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इस रसोई से प्रतिदिन सुबह-शाम परोसी जाती है सैकड़ों थाली, अस्पताल में जरूरतमंद उठा रहे लाभ

डिजिटल डेस्क, नागपुर। भूखे को भोजन और प्यासे को पानी पिलाना सबसे उत्तम सेवा मानी जाती है। समाजसेवा की ऐसी ही मिसाल रखी है श्याम सखी मंडल ने। मेयो हास्पिटल में पिछले 8 वर्षों से शहर के एक ऐसी रसोई चलती है, जहां से रोज सुबह-शाम करीब 100 थाली भोजन मरीजों को दिया जाता है। कुछ महिलाओं ने उषा अग्रवाल की पहल पर श्याम सखी मंडल के नाम से 8 साल पहले इस रसोई की शुरुआत की थी। इससे जुड़ते-जुड़ते 60 महिलाएं मंडल से जुड़ गईं। पहचान वालों से मुलाकात की, उन्हें प्रायोजन बताया और काम शुरू कर दिया। पहले 20-25 थालियां ही पहुंचा पाती थीं। आज 100 थालियां तक बाहर से आए और गरीब मरीजों और उनके रिश्तेदारों को दे रही हैं। बदले में सिर्फ दुआ ले रही हैं।
ऐसे शुरू हुआ सिलसिला
उषा अग्रवाल ने बताया कि 1 मई 2010 में पूजा जोशी, पिंकी मल्होत्रा, चंदा जाजू और कुछ महिलाओं के साथ इस रसोई की शुरुआत की थी। मंडल में अधिकांश प्रौढ़ महिलाएं हैं। सभी का मानस समाज के लिए कुछ करने का था। उन्होंने बताया कि एक बुजुर्ग हमारे मोहल्ले में आते थे। घर-घर से कुछ खाना इकट्ठा कर मेयो अस्पताल में गरीब मरीजों को बांट आते थे। उन्हें देख मन में ख्याल आया कि हमें भी ऐसे दुखी और जरूरतमंद लोगों की सहायता करनी चाहिए। बस वर्धमान नगर स्थित राधाकृष्ण अस्पताल के तत्कालीन सचिव गोविंद पोद्दार से मिलने पहुंच गई। उन्हें योजना बताई। वे खुश हुए और तुरंत जगह देने के लिए राजी हो गए। अपनी सहेलियों से बात की तो कुछ घबरा गईं कि यह सब कैसे होगा। कुछ ने साहस दिया। मैंने ठान लिया था कि यह कार्य मैं करूंगी। बस निकल पड़ी।
इस तरह बढ़े मदद के हाथ
श्याम मित्र मंडल के सदस्यों से बात की। कुछ और बड़े लोगों से मिली। एेसे अच्छे कार्य के लिए सभी ने सराहना की और मदद को आगे आए। देखते-देखते करीब 3 लाख रुपए जुट गए। ओमप्रकाश बांस वालों ने पूरे साल के लिए चावल देने का वादा किया। जब से रसोई शुरू हुई। आज तक उनके यहां से चावल आ रहा है। उनके देहावसान के बाद उनके पुत्र सूरज बांसवाले यह प्रथा निभा रहे हैं। गोविंद पोद्दार के यहां से साल भर का गेहूं आता है और रामदत्त गोयल ने दाल का जिम्मा उठा रखा है। राधाकृष्ण अस्पताल ने रसोई के लिए जगह दी और रसोईघर बना दिया। अब 2 बाइयां यहां स्थाई रूप से रहती हैं और शुद्ध खाना पकाती हैं।
समाजसेवा करती रहीं हैं उषा अग्रवाल
छिंदवाड़ा में जन्मी और विवाह के बाद 1969 में नागपुर आईं उषा अग्रवाल को शुरू से सामाजिक कार्यों में रुचि थी। घर में ही बेडशीट बनाने का कार्य शुरू किया। इसमें भी समाज सेवा का पुट रहा। उसी समय हाथकरघा बंद हुए थे। उसमें काम कर रही महिलाओं को अपने साथ लिया, उन्हें सिलाई सिखाई और उनसे काम कराया। करीब 25 वर्ष तक यह काम किया। जब बंद किया, तो करीब 60 सिलाई मशीनें थीं। सब उन्हीं महिलाओं को दे दी। इसके बाद समाज सेवा के छिटपुट काम करती रही। आज भी श्याम रसोई का प्रबंधन देखने के अलावा गरीब मरीजों की सेवा उन्हें दवा, जांच आदि में सहयोग करना श्रीमती अग्रवाल का शगल है। पांचगांव में नवीन देसाई रहवासी शाला की बिल्डिंग के लिए भी भरसक प्रयासकर निधि की उपलब्धता कराई व श्याम सखी मंडल की ओर से भी एक कमरे का निर्माण कराया।
Created On :   26 April 2018 11:19 AM IST