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Pune City News: पुलिस की नजरों से ‘ओझल’ होने वाला गैंगेस्टर है नीलेश घायवल

- आज भी पुलिस उसे ढूंढ़ रही है, पर्दे के पीछे से चला रहा गैंग
- 2010 के बाद घायवल गैंग का दबदबा बनने लगा
भास्कर न्यूज, पुणे। पुणे पुलिस के सामने कई नामचीन गैंगेस्टर आए जरूर लेकिन नीलेश घायवल एक ऐसा नामजद अपराधी है जिसे पकड़ने में पुलिस को पसीने आ रहे हैं। वर्तमान में भी पुलिस उसे ढूंढ़ रही है। पुलिस सूत्रों के मुताबिक नीलेश की लोकेशन विदेश (लंदन) में मिल रही है। यह बात अलग है कि ‘गायब’ रहने के दौरान भी वह अपनी गैंग को आसानी से संचालित कर रहा है लेकिन उसके तार पुलिस पकड़ ही नहीं पा रही है। नीलेश पोस्ट ग्रेज्युएट (एम.कॉम) है जो संबंध बनाने में माहिर भी है। संभव है उसके राज बाहर आए तो कुछ राजनीतिज्ञों के साथ पुलिस अधिकारियों के चेहरे से भी नकाब उतर जाए।
नीलेश घायवल एक मध्यमवर्गीय परिवार से था जिसके पिता एक निजी कंपनी में कार्यरत रहे हैं। उसकी पढ़ाई पुणे में ही हुई और वह खुद भी एक निजी कंपनी में काम करता था। साल 2001 में उसकी दोस्ती गजानंद मारणे (गजा) से हुई जिसके ऊपर उस समय तक छोटे-मोटे अपराध के प्रकरण दर्ज थे। बताया जाता है नीलेश का दिमाग और गजा की हिम्मत ने दोनों को ही अपराध जगत में आगे बढ़ाया। गजा ने पहली हत्या ही नीलेश के कारण की। मिलिंद ढोले-पाटिल पतित पावन संगठन का अध्यक्ष था, नीलेश घायवल और मिलिंद ढोले के बीच आपसी रंजिश थी। जिसके चलते गजा मारणे व नीलेश घायवल ने मिलकर मिलिंद ढोले की हत्या की थी। जिसकी दोनों की दोस्ती और घनिष्ठ हो गई थी। वर्ष 2003 बबलू कावेडिया के हत्या के मामले में नीलेश घायवल और गजा मारणे दोनों जेल में थे। जेल में गजा मारणे और बाबा बोडके के बीच आपसी रंजिश के चलते झगड़े हुए करते थे, इस झगड़े में नीलेश घायवल ने साथ नहीं दिया था, जिसके चलते गजा मारणे नाराज था। दोनों की बीच धीरे-धीरे दूरियां बढ़ती गई। असल में गजा मारणे के एक दुश्मन बाबा बोड़के से नीलेश ने दोस्ती गाठ ली थी। गजा मारणे और नीलेश के बीच यही से गैंगवार शुरू हुआ। दोनों ने एक-दूसरे की हत्या के कई बार प्रयास भी किए।
2010 के बाद घायवल गैंग का दबदबा बनने लगा
नीलेश घायवल लंबे समय तक गजा मारणे का उपयोग अपराध करवाने में करता रहा। वह पर्दे के पीछे रहकर कमाई करता रहा। नीलेश की ऊंची ख्वाहिशों ने गजा से उसके संबंध खराब करवा दिए और फिर उसने अपनी गैंग तैयार की। उसने अपनी गैंग तो बना ली लेकिन उसे स्थापित करने में करीब दो से तीन साल लग गए। साल 2010 के बाद से घायवल गैंग का दबदबा बनने लगा। उसके नाम पर लोगों में इतना डर बैठ गया कि नीलेश की मंजूरी के बगैर कई सौदे रूक गए। पुलिस ने उसके खिलाफ कई बार मकोका (महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण कानून) और एमपीडीए (महाराष्ट्र प्रतिबंधक बंदी अधिनियम) जैसी कठोर कार्रवाई की। उसके कई साथी गिरफ्तार हुए और कुछ जेल से छूटकर भी बार-बार पुलिस की रडार पर आते रहे। पुलिस ने उसके 40 से अधिक सहयोगियों को चिन्हित किया है जो आज भी निगरानी में हैं। उन्हें समय-समय पर थाने बुलाकर पूछताछ की जाती है और उन पर सीआरपीसी की धारा 149 के तहत नोटिस भी जारी किए जाते हैं। मुखबिरों के जरिए उसके स्लीपर सेल की भी गतिविधियों पर नजर रखी जा रही है।
केबल नेटवर्क के कारोबार से होती रही आय
कोथरुड में नीलेश का केबल नेटवर्क का कारोबार भी था, जो उसके लिए आय का जरिया और अपराध की आड़ में धन जुटाने का माध्यम बना। हाल के वर्षों में पुलिस ने नीलेश की गिरफ्तारी के लिए अभियान तेज किया, लेकिन वह लंबे समय से फरार है। जांच में सामने आया कि वह विदेश भाग गया था, जिसपर पुणे पासपोर्ट कार्यालय ने उसका पासपोर्ट रद्द कर दिया। पुलिस अब उसके संपर्कों और संपत्तियों की जांच कर रही है। नीलेश की पत्नी स्वाति गृहिणी हैं हालांकि उनके भी राजनीति में शामिल होने की चर्चाएं कई बार चली। नीलेश का भाई सचिन घायवल कर्वेनगर स्थित मिलेनियम स्कूल में स्पोर्ट्स टीचर है जिसके खिलाफ हाल ही में घायवल गैंग के लिए वसूली व धोखाधड़ी को लेकर प्रकरण दर्ज हुआ है। वह भी पुलिस की रडार पर है।
Created On :   8 Nov 2025 5:00 PM IST












