इन राज्यों से विलुप्त हो रहे हैं ये लोकनृत्य

These folk dances are going extinct from these states, culture in danger
इन राज्यों से विलुप्त हो रहे हैं ये लोकनृत्य
इन राज्यों से विलुप्त हो रहे हैं ये लोकनृत्य

भूपेंद्र गणवीर , नागपुर। किसी भी क्षेत्र की पहचान में वहां की लोककला व लोकनृत्य की बड़ी भूमिका होती है लेकिन महाराष्ट्र सहित 5 राज्य ऐसे हैं जहां कभी धूम मचाने वाले लोकनृत्य अब विलुप्त होते जा रहे हैं। सांस्कृतिक आयोजनों तक सीमित रहने वाले लोकनृत्यों को जीवंत रखने के लिए दक्षिण-मध्य सांस्कतिक केंद्र की स्थापना नागपुर में की गई है लेकिन उतनी सफलता नहीं मिल पाई है जितनी मिलनी चाहिए।  पांच राज्यों के 12 से अधिक लोकनृत्य लुप्त होने की कगार पर है। इनमें महाराष्ट्र का लिगो औ मध्यप्रदेश का बरेदी व मटकी लोकनृत्य भी शामिल है। नागपुर में इस केंद्र की स्थापना आदिवासियों की कलाओं का संवर्धन एवं कलाकारों के प्रोत्साहन के लिए ही की गई थी। लेकिन आलम कुछ और ही है। महाराष्ट्र के लिगो नृत्य की बात करें तो यह एक प्रकार का समूह नृत्य है। इसमें करिब 20 महिला-पुरुषों का समूह नृत्य करता है। यह नृत्य करनेवाला गड़चिरोली जिले में केवल एक समूह बचा है। यही हाल अमरावती स्थित मेलघाट के कोरकू नृत्य का है। विलुप्त हो रहे अन्य लोकनृत्यों में कर्नाटक का लंबाडी, विरगासे व करडीमजलू नृत्य; आंध्रप्रदेश का गोनालू, गरगलू नृत्य; छत्तीसगढ़ का गेड़ी व ककसार नृत्य भी शामिल हैं। इसी तरह कुछ लोक गीत भी खतरे में है। 

1 अक्टूबर 1986 में देशभर में खुले थे सात केंद्र
उल्लेखनीय है कि 1 अक्टूबर 1986 को एक ही दिन देशभर में सात केंद्र खोले गए थे। इन्हें खुले 32 वर्ष पूरे हो गए। नागपुर केंद्र के अंतर्गत महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, कर्नाटक, आंध्रप्रदेश को शामिल किया गया था। बाद में छत्तीसगढ़ राज्य बना, जिसे केंद्र में शामिल कर लिया गया। अब तेलगंना राज्य को सम्मिलित करने के प्रयास जारी हैं। दक्षिण-मध्य सांस्कतिक केंद्र, नागपुर के अधिकारी दीपक कुलकर्णी ने बताया कि गुदुमबाजा नृत्य का भी केवल एक दल बचा था। 2010 में कॉमनवेल्थ गेम्स के सांस्कृति कार्यक्रम में उस दल को भेजा गया था। जिसके बाद गुदुमबाजा नृत्य का विकास हुआ। आज पांच से अधिक दल हैं। 

ध्यान नहीं दे रही राज्य सरकारें
केंद्र के प्रशासकीय अधिकारी सुदर्शन पाटील ने कहा कि जमा राशि के ब्याज पर केंद्र का काम चलता है। ब्याज के रूप में साल के दो करोड़ रुपए मिलते हैं। यह राशि कर्मचारियों के वेतन, भत्ते, कलाकारों के प्रवास भत्ते, निवास व्यवस्था व मानधन पर खर्च हाती है। सालभर में 250 से अधिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। स्थापना के वक्त हर राज्य को एक-एक करोड़ देना था। लेकिन मध्यप्रदेश, कर्नाटक व आंध्रप्रदेश से अब भी 50-50 प्रतिशत राशि लेना बाकी है। उक्त राशि की वसूली के प्रयास चल रहे हैं। केंद्र सरकार का दबाव चाहिए। 30 साल से उक्त राशि नहीं आई है, जिस वजसे से लोककला संवर्धन में बांधाएं आ रही हैं। आज जो कुछ आदिवासी लोककला दिख रही वह केंद्र के कारण जीवित है।
 इस संदर्भ में दक्षिण-मध्य सांस्कृतिक केंद्र के अधिकारी दीपक कुलकर्णी का कहना है कि नई पीढ़ी के युवा परंपरा से चलते आ रहे लोकनृत्य में रुचि नहीं रखते, इसी कारण समूह नृत्य करने वाले कलाकारों की संख्या घट रही है। राज्य सरकारें भी ध्यान नहीं देती हैं।
 
 

Created On :   6 April 2018 12:55 PM IST

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