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Pune City News: पुलिस हो गई थी सख्त, लगातार एनकाउंटर होते रहे

- पांच महीने में पांच को मुठभेड़ में मारा
- अन्य कुख्यात अपराधी और बदले की घटनाएं
- गैंगवार में पिस्तौल का पहला इस्तेमाल
भास्कर न्यूज, पुणे। शहर में बढ़ती हिंसा पुलिस के लिए सिरदर्द बन गई थी। इसे देखते हुए पुलिस ने सख्ती बरतनी शुरू की और पांच महीने में पांच अपराधियों को मौत के घाट उतार दिया। 17 मई 1992 को पर्वती इलाके में सरगना गुंडा जग्या म्हस्के पुलिस मुठभेड़ में मारा गया। इसके बाद 24 मई को थेरगांव में सुरेश टकले, 17 सितंबर 1992 को कालेवाड़ी में खलील शेख और मेहमूद शेख और 23 सितंबर 1992 को वडगांवशेरी में मेघनाद शेट्टी पुलिस की गोली का शिकार हुए।
मेघनाद शेट्टी का ठिकाना पुलिस को रफीक शेख ने बताया था, ऐसा शक उसके साथियों को था। इसके बाद बदला लेने के लिए मेघनाद का भाई विश्वनाथ, बाबा भोसले, राजेंद्र एंडल और अन्य साथियों ने 5 नवंबर 1993 को यरवडा के चित्रा टॉकीज चौक में रफीक पर 64 वार करके उसकी निर्मम हत्या कर दी।
दाऊद का साथी पीलू खान गिरफ्तार
इसी बीच 24 अक्टूबर 1992 को दाऊद का करीबी और कुख्यात तस्कर पीलू खान कल्याणी नगर की एक पॉश सोसाइटी के फ्लैट से पकड़ा गया। वह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नशीले पदार्थों की तस्करी से जुड़े कई मामलों में वांछित था। उसका पुणे में ठिकाना होना पुलिस के लिए चौंकाने वाला था। इसी समय, 18 नवंबर 1992 को सोने के विवाद को लेकर लष्कर इलाके से सराफ इंदर सोलंकी का अपहरण किया गया। इस मामले में रफीक शेख और उसके छह साथियों को गिरफ्तार किया गया। जांच से पता चला कि यह वारदात मुंबई के गुंडों के इशारे पर की गई थी।
गैंगवार में पिस्तौल का पहला इस्तेमाल
3 जनवरी 1993 को गवली गिरोह के अजित लावंड की निगड़ी में गोली मारकर हत्या कर दी गई। गैंगवार में पिस्तौल का इस्तेमाल होने का यह पहला मामला सामने आया था। हालांकि इससे पहले संपत्ति विवाद में मुंबई के लखानी नामक व्यापारी ने अपने ही बेटे की नारायण पेठ के चित्रशाला चौक पर गोली मारकर हत्या की थी। यह हत्या गैंगवार की श्रेणी में न होकर निजी मामला था। लावंड की हत्या से बौखलाए गवली गिरोह ने उसके प्रतिद्वंद्वी मुन्ना शेख की तलाश शुरू की। कामशेत में उस पर गोली चलाई गई लेकिन वह बच निकला। जब वह हाथ नहीं आया तो इस गिरोह ने उसके साथी और पिंपरी–चिंचवड़ नगर निगम के नगरसेवक संजय काले की 20 जनवरी 1994 को गोली मारकर हत्या कर दी।
अन्य कुख्यात अपराधी और बदले की घटनाएं
इस दौर में राजा मारटकर, दीपक पुराणे (खड़की), रजाक और अशरफ रामपुरी, नरेश कटारिया, अप्पा कुंजीर, मद्या डॉन, प्रदीप सनस, प्रदीप और राजा तुंगतकर, सुरेश जावलकर जैसे अपराधी शहर के अलग-अलग हिस्सों में दबदबा बनाए हुए थे। 25 मई 1988 को खड़की के कैरम हाउस में मामूली झगड़े से राजा मारटकर ने तंबी गौस की हत्या कर दी। 10 साल बाद, 18 अगस्त 1998 को तंबी के भाई एंथनी ने खड़की में ही मारटकर को मारकर बदला लिया। 29 दिसंबर 1986 को पर्वती दर्शन क्षेत्र में पुराने वैमनस्य के चलते प्रदीप तुंगतकर की हत्या हुई। इसका बदला लेने के लिए उसके भाई राजा तुंगतकर ने आरोपियों ज्ञानेश्वर ढमाले और सुरेश जावलकर की हत्या कर दी। बाद में अदालत ने उसे इन मामलों में बरी कर दिया। इस वारदात में दत्ता पडेर उर्फ काला दत्या भी आरोपी था, जिसे 2 अप्रैल 1994 को एक मद्रासी लॉटरी विक्रेता ने मार डाला। सिंहगढ़ रोड से नांदेड–खानापुर तक दहशत फैलाने वाले प्रदीप सनस की 1989 में हत्या हुई। इस तरह बदला और प्रतिशोध की घटनाएं लगातार होती रहीं। इसी दौरान मुंबई के बड़े गिरोहों के अपराधियों का पुणे में प्रवेश बढ़ने लगा। व्यापारी वर्ग को धमकियां मिलनी शुरू हो गईं। बिबवेवाड़ी इलाके का एक बड़ा बिल्डर गवली गिरोह का छिपा हुआ सहारा माना जाता था।
किरण वालावलकर का एनकाउंटर
25 जनवरी 1995 को कोंढवा इलाके में गवली गिरोह का मुख्य सूत्रधार किरण वालावलकर और उसका साथी रवि करंजावकर पुलिस मुठभेड़ में मारे गए। सदामामा पावले, गणेश भोसले उर्फ वकील और अशोक चौधरी उर्फ छोटा बाबू जैसे अन्य गुंडे वहां से भाग निकले। इस घटना ने साफ कर दिया कि मुंबई से फरार होकर आए कुख्यात अपराधियों ने पुणे को पनाहगाह बना लिया था। शहर की सीमाएं जैसे-जैसे फैलती गईं, अपराध भी बढ़ते गए। इस तीसरे चरण में कई हत्याएं, वसूली या फिरौती के लिए हुए अपहरण के कारण हुई थी। वालावलकर की मौत के बाद पुलिस ने यह तलाश शुरू की कि गवली गिरोह को शहर में पनाह कौन दे रहा था। उसके फ्लैट में मिली डायरी में कई अपराधियों, बिल्डरों और नेताओं के फोन नंबर पाए गए। पुलिस ने इनमें से कुछ रिश्तों का पर्दाफाश किया, लेकिन असली “पर्दे के पीछे” के लोग आज भी सामने नहीं आए।
Created On :   4 Nov 2025 5:00 PM IST












