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किसानों के खेतों को नहीं, पॉवर प्लांट को दिया जा रहा गोसीखुर्द बांध का पानी

डिजिटल डेस्क, नागपुर। गोसीखुर्द बांध परियोजना के प्रभावित आज भी अपनी किस्मत को कोस रहे हैं। इनके खेत को पानी नहीं मिल रहा है, लेकिन पॉवर प्लांट को पानी दिया जा रहा है। यह खुलासा सिंचाई शोध यात्रा की टीम के दौरे के दौरान हुआ है।
परेशानियों से जूझ रहे हैं
परियोजना प्रभावितों के पैनल के गोविंद भेंडारकर कहते हैं कि परियोजना भले ही 1984 में शुरू हुई, लेकिन इसका असली निर्माण कार्य 2007 में शुरू हुआ। इस राष्ट्रीय बांध परियोजना को साकार करने के लिए नागपुर और भंडारा जिले के जिन 90 गांवों की जमीन को जबरन अधिग्रहित किया गया था, उसके प्रभावित आज भी परेशानियों से जूझ रहे हैं। बांध बनने के बाद पानी मिलने की आस में वर्षों गुजर गए, पर पानी नहीं मिला। जबकि इसी बांध का पानी पावर प्लांट को दिया जा रहा है। यह जानकारी सिंचाई शोध यात्रा की टीम के दौरे के समय परियोजना पीड़ितों से मुलाकात के दौरान दी गई।
नहीं हुआ नहरों का निर्माण
टीम के सदस्यों ने बताया कि जब दो साल पहले गोसीखुर्द बांध की 22.93 किमी लंबी बाईं नहर का दौरा करने टीम पहुंची, तब टीम को भरोसा दिलाया गया था कि तीन साल के भीतर नहर का काम पूरा हो जाएगा, लेकिन दोबारा परिसर का मुआयना करने पर काम आधा भी नहीं हो पाने का खुलासा हुआ है। 34 साल से बन रहे इस प्रकल्प में नहर तो दूर, उनके उप नहर और अन्य सहायक नहरों का निर्माण नहीं हो सका। जब इसकी योजना तैयार की गई थी, तब इसकी लागत 24.81 करोड़ रुपए थी, जो पिछले साल सितंबर तक बढ़कर 662 करोड़ रुपए तक पहुंच गई है।
दूषित पानी से बढ़ता प्रदूषण
इस बांध में नागपुर की नाग नदी का गंदा पानी छोड़े जाने से पानी में भयंकर बदबू उठती है। यहां खड़े रहना भी मुश्किल होता है। हाईकोर्ट के निर्देशों के बाद भी यहां दूषित पानी पहुंचना बंद नहीं हुआ है। इस यात्रा में जनमंच के अधिवक्ता अनिल किलोर, शरद पाटील, प्रमोद पांडे, रमेश बोरकुटे, लोकनायक बापूजी अणे स्मारक समिति समन्वयक अविनाश काले प्रमुखता से शामिल थे।
Created On :   17 July 2017 6:52 PM IST