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एक्सपीरियंस बयां करती है 'कनेक्टिंग द डॉट्स' , पीयूष पांडे ने बताए सफलता के राज

डिजिटल डेस्क, नागपुर। किसी भी राइटर की कहानी को परदे पर साकार करना बड़ा ही चैलेंजपूर्ण काम है, इसमें बहुत लंबी प्रक्रिया होती है। विविध चरणों, आयामों से गुजरकर अपने मुकाम तक पहुंचने के बाद ही सफलता मिलती है। दो-तीन पन्नों की कहानी को फिल्म में रूपांतरित करना भी एक प्रकार की खूबसूरत कला है। टुकड़ों में बनी फिल्म जब एक साथ जुड़ती है तो एक कहानी का रूप धारण करती है और पूरी फिल्म बनकर तैयार होती है तब दर्शकों के दिलो-दिमाग पर राज करती है।
कोई भी कहानी केवल शब्दों से बयान होती है, लेकिन फिल्म आधुनिक तकनीक के सहारे ताकतवर और प्रभावी बनती है। यह कहना है निर्माता, निर्देशक डॉक्यूमेंट्री मेकर पीयूष पांडे का। पीयूष ने कहा कि टीम का हार्ड वर्क किसी भी फिल्म का हिस्सा होता है। शूटिंग के दौरान हुए एक्सपीरियंस को डॉक्यूमेंट्री "कनेक्टिंग द डॉट्स" में दिखाया गया है। पीयूष दैनिक भास्कर की ओर से आयोजित "कनेक्टिंग द डॉट्स" डॉक्यूमेंट्री की स्क्रीनिंग के अवसर पर बोल रहे थे।
दो शार्ट फिल्मों का निर्माण 50 घंटे में
कनेक्टिंग द डॉट्स डॉक्यूमेंट्री का निर्माण, लेखन, संपादन पीयूष पांडे ने किया है। आॅरेंज सिटी के शॉर्ट फिल्म निर्माताओं क्रिएटिव मीडिया नेशन्स की 10 सदस्यों की टीम ने दो शॉर्ट फिल्मों का निर्माण मात्र 50 घंटे में किया है। कलाकारों की इस संपूर्ण यात्रा पर कनेक्टिंग द डॉट्स डॉक्यूमेंट्री फिल्म का निर्माण किया गया। इसके लिए फिल्म निर्माताओं को भी पुरस्कृत किया गया है।
ये फिल्में हैं
फुटस्टेप्स (मोबाइल कैटेगिरी फर्स्ट प्राइज विनर)
फउलेन" (प्रोफेशनल कैटेगिरी सेकेंड प्राइज विनर)
इस यात्रा का श्रीगणेश आॅरेंज सिटी से शुरू होकर स्वप्न नगरी मुंबई में समाप्त हुआ। कलाकारों की इस संपूर्ण यात्रा पर कनेक्टिंग द डॉट्स डॉक्यूमेंट्री फिल्म का निर्माण पीयूष पांडे ने किया था। इस मौके पर दोनाें फिल्मों का 6 मिनट का प्रदर्शन भी हुआ। इस अवसर पर पीयूष पांडे, कुशाग्र जायस्वाल, आदित्य शर्मा, कौस्तुभ पराडकर, आशीष मस्के, आदित्य शर्मा, अंकित आदि प्रमुख रूप से उपिस्थत थे। इस मौके पर सभी फिल्म मेकर्स को सम्मानित किया गया। दैनिक भास्कर के समन्वय संपादक आनंद निर्बाण ने कार्यक्रम की रूपरेखा रखी।
हल्के-फुल्के मूवमेंट भी
कलाकारों की इस संपूर्ण यात्रा पर "कनेक्टिंग द डॉट्स" डॉक्यूमेंट्री फिल्म फुटस्टेप्स (मोबाइल कैटेगिरी फर्स्ट प्राइज विनर) तथा फउलेन (प्रोफेशनल कैटेगिरी सेकेंड प्राइज विनर) के मेकिंग के दौरान बनाई गई है। कैसे दोनों फिल्मों के दौरान टीम ने कड़ी मेहनत, कुछ हल्के-फुल्के मूवमेंट को भी इसमें कैद किया है। वहीं 50 घंटे में टीम के साथ किया गया कार्य इस डॉक्यूमेंट्री में दिखाया गया है।
चैलेंज है इतने कम समय में फिल्म बनाना
महज 50 घंटे में दो शॉर्ट फिल्में बनाना बहुत कठिन रहा, लेकिन पिछले वर्ष का अनुभव काम आया। काफी मशक्क्त के साथ हमने दोनों फिल्में बनाई और पुरस्कार भी जीता। हमें प्रोफेशनल कैटेगरी में दूसरा तथा मोबाइल कैटेगरी में प्रथम पुरस्कार प्राप्त हुआ। नागपुर के लिए ये गौरव की बात है। एक फिल्म बनाना अपने आप में चुनौती है। फिल्म बनाना सिर्फ एक या दो व्यक्ति के वश की बात नहीं है, बल्कि सौ से भी अधिक लोगों की यूनिट एक साथ कई महीनों तक काम करती है, तब जाकर फिल्म का निर्माण होता है। फिल्म शूट करने के बाद सीन को कहानी और स्क्रिप्ट के अनुरूप एडिट करना बड़ी चुनौती है। एडिटिंग करते समय इस बात पर खास ध्यान देना होता है कि, कहानी का मूल और स्क्रिप्ट के फोकस करने वाले संवाद को नुकसान न होने पाए।
आईफाेन से शूटिंग
"कनेक्टिंग द डॉट्स" डॉक्यूमेंट्री के निर्माता व निर्देशक पीयूष पांडे ने बताया कि यह डॉक्यूमेंट्री उन्होंने आईफाेन से शूट की है। डॉक्यूमेंट्री आधुनिक तकनीक के उपयोग से बनी है। दोनों शॉर्ट फिल्मों को बनाने में उन्हें काफी मुश्किल हुई।फिल्म मेकिंग कठिन है और 50 घंटे में ये बनाना बहुत ही कठिन रहा। इस पूरी मेकिंग को वे अपने कैमरे में कैद करना चाहते थे और उन्होंने किया। नागपुर से लेकर मुंबई तक उन्होंने पूरी डॉक्यूमेंट्री शूट कर एडिट की। वे चाहते थे कि फिल्म मेकिंग के उस हिस्से को भी लोग देखें,जिनसे अक्सर हम रूबरू नहीं हो पाते हैं। ये उनके लिए बहुत ही रुचिकर रहा। वहीं दूसरों के लिए प्रेरणादायी रहा। उन्होंने इसे अकेले शूट करके एडिट भी किया है।
सवालों को जवाब भी दिए
रितुराज : 50 घंटे में दो शॉर्ट फिल्में बनाने का आइडिया कैसे आया?
जवाब : फिल्म डायरेक्टर आदित्य शर्मा ने बताया कि ये आइडिया उन्हें कुशाग्र जायस्वाल ने दिया। इस बार हम दो फिल्में बनाते हैं और हमने कर दिखाया।
सुनील पौनीकर : एडीटिंग में कितना वक्त लगा , डॉक्यूमेंट्री की एडीटिंग में कितने कट लगे?
जवाब : डॉक्यूमेंट्री फिल्म मेकिंग की अलग विधा है। इसमें फिल्म की पहले शूटिंग की जाती है, फिर उसकी स्टोरी डेवलप होती है। साउंड और लाइट को लेकर काफी समस्याएं आईं।
वाचस्पति :कितना बजट लगा दोनों शॉर्ट फिल्म बनाने में?
जवाब : आदित्य शर्मा ने बताया कि उन्होंने इसके लिए एक बैंक बनाया है। सभी ने उसमें पैसे जमा किए और उससे फिल्म बनना शुरू हुई। हमने टीम वर्क के माध्यम से काम किया है।
महत्वपूर्ण जानकारी मिली
नाट्य अभिनेता टीवी, सिने,सर्जेराव गलपट ने कहा कि दैनिक भास्कर की ओर से यह बहुत ही बेहतर कार्यक्रम का अायोजन किया गया। इससे फिल्म मेकिंग पर काफी जानकारी मिली है।


Created On :   13 Nov 2017 4:52 PM IST