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3 सौ रुपये रोजाना कमाने वाले बुनकर आज पाई-पाई को मोहताज
डिजिटल डेस्क जबलपुर । एक समय था जब जबलपुर शहर में हजारों की संख्या में बुनकर हुआ करते थे, लेकिन आज उनकी संख्या एक सैकड़ा पर सिमट कर रह गई है। इन बुनकरों के सामने सबसे बड़ा संकट लॉकडाउन के दौरान आया है। जो बुनकर हर रोज 3 सौ रुपए कमाता था, आज वह पाई-पाई को मोहताज है। कोरोना संकट के दौरान उनकी मशीनें बंद पड़ी हैं। सबसे ज्यादा अफसोस उन्हें इस बात का है कि उनकी रोजी रोटी को जारी रखने के लिए सरकार भी कोई ठोस कदम नहीं उठा रही है। चांदनी चौक का क्षेत्र हाई रिस्क घोषित होने के बाद कई बुनकरों का तो घरों से निकलना भी दूभर हो गया है।
बुनकर बताते हैं कि पिछले कई दशकों से वे पुश्तैनी काम करके अपना परिवार चलाते आ रहे हैं। उनके द्वारा तैयार किये जाने वाले कम्बल, कपड़े, चादर व अन्य सामग्रियों की मांग अब बंद हो गई। साथ ही लॉकडाउन के दौरान बाजार बंद होने से निजी तौर पर बिक्री के लिए तैयार किए जाने वाले कपड़े, चादर, गमछे आदि की बुनाई नहीं की जा रही है। ये बुनकर दबी जुबान से बताते हैं कि हालात ऐसे ही रहे तो वह दिन ज्यादा दूर नहीं, जब उनके सामने भूखे मरने की स्थिति आ जाएगी।
चीजें बेच कर चला रहे हैं परिवार
कारीगर निजामुददीन और मुजीबुल अंसारी ने बताया कि काम बंद होने से उनकी आमदनी भी बंद हो गई है। पहले जो काम उन्होंने किए थे, अभी तो उसकी मजदूरी भी नहीं मिली है। ऐसे में पहले से जमा पूंजी या घरों में रखे धान व अन्य चीजों को बेचकर किसी तरह परिवार की जीविका चला रहे हैं। वे बताते हैं कि कुछ सामाजिक संगठनों द्वारा भी मदद करने से कई बुनकरों का पेट भर रहा है। परवीन बानो कहती हैं कि शादी के बाद से ही वे यह काम कर रही हैं। अब लॉकडाउन में किसी तरह अपना परिवार पाल रही हैं।
तैयार पड़ा माल, नहीं भेज पा रहे
पसियाना हथकरघा बुनकर समिति के प्रमुख अजहरउद्दीन अंसारी के अनुसार पिछले करीब डेढ़ माह से कच्चा माल न आने से कारीगरों की मशीनें बंद पड़ी हैं। कई कारीगरों के पास माल बनकर तैयार रखा है, लेकिन वो उसे भेज भी नहीं पा रहे। मजदूरों के भी हाल बेहाल हैं। उन्होंने जिला प्रशासन और राज्य शासन से अपील की है कि बुनकरों के लिए ठोस व तात्कालिक कदम उठाए जाएं, ताकि उनका पुश्तैनी कामकाज जारी रह सके।
Created On :   2 May 2020 2:41 PM IST