बालासोर में आँकी जाएगी रशियन बमों की ताकत - टेस्टिंग से पता चलेगा टैंक को उड़ाने में कितने कारगर

The strength of Russian bombs will be evaluated in Balasore - testing will show how effective the tank is in flying
बालासोर में आँकी जाएगी रशियन बमों की ताकत - टेस्टिंग से पता चलेगा टैंक को उड़ाने में कितने कारगर
बालासोर में आँकी जाएगी रशियन बमों की ताकत - टेस्टिंग से पता चलेगा टैंक को उड़ाने में कितने कारगर

125 एमएम एंटी टैंक बम का प्रूफ चैक होगा, इसके बाद डिस्पैच हो सकेगा इस साल का पहला लॉट

डिजिटल डेस्क जबलपुर । भारी-भरकम टैंकों को चंद सेकेंड में धूल में मिला देने वाले 125 एमएम एंटी टैंक बमों की बालासोर में टेस्टिंग होने वाली है। इसके लिए तकरीबन पूरी तैयारियाँ कर ली गई हैं और उन अफसरों की टीम भी रवानगी को तैयार है जिनकी मौजूदगी में टेस्टिंग के धमाके होंगे। खास बात यह है कि मैंगो प्रोजेक्ट के नाम से मशहूर यह वही प्राडक्ट है जिस पर देश के पूरे रक्षा विशेषज्ञों की निगाहें टिकी हुई हैं। टेस्टिंग के नतीजों से यह भी तय हो सकेगा कि रशियन बम टैंक को उड़ाने में कितना कारगर है। आयुध निर्माणी खमरिया के सेक्शन एफ-3 में तैयार होने वाले एंटी टैंक बमों की बड़ी खेप तैयार हो गई है। पता चला है कि अगले कुछ दिनों में कुछ बमों को उड़ीसा की फायरिंग रेंज में भेजा जाएगा। दूसरी तरफ ओएफके ने प्रोडक्शन की रफ्तार बढ़ा दी है। क्योकिं रिजल्ट आने के तत्काल बाद इन बमों का डिस्पैच शुरू कर दिया जाएगा। 
5000 बमों का टारगेट लेकिन मुमकिन नहीं 
ओएफके को मौजूदा वित्तीय वर्ष के लिए 5000 बमों का टारगेट दिया गया है लेकिन किसी हाल में इस लक्ष्य को हासिल करना मुमकिन नजर नहीं आ रहा। जानकार बताते हैं कि पहले लॉकडाउन और फिर ग्लू की तकनीकी परेशानी ने अडंगे खड़े किए जिससे सेक्शन का कामकाज तकरीबन पूरी तरह से ठप रहा। सूत्र बताते हैं कि डेढ़  से दो हजार बमों के उत्पादन की उम्मीद की जा सकती है। 
यह है "मैंगो प्रोजेक्ट"

*  भारत-रूस ने ट्रांसफर ऑफ टेक्नाेलॉजी (टीओटी) करार किया है। 
*  रक्षा मंत्रालय के निर्देश पर ओएफके में रशियन तकनीक से टैंकभेदी बम (125 एमएम एफएसएपीडीएस) का उत्पादन कर रही है। 
*  पिछले वर्ष तकरीबन 10 हजार बमों को सेना के हवाले किया जा चुका है। 
* ओएफके में मैंगो प्रोजेक्ट के दूसरे फेज में दोबारा टैंकभेदी बमों का उत्पादन चल रहा है। 
*  हालाँकि पिछले दिनों ग्लू (बम के दो हिस्सों को जोड़ने में उपयोगी पदार्थ) में कुछ कमी की वजह से उत्पादन रोक दिया गया था।  
* इजरायल से ज्यादा असरदार 
भारतीय सेना अभी तक इजराइल में बने टैंकभेदी बमों का इस्तेमाल करती रही है। खास बात यह है कि इन बमों का निर्माण भी आयुध निर्माणी खमरिया में ही होता रहा है। बीते वर्षों में सेना से ओर बेहतर घातक बमों की जरूरत महसूस की गई। इसके अलावा यह बात भी सामने आई कि भारतीय सेना रशिया में बने भीष्म और टी-72 टैंकों का इस्तेमाल करती है। लिहाजा,  रशिया में बने बमों की तकनीक इस्तेमाल की जाती है तो टैंकों की मारक क्षमता में ओर इजाफा हो सकेगा। इसके बाद से रशिया के साथ ट्रांसफर ऑफ टेक्नाेलाॅजी की बात आगे बढ़ी।

Created On :   15 March 2021 8:28 AM GMT

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