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Pune City News: वास्तविक जीवन में भी वीरू की तरह दोस्ती निभाते थे धर्मेंद्र

- सांस्कृतिक नगरी पुणे से भी रहे हैं ही-मेन के स्नेह संबंध
- निधन के बाद आंसू बनकर उमड़ पड़ी स्मृतियां
भास्कर न्यूज, पुणे। ब्लैक एंड व्हाइट फिल्मों से अभी तक हिंदी फिल्म जगत में छाए रहे बॉलीवुड के ही-मेन यानी धर्मेंद्र का सोमवार को 86 वर्ष की उम्र में निधन हो गया। धर्मेंद्र सिर्फ एक अच्छे अभिनेता ही नहीं थे, बल्कि एक अच्छे इंसान भी थे। उन्होंने अपने संघर्ष के दिनों के दौरान मदद करने वालों की सदैव मदद की। फिर चाहे वह पी एंड टी कालोनी का टैक्सी वाला हो या बांद्रा का ढाबे वाला हो या अंधेरी का बुट पॉलिश करने वाला हो। शोले फिल्म में जय यानी अमिताभ बच्चन के दोस्त वीरू का किरदार सिर्फ एक किरदार नहीं था, बल्कि धर्मेंद्र वास्तविक जीवन में भी एक अच्छे दोस्त की भूमिका निभाते थे। सांस्कृतिक नगरी पुणे से भी उनका गहरा स्नेह संबंध रहा है। लोनावला स्थित फार्म हाउस पर वे हमेशा आते रहते थे। पुणे फेस्टिवल और कई बार अपने दोस्तों से मिलने के लिए भी उनका पुणे आना-जान लगा रहता था। उन्हीं के शब्दों में 'यह शहर उन्हें अपना सा लगता है।' यहां की संस्कृति, लोग और खाने से उन्हें काफी लगाव था। उनके निधन के बाद उनके प्रशंसकों के साथ ही उनके दोस्तों की भी आंखें नम है। यहां प्रस्तुत है, कुछ ऐसे चुनिंदा लोगों की स्मृतियां, जो उन्होंने कभी अभिनेता धर्मेंद्र के साथ गुजारी थीं।
- उन्हें बिरयानी और चकली बहुत पसंद थी
धर्मेंद्र जी बहुत ही सरल स्वभाव के थे। वे मुझसे मिलने के लिए दो बार पुणे आए थे। उनसे मिलकर बहुत ही अपनापन महसूस होता था। अभी हाल ही में मैं उनसे मिलने के लिए 6 महीने पहले उनके फार्म हाउस पर गया था। उन्हें मेरे घर की बिरयानी बहुत पसंद थी। जब भी वे आए, मैंने उनके लिए अपने घर पर बिरयानी बनवाई। अभी भी मैंने उनको बिरयानी का निमंत्रण दिया था, लेकिन अब वे हमारे बीच नहीं रहे। मैं हर साल उनके लिए पुणे से दिवाली का फराल भेजता था। उनको चकली, सेव बहुत पसंद था। वे आग्रह और अधिकार से मुझे ढेर सारी चकली लाने के लिए कहते थे। अब जब भी घर में चकली बनाई जाएगी, धर्मेंद्र जी बहुत याद आएंगे।
- सुभाष सनस, वाइस प्रेसिडेंट पुणे फेस्टिवल
सांस्कृतिक नगरी से खास लगाव
पुणे एक सांस्कृतिक शहर है, इसलिए धर्मेंद्र जी को पुणे बहुत पसंद था। 2007 में उन्हें जीवन गौरव पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। इस दौरान उन्होंने तीन भाषाओं हिंदी, अंग्रेजी और पंजाबी में बात की थी। इस दौरान उन्होंने यह भी कहा था कि फिल्म फेस्टिवल बहुत महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि इसमें वे फिल्में भी देखने को मिलती है जो आमतौर पर हम नहीं देख सकते हैं। पुणे के माहौल की वजह से उन्हें पुणे से खास लगाव था।
- विशाल शिंदे, उपनिदेशक, पिफ
आम आदमी और सेलिब्रिटी में भेदभाव नहीं करते थे
मेरा धर्मेंद्र जी से 1984 से ही रिश्ता रहा है। हेमा मालिनी जी हमेशा पुणे फेस्टिवल में आती रहतीं थी इस वजह से उनसे रिश्ता और गहरा हो गया। वे जमीन से जुड़े हुए अभिनेता थे, उन्हें हाई प्रोफाइल लाइफ बिल्कुल पसंद नहीं थी। लोनावला के फार्म हाउस से उन्हें बहुत लगाव था। वहां पर मैं कई बार उनसे मिलने गया। वे हमेशा अपने गांव की, अपने रिश्तेदारों की बात किया करते थे। वे दिल और दिमाग से गांव की मिट्टी से जुड़े हुए थे। खाने का उन्हें बहुत शौक था। वे हर तरह का खाना खाते थे, शर्त सिर्फ इतनी ही थी कि खाना स्वादिष्ट होना चाहिए। जब उन्होंने बिकानेर से चुनाव लड़ा था, तब भी मैं उनके साथ था। उनकी सबसे बड़ी खासीयत यह था कि वे आम आदमी और सेलिब्रिटी में कोई भेदभाव नहीं करते थे। किसी को भी वे तकलीफ में नहीं देख सकते थे। कोई उनके पास मदद के लिए आता था वे उनकी मदद करते थे। जिससे भी जुड़ते थे वे दिल से जुड़ते थे।
– कश्यप सिंह चुड़ासमा, ट्रस्टी, पुणे फिस्टिवल
सनीज वर्ल्ड की 'हरियाली' धर्मेंद्रजी को सच्ची श्रद्धांजलि
भारतीय सिनेमा की दुनिया पर राज करने वाले धर्मेंद्रजी दिल से एक सच्चे प्रकृति प्रेमी थे। उन्हें क्षेत्रीय और भारतीय पारंपरिक पौधे की प्रजातियों से बहुत प्यार था। कुछ साल पहले सनीज वर्ल्ड घूमने के बाद, उन्होंने मेरे पिता विनायक उर्फ आबा निम्हन को यहां भी ऐसे ही प्रादेशिक पेड़ लगाने की सलाह दी थी। आबा और टीम ने उस सलाह को पूरे दिल से माना, आज वहां पर हरियाली छाई हुई है। यह हरा-भरा वातावरण धर्मेंद्रजी के प्रकृति के प्रति प्यार और उन्हें हमारी सच्ची श्रद्धांजलि का जीता-जागता उदाहरण है। निम्हण परिवार और सनीज वर्ल्ड परिवार की ओर से धर्मेंद्रजी को विनम्र अभिवादन।
बेस्ट पीआरओ के साथ आप अच्छे इंसान हो
धर्मेंद्र और अभिनेत्री आशा पारेख को 2007 में पांचवें पुणे इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल (PIFF) में जीवन गौरव पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। उसके दूसरे दिन, तब के होटल ली-मेरिडियन में धर्मेंद्र का 'मीट द प्रेस' आयोजित किया गया था। धर्मेंद्र इसी होटल में ठहरे हुए थे। 'मीट द प्रेस' शुरू होने से ठीक पांच मिनट पहले वे हॉल के पहले माले पर आए। उनके साथ धर्मेंद्र के मित्र और पुणे फेस्टिवल के ट्रस्टी, कश्यप सिंह चूड़ासमा थे। जब वे लिफ्ट से बाहर आए, तो पीआईएफएफ के पी.आर.ओ. के नाते मैंने उनका स्वागत किया। उस समय उन्होंने बड़े स्नेह से मेरा हाथ पकड़ा और मेरा हाल-चाल पूछा। मेरे कंधे पर हाथ रखकर उन्होंने प्यार से कहा, "आज सुबह होटल के कमरे में मैंने मराठी, हिंदी और अंग्रेजी के न्यूज पेपर देखे। कल के कार्यक्रम की हर जगह बड़ी तस्वीरें और खबरें देखकर खुशी हुई। यू आर ए गुड पी.आर.ओ।" कहते हुए उन्होंने मेरी पीठ थपथपाई।
जब मैंने विनम्रता से कहा कि मेरा काम केवल मीडिया कोऑर्डिनेशन का है। सारी प्रसिद्धि केवल आपकी वजह से मिली है," तो वह दिल खोलकर हंसे और बोले, आप 'अच्छे पी.आर.ओ. हो। वैसे ही अच्छे, ऑनेस्ट इंसान भी हो। बातचीत करते हुए ही हम हॉल के पास आ गए। हॉल में 100 से अधिक कैमरामैन, फोटोग्राफर और रिपोर्टर मौजूद थे। पीआईएफएफ के डायरेक्टर डॉ. जब्बार पटेल ने वहां उनका स्वागत किया और फिर 'मीट द प्रेस' शुरू हुआ। अत्यंत आकर्षक व्यक्तित्व और अपार लोकप्रियता होने के बावजूद, 'मीट द प्रेस' समाप्त होने पर उन्होंने अपने साथ फोटो खिंचवाने वालों को बड़ी सहजता से फोटो खिंचवाने दिए। वह सांसद सुरेश कलमाडी के साथ बाहर निकले। थोड़ा आगे जाने पर उन्होंने पीछे मुड़कर फिर से सभी को हाथ हिलाया और कहा, "मिलते रहो।" अब इतना बड़ा सुपरस्टार इतनी सादगी से पेश आ रहा था, इसलिए यह कहना पड़ेगा कि उन्होंने सभी के दिलों में जगह बना ली।
-प्रवीण प्र. वालिंबे
मिट्टी के सच्चे पुत्र, कृषि के पक्के दीवाने
साल 2019 की वह सुबह मेरे लिए बेहद खुशनुमा बन गई जब हमारे मित्र प्रदीप जयकर का फोन आया। उन्होंने बताया कि एक विशेष व्यक्ति मुझसे मिलना चाहते हैं और वर्टिकल फार्मिंग तथा एरोपोनिक्स तकनीक देखने की इच्छा रखते हैं। जब मैंने नाम पूछा तो वे बोले— “अपने धरम पाजी।”
धर्मेंद्र पाजी का नाम सुनकर मेरा उत्साह सातवें आसमान पर था। थोड़ी देर बाद स्वयं धर्मेंद्र पाजी का फोन आया, और अपनी परिचित विनम्रता में उन्होंने पूछा—
“प्रवीण, मैं आपके यहां कब आकर यह तकनीक देख सकता हूं?”
मैंने पूरा सम्मान देते हुए उन्हें अगले दिन का समय दिया।
तय समय से कुछ पहले ही मैं अपने फार्महाउस पहुंच गया। थोड़ी ही देर में वे अपनी रेंज रोवर से अपनी टीम के साथ पहुंचे। वे बड़ी गर्मजोशी से हम सभी से मिले। उन्हें सामने देखकर ऐसा लगा मानो मैं वर्षों से उन्हें जानता हूं। उनके व्यवहार और सादगी में परिवार के किसी बड़े सदस्य की गरिमा झलक रही थी। अनायास ही मैंने उनके चरण स्पर्श किए।
उन्होंने आशीर्वाद देते हुए कहा कि उन्होंने मेरे काम के बारे में सुना है और यह देखकर उत्सुक हैं कि बिना मिट्टी और बिना माध्यम के हम चेरी टमाटर कैसे उगा रहे हैं।
जब मैंने उन्हें तकनीक समझाना शुरू किया, तो मुझे यह देखकर सुखद आश्चर्य हुआ कि वे अत्यंत एकाग्रता से हर बात सुन रहे थे। समय-समय पर वे ऐसे प्रश्न पूछते जिनसे स्पष्ट था कि उन्हें कृषि का गहरा ज्ञान है। तय हुआ कि हमारी टीम भी उनके फार्महाउस जाकर वहां की व्यवस्थाएं देखेगी।
फार्म से विदा होते समय सभी कर्मचारियों ने उनके साथ फोटो खिंचवाने की इच्छा ज़ाहिर की। पाजी ने एक पल भी झिझक नहीं दिखाई—हर किसी के साथ बड़े प्यार से फोटो खिंचवाई।
दूर खड़ी एक मजदूर महिला भी फोटो चाहती थी, पर वह देर से पहुंची। जैसे ही वह बोली कि उसे भी फोटो चाहिए, धरम पाजी मुस्कुराते हुए बोले—
“आ-आ, तेरे साथ भी फोटो खिंचवाऊंगा।”
उनकी यह आत्मीयता हमारे लिए अविस्मरणीय थी।
दादा मुनि का दिया 100 रु. का हस्ताक्षरित नोट आज भी संभालकर रखा है
जब मैं उनके फार्महाउस गया, तो उन्होंने मुझे पूरा परिसर दिखाया—डेयरी, सब्ज़ियां, पारंपरिक खेती—सब कुछ बड़े प्रेम और आत्मीयता से।
वापस लौटने पर एक टीवी चैनल का इंटरव्यू चल रहा था। उसमें वे दादा मुनि (अशोक कुमार) के बारे में बड़े गर्व और स्नेह से बता रहे थे। उन्होंने कहा—
“दादा मुनि ने मुझे एक सौ रुपये का नोट दिया था, उसी पर मैंने उनसे ऑटोग्राफ लिया था। वह नोट आज भी संभालकर रखा है। दादा मुनि मेरे लिए बड़े भाई जैसे थे।”
उन्होंने यह भी बताया कि उस दौर में मोहन चोटी, असित सेन और धुमाल के साथ वे फिल्मों की शूटिंग के दौरान खूब आनंद किया करते थे।
धरम पाजी ने अपने जीवन, अपने अनुभवों और अपने किस्सों को बड़े दिल से साझा किया। सच कहूं तो यदि उन्हें लिखना शुरू कर दूं, तो एक किताब भी कम पड़ जाएगी।
उन्होंने अपने फार्महाउस पर पूरी तरह पारंपरिक खेती की—पर उसे असली लगन, प्रेम और समर्पण के साथ। अपने खेत में उगते हर नए फल से उनकी आंखों में एक अनोखी चमक दिखाई देती थी।
धरम पाजी को विनम्र श्रद्धांजलि।
वे मिट्टी के सच्चे पुत्र थे और कृषि समुदाय उन्हें सदैव याद रखेगा।
(यह बात फ्लोरा कंसल्ट पुणे के संस्थापक प्रवीण शर्मा ने भास्कर को बताई)
सदाबहार अभिनेता धर्मेंद्र के निधन पर मशहूर शिल्पी कांबले ने साझा की यादें
अभिनेता धर्मेंद्र देओल के निधन पर अहिल्यानगर के मशहूर शिल्पी प्रमोद कांबले ने, दैनिक भास्कर के साथ उनकी यादें साझा की।
दैनिक भास्कर के अहिल्यानगर जिला संवाददाता राजेंद्र देवढे के साथ संवाद स्थापित करते हुए कांबले ने कहा कि साल 2016 में धर्मेंद्र के 80 वें जन्मदिन पर उनकी पेंटिंग बनवाई थी। उस समय धर्मेंद्र के 80 वें जन्मदिन पर पुणे में एक आर्केस्ट्रा का आयोजन किया गया था। इस दौरान प्रमोद कांबले, धर्मेंद्र की पेंटिंग बनवा रहे थे। जैसे ही धर्मेंद्र को पता चला कि जिन कांबले ने उनकी हुबहू पेंटिंग बनवाई हैं, वे इस कार्यक्रम में मौजूद हैं। धर्मेंद्र ने कांबले को मंच पर आने का अनुरोध कर उनको गले लगाते हुए कहा था कि आपको साक्षात मां सरस्वती का वरदान प्राप्त हैं। यह कहते हुए धर्मेंद्र गदगद हुए थे। बता दें कि प्रमोद कांबले ने अयोध्या में निर्माणाधीन राम मंदिर के परिक्रमा पथ पर बनवाएं शिल्पों की काफ़ी सराहना हुई थी। उन्होंने वानखेडे स्टेडियम के सामने क्रिकेट के भगवान सचिन तेंदुलकर का 29 फीट ऊंचा शिल्प बनवाया हैं। साथ ही मुंबई में, भारतीय रिजर्व बैंक के सामने पंचधातुओं से बना रुपे सिंबल भी साकार किया हैं। उन्होंने, नैशनल डिफेंस अकादमी में शौर्य स्मारक भी बनवाया हैं। इस उपलक्ष्य में पुणे के खड़कवासला चीफ ऑफ आर्मी के स्टाफ की ओर से, पद्मश्री पुरस्कार से समानांतर कमंडेशन एवार्ड से प्रमोद कांबले को सम्मानित किया गया था। हैदराबाद में इंडियन एअरफोर्स के स्मारक के निर्माता भी कांबले ही हैं। ऐसी कई उपलब्धियां हासिल करने वाले मशहूर शिल्पी प्रमोद कांबले, धर्मेंद्र की यादें साझा करते हुए भावूक हुए थे।
Created On :   25 Nov 2025 7:30 PM IST












