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डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट : इस कारण से नागपुर बना सबसे प्रदूषित शहर

- प्रदूषित शहर के पीछे शहर में सर्वाधिक धूल-कण को आधार माना गया है।
- विशेष यह कि जिन शहरों को प्रदूषित घोषित किया गया है
- उसकी न कोई सैंपलिंग की गई और न कोई एनालिसिस किया गया।
- विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा भारत के 14 शहरों में नागपुर को सबसे प्रदूषित शहर माना गया है।
डिजिटल डेस्क, नागपुर। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा भारत के 14 शहरों में नागपुर को सबसे प्रदूषित शहर माना गया है। सबसे प्रदूषित शहर के पीछे शहर में सर्वाधिक धूल-कण को आधार माना गया है। विशेष यह कि जिन शहरों को प्रदूषित घोषित किया गया है, उसकी न कोई सैंपलिंग की गई और न कोई एनालिसिस किया गया। सीपीसीबी द्वारा वेबसाइट पर डाले गए डाटा के आधार पर नागपुर को सबसे प्रदूषित शहर घोषित कर दिया गया। डब्ल्यूएचओ की घोषणा पर अब पर्यावरणविदों और पर्यावरण प्रेमी संस्थाओं ने सवाल उठाए हैं। पर्यावरणविदों ने डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट को मानने से इनकार कर दिया कि इसके लिए सही मानकों को लागू नहीं किया गया है। सिर्फ वेबसाइट के आंकड़े, वह भी 2015-16 के आंकड़ों को आधार बनाकर इस तरह की घोषणा कर, नागपुर की प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचाना है।
तथ्यहीन है घोषणा
ग्रीन विजिल संस्था के संस्थापक कौस्तुभ चटर्जी व टीम लीडर सुरभि जैस्वाल ने डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट का अध्ययन करने के बाद बताया कि उक्त रिपोर्ट के आधार पर नागपुर को सबसे प्रदूषित कहना तथ्यहीन है। भारत का राजपत्र राष्ट्रीय परिवेशी वायु गुणवत्ता मानक अधिसूचना 2001 के अनुसार वायु प्रदूषण के निम्नलिखित मानक हैं। जैसे गैसेस में सल्फर डाई-ऑक्साइड, नाइट्रोजन डाई-ऑक्साइड, ओजोन, कार्बन मोनोऑक्साइड, अमोनिया, बेनजेने, हैवी मेटल्स में अर्सेनिक, निकिल, लीड, परटिक्यूलर मैटर में पीएम-10, पीएम-2.5 मानको की जांच होनी चाहिए। किसी भी शहर के वायु को प्रदूषित बताने से पहले निम्नलिखित सभी मानकों की जांच होनी आवश्यक है, जबकि इस रिपोर्ट में सिर्फ परटिक्यूलर मैटर को गिना गया।
मॉनिटरिंग स्टेशन के डाटा पर निर्भर
वायु प्रदूषण की दृष्टिकोण से सबसे महत्वपूर्ण ग्रीन हाउस गैसेस हैं, जिसका इस रिपोर्ट में कोई उल्लेख नहीं है। कार्बन उत्सर्जन, जिसे ग्लोबल वार्मिंग का मुख्य कारण माना गया है, उसका इस रिपोर्ट में कोई उल्लेख नहीं है। डब्ल्यूएचओ ने खुद कोई सैंपलिंग या एनालिसिस नहीं किया। सीपीसीबी द्वारा वेबसाइट पर डाले गए डाटा का संकलन किया है। उसी तरह अन्य देशों के डाटा भी वेबसाइट से इकट्ठा किए गए हैं। जिस डाटा के प्रकाशित होने से हो-हल्ला हो रहा है, वह डाटा 2015-16 का है। डब्ल्यूएचओ ने यह भी बताया है कि उनकी टिप्पणी सिर्फ एक मात्र मॉनिटरिंग स्टेशन पर आधारित है। एक मॉनिटरिंग स्टेशन का डाटा पर निर्भर रहकर किसी शहर को प्रदूषित घोषित नहीं किया जा सकता है।
शहर के विकास पर पड़ सकता है असर
कौस्तुब चटर्जी बताते हैं कि उक्त तथ्यों से साबित होता है कि डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट के आधार पर शहर को वायु प्रदूषित घोषित करना सही नहीं है। नागपुर एक विकासशील शहर है, जहां निर्माणकार्य युद्धस्तर पर चल रहा है। मेट्रो, सीमेंट रोड, मॉल्स, मल्टी स्टोरी बिल्डिंग के निर्माणकार्य के कारण पीएम-2.5, पीएम-10 अर्थात धूल कण में वृद्धि होना स्वाभाविक है। अगर इसी तरह नागपुर व भारत के अन्य शहरों को िवदेशी संस्थाओं द्वारा प्रदूषित बताया जाएगा, तो विदेशी निवेशक या बड़े कार्पोरेट हाउसेस इन शहरों में निवेश करने से हिचकेंगे। प्रदूषित शहर में कोई नई औद्योगिक इकाई लगाना नहीं चाहेगा। ऐसे में शहर का विकास रुक जाएगा। ग्रीन विजिल ने ऐसे किसी रिपोर्ट को मानने से इनकार किया है।
Created On :   4 May 2018 11:04 PM IST