आजादी के अमृत महोत्सव भारत को विश्व मे सिरमौर बनाने का संकल्प लेने का महोत्सव है : शाह

केन्द्रीय गृहमंत्री ने अमर शहीद राजा शंकरशाह व कुंवर रघुनाथशाह के बलिदान दिवस पर दी श्रद्धांजलि आजादी के अमृत महोत्सव भारत को विश्व मे सिरमौर बनाने का संकल्प लेने का महोत्सव है : शाह

डिजिटल डेस्क जबलपुर । केन्द्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री श्री अमित शाह ने जनजातीय नायक अमर शहीद राजा शंकरशाह और उनके पुत्र कुंवर रघुनाथ शाह के 164वें बलिदान दिवस पर यहां आज अपने उद्बोधन में  कहा कि 1857 से 1947 तक चली आजादी की लड़ाई में कितने शहीद ऐसे है जो गुमनाम है उनको याद करते हुए प्रधानमंत्री ने ऐसे शहीदों को सामने लाने का काम किया है । जबलपुर आगमन पर राजा शंकर शाह और रघुनाथ शाह के बलिदान की गाथा पता चली तो उसे देश के सामने लाने का काम किया । आजादी के अमृत महोत्सव भारत को विश्व मे सिरमौर बनाने का संकल्प लेने का महोत्सव है । जबलपुर आया हूँ केवल इन अमर शहीदों की बलिदान स्थली की पवित्र मिट्टी को मस्तक से लगाने । वीरांगना रानी दुर्गा वती को भी नमन करता हूं । गुमनाम आजादी के सिपाहियों को युवा पीढ़ी के सामने लाने जा काम प्रधानमंत्री ने किया है । आजादी की लड़ाई में जितने जनजातीय जननायकों ने जो बलिदान दिये है वो किसी ने नही दिए ।  क्रांति की मशाल को जलाकर स्वतंत्रता की नींव रखी जनजातीय नायकों ने । 200 करोड़ की लागत से 9 संग्रहलयो का निर्माण किया जाएगा ।  जनजाति कल्याण के लिए पहले 21 हजार करोड़ फंड था   मोदी जी ने इसे बढ़ा कर 71 हजार करोड़ किया केन्द्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री श्री अमित शाह और मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने आजादी के अमृत महोत्सव पर देश और धर्म की रक्षा के लिए प्राणों की आहुति देने वाले जनजातीय नायक अमर शहीद राजा शंकरशाह और उनके पुत्र कुंवर रघुनाथ शाह के 164वें बलिदान दिवस पर आज मालगोदाम चौक पहुंचकर पिता-पुत्र की यहां स्थापित प्रतिमा पर पुष्प अर्पित कर श्रद्धांजलि दी। इसके पूर्व केन्द्रीय गृहमंत्री श्री शाह के प्रतिमा स्थल पहुंचने पर विधायक श्रीमती नंदनी मरावी और राज्यसभा सांसद श्रीमती संपतिया उइके ने परंपरागत आरती कर रोली का टीका लगाया और शॉल पहनाया। श्री शाह को मुख्यमंत्री श्री चौहान और केन्द्रीय इस्पात एवं ग्रामीण विकास राज्यमंत्री श्री कुलस्ते ने स्वाधीनता आंदोलन के नायक राजा शंकरशाह एवं कुंवर रघुनाथ शाह की मंडला जिला स्थित पवित्र जन्मस्थली और रामनगर मंडला में स्थापित गोंडवाना साम्राज्य के राजस्तंभ का चित्र भेंट किया। आजादी के 75वें अमृत महोत्सव के अंतर्गत केन्द्रीय गृहमंत्री श्री शाह और मुख्यमंत्री श्री चौहान ने गोंडवाना साम्राज्य के राजा शंकरशाह एवं कुंवर रघुनाथ शाह की बलिदान गाथा का स्मरण किया। गोंडवाना साम्राज्य के राज परिवार को प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में भारत के रजवाड़ों में प्रथम बलिदानी होने का गौरव हासिल है, जिन्हें तोप के मुंह से बांधकर मृत्यु दी गई। इस अवसर पर केन्द्रीय इस्पात एवं ग्रामीण विकास राज्यमंत्री श्री फग्गन सिंह कुलस्ते, केन्द्रीय खाद्य प्रसंस्करण एवं जलशक्ति राज्यमंत्री प्रहलाद सिंह पटेल, केन्द्रीय पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस श्रम एवं रोजगार राज्यमंत्री श्री रामेश्वर तेली, प्रदेश भाजपा अध्यक्ष एवं सांसद श्री बीडी शर्मा, सांसद श्री राकेश सिंह, प्रदेश के गृह, जेल, संसदीय कार्य, विधि एवं विधायी मंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्रा, जबलपुर जिले के प्रभारी मंत्री एवं प्रदेश के लोक निर्माण, कुटीर एवं ग्रामोद्योग मंत्री श्री गोपाल भार्गव, खाद्य नागरिक आपूर्ति एवं उपभोक्ता संरक्षण मंत्री श्री बिसाहूलाल सिंह, नगरीय विकास एवं आवास मंत्री श्री भूपेन्द्र सिंह, जनजातीय कार्य विभाग, अनुसूचित जाति कल्याण मंत्री सुश्री मीना सिंह, सहकारिता एवं लोक सेवा प्रबंधन मंत्री श्री अरविंद भदौरिया, राज्यसभा सांसद श्रीमती संपतिया उइके और विधायक श्रीमती नंदनी मरावी उपस्थित रहे। 
क्षमा मांगने से किया इंकार

अंग्रेजों की अदालत ने राजा शंकरशाह और उनके युवा पुत्र को मृत्युदंड की सजा सुनाने के बाद शर्त रखी की यदि वे क्षमा मांग लें तो उनकी मृत्युदंड की सजा माफ कर दी जायेगी, लेकिन दोनों अमर शहीदों ने अंग्रेजों की गुलामी के स्थान पर देश के लिए बलिदान देने का मार्ग चुना। 
हमें फांसी नहीं तोप से उड़ाया जाये
मौत के डर से बेखौफ पिता-पुत्र ने अंग्रेजी अदालत में कहा- हम ठग, पिंडारी, चोर, लुटेरे, डाकू और हत्यारे नहीं हैं, जो हमें फांसी दी जाये, हम गोंडवाना के राजा हैं। इसलिए हमें तोप के मुंह से बांधकर मृत्युदंड दिया जाये।
तोप के मुंह पर बांधकर दिया मृत्युदंड
राजा शंकरशाह और उनके पुत्र कुंवर रघुनाथ शाह ने आजादी की लड़ाई में देश के लिए उत्कृष्ट त्याग और बलिदान दिया। वे  अंग्रेजी शासन की दमनकारी नीतियों के विरूद्ध अपने विचारों और कविताओं के माध्यम से लोगों में आजादी के लिए जोश व उत्साह भरते थे। उनकी कविताओं से अंग्रेजों के विरूद्ध विद्रोह की आग सुलग उठी। डिप्टी कमिश्नर ई. क्लार्क ने गुप्तचर की मदद से पिता-पुत्र को 14 सितम्बर 1857 की शाम 4 बजे बंदी बना लिया। अगले तीन दिनों तक मुकदमें का नाटक करते हुए वीर सपूत राजा शंकरशाह व कुंवर रघुनाथ शाह को 18 सितम्बर 1857 को प्रात: 11 बजे तोप के मुंह पर बांधकर मृत्युदंड दे दिया। 
वीरगति से पहले सुनाई कविता
गोंडवाना राजा शंकरशाह ने मौत सामने होने के बाद भी वहां मौजूद जनता को आजादी और ब्रिटिश सत्ता को उखाड़ फेंकने का जोश पैदा करने वाली कविता सुनाया।
मलेच्छों का मर्दन करो, कालिका माई।
 मूंद मुख डंडिन को, चुगली को चबाई खाई, 
खूंद डार दुष्टन को, शत्रु संहारिका।
वहीं कुंवर रघुनाथ शाह ने भी उच्च स्वर में छंद सुनाया-
कालिका भवानी माय अरज हमारी सुन, 
डार मुंडमाल गरे खड्ग कर धर लें।
छंद पूरा होते ही जनता ने राजा व कुंवर के सम्मान में जयकारे लगाये। डिप्टी कमिश्नर ई. क्लार्क डर गया और उसने तुरंत तोप में आग लगवा दी। पिता-पुत्र ने देश के लिए प्राणों की आहुति दे दी। 
क्रांति की चिंगारी धधक उठी
राजा शंकरशाह और कुंवर रघुनाथ शाह को अंग्रेज तोप से उड़ाकर क्रांति कि चिंगारी बुझाना चाहते थे, लेकिन चिंगारी बुझने के बजाय धधक उठी। 52वीं रेजीमेंट के सैनिकों ने पिता-पुत्र की शहादत की रात को ही विद्रोह कर दिया।

Created On :   18 Sept 2021 1:37 PM IST

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