोग नहीं किया गया उससे ज्यादा संस्कृति, प्रदर्शनी, धार्मिक, प्रवचन, कृषि और व्यावसायिक कार्यक्रमों के लिए हो चुका है। इन नीतियों के चलते क्रीड़ा विभाग के प्रति खेल प्रेमियों में नाराजगी है। प्रशासन ने स्टेडियम के व्यावसायिक दुरुपयोग पर अंकुश नहीं लगाया तो इसका हाल समय के साथ बदतर हो सकते हैं। स्टेडियम परिसर वैसे तो काफी बड़ा है, लेकिन इसका पूरा विकास होना बाकी है। सूत्रों के अनुसार विभागीय व जिला खेल प्रशासन ध्यान नही दे रहा। व्यावसायिक आयोजनों, प्रवचनों, सांस्कृतिक कार्यक्रमों को प्राथमिकता देता रहा है। इस दौरान खेल गतिविधियों से जुड़े सभी आयोजन बंद कर दिए जाते हैं।
Created On :   19 March 2018 3:53 PM IST