बेटी के परीक्षार्थी रहते हुए निभाई परीक्षा नियंत्रक की भूमिका, कुलपति, कुलगुरु और  कुलसचिव को हाईकोर्ट का नोटिस

while daughter is giving father becomes Controller of Examinations, HC gives notice
बेटी के परीक्षार्थी रहते हुए निभाई परीक्षा नियंत्रक की भूमिका, कुलपति, कुलगुरु और  कुलसचिव को हाईकोर्ट का नोटिस
बेटी के परीक्षार्थी रहते हुए निभाई परीक्षा नियंत्रक की भूमिका, कुलपति, कुलगुरु और  कुलसचिव को हाईकोर्ट का नोटिस

डिजिटल डेस्क, नागपुर। यूनिवर्सिटी कुलगुरु डॉ. सिद्धार्थ विनायक काणे के खिलाफ नैतिक अध:पतन किए जाने की हाईकोर्ट के नागपुर खंडपीठ में याचिका दायर की गई है। याचिका में सन 2012 में उनकी बेटी अभियांत्रिकी की छात्रा रहते हुए परीक्षा नियंत्रक की भूमिका निभाकर महाराष्ट्र विश्वविद्यालय कानून 1994 का उल्लंघन किए जाने का आरोप लगाया गया है। 

नियमों का उल्लंघन
सुनील मिश्रा की याचिका पर हाईकोर्ट के जस्टिस अतुल चांदूरकर ने सुनवाई कर विश्वविद्यालय के कुलपति राज्यपाल सी. एच. विद्यासागर राव, कुलगुरु सिद्धार्थ विनायक काणे और विश्वविद्यालय के कुलसचिव को नोटिस जारी किया है। याचिकाकर्ता के अनुसार कुलगुरु काणे 15 नवंबर 2010 से 13 नवंबर 2012 तक नागपुर विश्वविद्यालय में परीक्षा नियंत्रक के रूप में कार्यरत थे। इसी कालावधि में उनकी बेटी ने अभियांत्रिकी स्नातक की सन् 2012 में ग्रीष्मकालीन परीक्षा दी थी। महाराष्ट्र विश्वविद्यालय अधिनियम 1994 तथा महाराष्ट्र सार्वजनिक विश्वविद्यालय अधिनियम 2016 के अनुसार परीक्षा नियंत्रक अथवा परीक्षा संचालक विश्वविद्यालय की परीक्षाओं का संरक्षक होता है।

इस पद पर कार्यरत रहते हुए परिवार का कोई सदस्य विश्वविद्यालय की परीक्षा में बैठता है, तो उसे परीक्षा के कार्यों से दूर रहना चाहिए। अथवा विश्वविद्यालय को लिखित रूप से अवगत कराया जाना चाहिए। कुलगुरु काणे का दावा है कि उन्होंने तत्कालीन कुलगुरु बी. वेणूगोपाल रेड्डी और डॉ. ए. डी. चौधरी को उनकी बेटी स्नातक परीक्षा दे रही है, इस संबंध में मौखिक सूचना दी थी।

लिखित रूप से नहीं करवाया अवगत
याचिकाकर्ता मिश्रा का आरोप है कि कुलगुरु काणे ने विश्वविद्यालय को लिखित रूप से अवगत नहीं कराया था और न ही परीक्षा संबंधी कार्यों से अपने-आप को दूर रखा।  मिश्रा ने उसी समय कुलपति से लिखित शिकायत की थी। संवैधानिक पद पर कार्यरत व्यक्ति ने दी मौखिक जानकारी कानून के प्रावधानों का पालन करने के लिए पर्याप्त है क्या, यह सवाल पूछा था। उनकी शिकायत को कुलपति कार्यालय ने खारिज कर दी थी। कुलपति कार्यालय के निर्णय को मिश्रा ने उच्च न्यायालय में चुनौती दी है। तत्कालीन कुलगुरु रेड्डी इन दिनों कुलपति कार्यालय में बतौर सचिव कार्यरत हैं।

याचिका में अधिनियम सन् 1994 की धारा 44 ई तथा वर्तमान कानून की धारा 60 के अनुसार कुलगुरु को नैतिक अध:पतन के लिए जिम्मेदार ठहराकर पद से बर्खास्त करने की न्यायालय से गुहार लगाई गई है। कुलपति, कुलगुरु और विद्यापीठ से जवाब तलब किया गया है।  

Created On :   25 April 2018 1:39 PM IST

और पढ़ेंकम पढ़ें
Next Story