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जब जनगणना में जनजाति माना गया है तो फिर प्रमाणपत्र देने में क्या दिक्कत
डिजिटल डेस्क, नागपुर. राज्य में हलबा सहित अनेक जनजातियों का मुद्दा गंभीर बना हुआ है। अनुसूचित जनजाति में शामिल अनेक जातियों को सरकार द्वारा बोगस बताने पर गुरुवार को लंबी बहस हुई। सवाल उपस्थित किया गया कि, जब जनगणना करते समय इन्हें अनुसूचित जनजाति में दर्ज किया गया है, तो फिर जाति वैधता प्रमाणपत्र देने में दिक्कत क्या है? अगर आंकड़ों में दर्ज 5.4 प्रतिशत लोगों को अनुसूचित जनजाति नहीं माना जाता है, तो इस हिसाब से अनुसूचित जनजाति कि लिए आरक्षित 14 विधानसभा और 2 लोकसभा क्षेत्र बोगस ठहरते हैं। इसे लेकर सत्तापक्ष और विपक्ष दोनों सदस्यों ने कई गंभीर सवाल उठाए। आदिवासी विकास मंत्री विजय कुमार गावित ने कहा कि, जनसंख्या में जो आंकड़े आए हैं, वह जाति साबित करने के लिए नहीं है। किसे जाति प्रमाणपत्र देना है, इसके लिए क्राइटेरिया तय है। सुप्रीम कोर्ट का निर्णय है कि, प्रत्येक केस को अलग से देखा जाए। 46 जनजातियां हैं, जो अलग-अलग बिखरी हैं। उन्हें योजना का लाभ दिया जाता है। हालांकि, इस पर सदस्यों का समाधान नहीं हुआ। आखिरकार उपसभापति डॉ. नीलम गोर्हे ने इस पर अलग से बैठक लेने के निर्देश दिए। गावित ने कहा कि, उपसभापति के कक्ष में इस पर बैठक लेंगे।
खून के रिश्ते वालों को सर्टिफिकेट देने में दिक्कत क्या है : वर्ष 2011 की जनगणना अनुसार, राज्य में 9.35 प्रतिशत आबादी यानी 1 करोड़ 05 लाख 10 हजार 213 जनसंख्या अनसूचित जनजाति की है। इनके लिए 25 विधानसभा क्षेत्र और 4 लोकसभा क्षेत्र आरक्षित हैं। हालांकि, सरकारी रिकॉर्ड में 3.9 प्रतिशत आबादी यानी 43 लाख 72 हजार 007 को आदिवासी क्षेत्र में माना गया, जबकि 5.4 प्रतिशत यानी 61 लाख 38 हजार 206 को आदिवासी क्षेत्र से बाहर है। इन्हें अनुसूचित जनजाति नहीं माना गया अर्थात बोगस माना गया। विधानपरिषद में ध्यानाकर्षण प्रस्ताव के तहत भाजपा सदस्य गोपीचंद पडलकर ने प्रश्न उपस्थित करते हुए कहा कि, 45 जातियां अनुसूचित जनजाति में शामिल हैं, किन्तु 33 जातियों को आरक्षण का लाभ नहीं मिलता, सरकार इन्हें बोगस समझती है। अगर 33 जातियों को बोगस माना जाता है, तो जो राजनीतिक आरक्षण दिया गया है, उसमें से 14 विधानसभा और 2 लोकसभा क्षेत्र का आरक्षण बोगस है क्या? जब निर्वाचन क्षेत्र एसटी श्रेणी में है, तो फिर जाति वैधता प्रमाणपत्र देने में दिक्कत क्या है। शेकाप के जयंत पाटील ने भी इस मुद्दे पर कहा कि, चुनाव में आरक्षित क्षेत्र है, लेकिन उन्हें सर्टिफिकेट नहीं देते हैं। जब वे लोग बोगस हैं, तो फिर उन्हें निर्वाचन क्षेत्र में एसटी क्यों समझा जाता है। अगर एसटी समझते हैं, तो सर्टिफिकेट जारी करें। यह कानून सभागृह तय करेगा न कि, अधिकारी। राकांपा गटनेता शशिकांत शिंदे ने भी नीतिगत निर्णय लेने को कहा। एकनाथ खड़से ने कहा, जब किसी व्यक्ति की जाति वैधता पड़ताल हो गई है, तो खून के रिश्ते वालों को सर्टिफिकेट देने में क्या दिक्कत है।
Created On :   30 Dec 2022 7:51 PM IST