दुनिया का सबसे छोटे आकार का सिक्का, काफी पुराना है इतिहास

Worlds smallest coin in nagpur, know what is the history
दुनिया का सबसे छोटे आकार का सिक्का, काफी पुराना है इतिहास
दुनिया का सबसे छोटे आकार का सिक्का, काफी पुराना है इतिहास

डिजिटल डेस्क, नागपुर।  राई के दाने के आकार का सिक्का सुनकर ही आश्चर्य होता है, लेकिन हमारे यहां किसी काल में राई के दाने के आकार का सिक्का भी चलन में रहा है। वैसे तो अर्थ व्यवस्था को चलाने के लिए पैसों की जरूरत होती है। हर देश, काल में पैसों का व्यवहार अपने-अपने तरीके से होता रहा है। बड़े शिलालेखों से लेकर कौड़ियों तक को मुद्राओं के रूप में राज-महाराजाओं ने चलाया है। आश्चर्य की बात है कि देश के एक राजवंश ने राई के दाने के आकार का एक स्वर्ण मुद्रा चलन में लाया था। यह दुर्लभ सिक्का शहर के युवा मनीष चिंचमलातपुरे ने कई दिनों की तलाश के बाद खोज निकाला है। इस सिक्के को ‘बेले’ कहा जाता है। यह विजय नगर राजघराने के कृष्णदेव राय के राजवंश के बताए जाए हैं। ये सिक्के सन 1509-1565 के काल के बताए जाते हैं। इस स्वर्ण मुद्रा को बहुत बारीकी से देखने पर उसमें लकीरों से उकेरी गईं कृतियां नजर आती हैं।

गांधार देश का सिक्का

मनीष के पास इसी तरह का एक और सिक्का गांधार देश का है, जिसे लेकर दावा किया जाता है कि यह दुनिया की पहली मुद्रा है, जो करीब ढा़ई हजार साल पुरानी है। घुमावदार आकार में बने इस सिक्के में फूलों के छाप हैं। इन फूलों को जानकार सूर्य और चंद्र की उपमा देते हैं। गांधार वर्तमान में अफगानिस्तान में है। महाभारत काल में देश के रिश्ते गांधार तक होने का उल्लेख है।

विभिन्न प्रकार के सिक्के

पेशे से बॉटनिस्ट मनीष की लाइब्रेरी में ये दुर्लभ सिक्के ही नहीं ट्रांसनिस्ट्रिया देश द्वारा जारी किए गए प्लास्टिक के सिक्कों से लेकर सोमालिया सरकार द्वारा जारी किए गए ज्यामितिक अर्थात ज्यॉमिट्रिकल सिक्के हैं, जिसमें क्यूब, सिलेंडर, पिरामिड, कोन, स्फीयर आदि आकारों में जारी किए गए सिक्कों का समावेश है।

साहित्य के क्षेत्र में बढ़ी महिला रचनाकारों की सहभागिता

एक साथ ढेरों युवा लेखिकाओं का सामने आना कहीं न कहीं साहित्य जगत के बढ़ते दायरे का सबूत है। ये लेखिकाएं साहित्य का चेहरा बदल रही हैं। ऐसा नहीं है कि हिंदी में लेखिकाएं पहले से सक्रिय नहीं रही हैं। कथा साहित्य में तो उनकी खास जगह रही है। यह कहना है गुजराती साहित्यकार काजल ओझा वैद्य का। वे शहर में गुजराती नव वर्ष के उपलक्ष्य में आयोजित कार्यक्रम में आई थीं। कार्यक्रम का आयोजन गुजरात समाज भवन में किया गया था। काजल ओझा ने मीडिया, थिएटर और टेलीविजन पर विविध भूमिकाएं निभाई हैं। वह विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में कॉलम लिखने के साथ-साथ रेडियो पर शो होस्ट भी करती हैं। उन्होंने कहा कि अब एक साथ ढेरों महिला रचनाकारों के आने से विषयवस्तु और भाषा का तेवर बदल गया है। ये नई लेखिकाएं आत्मनिर्भर महिलाएं हैं।

बदल गया है लेखन का माध्यम

काजल ने कहा कि जब कोई भाषा खत्म होती है, तो उसके साथ कल्चर की भी मौत होती है। एेसे में अपनी लोकल ट्रेडिशनल लैंग्वेज से लगातार दूर होने से आने वाले बच्चों को विरासत में वहीं लैंग्वेज मिलती है, जिसका उनके माता-पिता सबसे ज्यादा उपयोग करते हैं। अपनी भाषा जब मात-पिता ही नहीं बोलेंगे, तो बच्चे कैसे बोलेंगे। अब शॉर्ट फिल्मों और सोशल मीडिया के जरिए लोग अपनी बात कह रहे हैं। वहीं थिएटर लवर्स के बारे में उन्होंने कहा कि अब लोग पैसा खर्च नहीं करना चाहते हैं। फिल्मों में गालियों का यूज करने के बारे में काजल ने बताया कि यह गलत है, इससे युवाओं पर गलत असर हो रहा है। फिल्मों का विरोध जायज नहीं है।

Created On :   30 Oct 2017 10:05 AM IST

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